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DevBhoomi Insider Desk
• Wed, 20 Sep 2023 10:41 am IST


रसों की वह फुहार


उसे होना तो था भक्ति संगीत का एक सामान्य सा कार्यक्रम, या सामान्य से थोड़ा बेहतर कार्यक्रम या शायद ज्यादा बेहतर कार्यक्रम। लेकिन दिन भर बारिश क्या हुई, कार्यक्रम ऐसा खास बना कि स्मृतियों में हमेशा के लिए दर्ज हो गया। मौसम के कारण मन तो डांवाडोल था, पर प्रस्ताव यह आ गया कि ‘घर में बैठकर क्या करेंगे, आ जाइए। कार्यक्रम के लिए नहीं भी गए तो चाय-पकौड़ों के साथ अच्छी गपशप हो जाएगी।’ यों भी मसला अच्छी शाम बिताने का ही था, तो सोचा ऐसे नहीं तो वैसे सही। पर जब मिले तो दोनों के मन ने अलग तरह से घेरा डाला, अब जब 20 किलोमीटर दूरी तय कर ही ली है तो पांच किलोमीटर के लिए क्या सोचना। चलते हैं, कार्यक्रम रद्द भी हो गया तो वापस लौट आएंगे। सो दो छतरी लेकर दोनों जने चल पड़े नेहरू पार्क की ओर। बाहर गाड़ी पार्क कर आयोजन स्थल पहुंचे तो तसल्ली हुई, हम अकेले नहीं थे। हम जैसे 15-20 और दिलजले वहां मौजूद थे छतरी लिए। माइक टेस्टिंग चल रही थी। पांच-सात लोग अलग इंतजाम में लगे नजर आ रहे थे। उनमें से एक फोन पर बता रहा था, ‘ऑडियंस आई हुई है, बारिश में भीगते हुए ये लोग आए हैं। उनसे बोलो, बस आ जाएं जल्दी से।’ उसके बाद जो हुआ वह गायन की उत्कृष्टता, संगतकारों की कुशलता और इन दोनों से ज्यादा श्रोताओं की दीवानगी का जिंदा दस्तावेज बन गया। बरसते पानी के बीच मीरा, कबीर, गुरुनानक के भजन होने लगे तो छतरियों की संख्या बढ़ती गई। बहुत से बिना छतरी के भी थे। लोग फिर भी कम थे, लेकिन बात संख्या की नहीं, शिद्दत की थी जिससे कलाकार खुद को धन्य महसूस कर रहे थे।

और, इस बीच एक महिला और एक युवक लगभग उठाते हुए एक बुजुर्ग महिला को लाते दिखे। बुजुर्ग महिला के करीब-करीब नाकाम हो चुके पांव इस प्रक्रिया में उन्हें असह्य तकलीफ दे रहे थे, जो उनके चेहरे से ही झलक रहा था। पहला भाव मन में गुस्से का आया उन दोनों पर, कि क्यों ऐसी बुजुर्ग महिला को इतनी तकलीफ दे रहे हैं। खैर पास ही खाली कुर्सी पर जैसे-तैसे उन्हें बिठा दिया गया। दो-चार मिनट लगे, लेकिन बैठने के बाद उनकी तकलीफ कम होती प्रतीत हुई। युवक उन्हें बैठाकर दूसरी तरफ चला गया, महिला वहीं बैठ गईं, बुजुर्ग महिला के पैरों के पास, नीचे। पुष्टि बाद में हुई, लेकिन दोनों के बॉडी लैंग्वेज से साफ तभी हो गया कि वे मां-बेटी ही हैं।

धीरे-धीरे इस सवाल का भी जवाब मिल गया कि क्यों इन बुजुर्ग महिला को उनके परिवारजन इतनी तकलीफ देते हुए यहां लाए थे। जो पांव अभी-अभी उनके लिए असह्य पीड़ा का वाहक बने हुए थे, अब उन्हीं पांवों के घुटनों पर थिरकती उन बुजुर्ग महिला की उंगलियां और चेहरे पर खिली हलकी मुस्कान भक्ति परंपरा के काव्य और संगीत में छिपे आनंद की एक अनोखी कहानी सुना रही थीं।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स