कभि गढ़देश यानि गढ़वाल अर कुमायुं की राजभाषा रहि भाषा गढ़वलि अर कुमाउंनी आज अपणि पहचान खुणि बेहाल छैं। यूं थैं अभि बोली ही समझे जांद। जबकि इ द्विई भाषा संविधान की आठवीं अनुसूचि मा शामिल होणा का वास्ता जू भी शर्त छैं, वैथे पूरी भी करदि। यूं थैं 8वीं अनुसूचि मां जगद दीणि कि मांग भौत पुराणि छ। यख तक कि संसद मा भी कई बार य मांग भी उठि चुकि गाई। प्राइवेट मेंबर बिल भी लोकसभा में पेश ह्वै चुक्यूंचा। 2015 मां तब का गृहमंत्रि राजनाथ सिंह ल दिल्ली मां उत्तराखंडियों की एक सभा में वादा भी करि छै कि केंद्र सरकार गढ़वलि अर कुमाउंनी थैं 8वीं अनुसूचि मा शामिल करणा पर विचार करणी चा। लेकिन तब भटि कुछ भी नि ह्वै। लगातार मांग की अनदेखि क कारण अब उत्तराखंडी साहित्यकार व समाजसेवी लोग अब आंदोलन का मूड मा छैं। नवंबर मां ई मांग पर दिल्ली मा एक दिन कू धरना दीण की योजना छ।
उत्तराखंड की ईं द्वी प्रमुख भाषाओं कू लगभग एक हजार साल पुरणु इतिहास छा। गढ़वाल कु पंवार राजवंश मा गढ़वाली अर कुमायुं कु चंद राजवंश का शासन में कुमाउंनी राजभाषा छाई। ये का बावजूद 2000 मा बण्यु उत्तराखंड राज्य कि आधिकारिक अर कामकाज की भाषा हिंदी ही चा। जबकि देश की राजभाषा हिंदी से भी पैली ई द्वि भाषा अस्तित्व मा आ गाई छाई। य बात भी जणण क लायक छ कि आधुनिक हिंदी कु जनक भारतेंदु हरिश्चंद्र कू जन्म त कुमाउंनी कु आदि कवि गुमानी पंत की मृत्यु का चार साल बाद हि ह्वे छै। वे अलावा जैं नेपाली या गोरख्याली थैं संविधान की आठवीं अनुसूचि मा शामिल करै गई, वीं कू जन्म भी कुमाउंनी से ही ह्वाई। डोटियाली भी कुमाउंनी से निकलि अर डोटियाली से ही नेपाली कु जन्म ह्वेई। विभिन्न विश्वविद्यालयों मा गढ़वालि व कुमाउंनी बोली एवं साहित्य पर कई पीएचडी शोध ग्रंथ भी लिखि गैनि।
गढ़वालि अर कुमाउंनी थैं 8वीं अनुसूचि मा शामिल करणा की मांग लंबा समय से विभिन्न सभा, सम्मेलन, गोष्ठियों आदि मां जोर-शोर से उठणी चा। कई उत्तराखंडी संगठन यां का वास्ता लगातार प्रयासरत छैं। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री आदि थैं लगातार ज्ञापन व पत्र भी लिखे जाणा छैं। यख तक कि उत्तराखंड सरकार भी कई बार केंद्र सरकार थैं पत्र भी लिखि चुकी चा। हालांकि साहित्यकारों की मांग चा कि प्रदेश सरकार थैं विधानसभा कू विशेष सत्र बुलाकि ईं मांग पर एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार थैं भेजुणू चैं। दिल्ली का प्रस्तावित धरना की एक मांग या भी छा।
आठवीं अनुसूचि मा अब तक 22 भाषा शामिल ह्वै चुकि गैं। यू भी जणण लायक चा कि कैं भी भाषा थैं ईं अनुसूची मां शामिल करणु कु क्वी निश्चित मानदंड निर्धारित नीं च। उत्तराखंडियों की दलील छा कि मैथिली, बोडो अर कोंकणी से कहीं ज्यादा लोग गढ़वालि व कुमाउंनी बोल दीं। अब त साहित्य अकादमी भी गढ़वालि व कुमाउंनी का साहित्यकरों थैं पुरस्कार दीण बैठि गै। दिल्ली सरकार ल भी गढ़वालि, कुमाउंनी व जौनसारी अकादमि बणाई चा। य अलग बात चा कि उत्तराखंड सरकार ल अभि तक गढ़वालि, कुमाउंनी व जौनसारी अकादमि नि बणाई। यूं भाषाओं कु मानकी करण भी लगभग पूरु ह्यवैगे।
आठवीं अनुसूचि मा शामिल होण पर भाषा छैं कई लाभ मिल दैं। यां से एक राष्ट्रीय पहचान मिल द। वै क माध्यम से सरकारी प्रतियोगी परीक्षाएं भी दे सकदि। एनसीईआरटी की किताब भी उपलब्ध हो जंदी। सांसद संसद व विधायक ईं भाषा मा शपथ भी ले सकदीं व सदन मां अपनी बात रख सकदीं। साहित्य अकादमी व ज्ञानपीठ जना प्रतिष्ठित पुरस्कार खुतणि भी नामांकित ह्वै सकदिं। सरकारी तौर पर भी वीं भाषा का उत्थान व विकास खुणि अनुदान मिलि जांद। ये से व भाषा और भि लोकप्रिय हूण लग दी। यां कू वास्ता गढ़वालि व कुमाउंनी थैं आठवीं अनुसूचि मा शामिल करणा की मांग तेज ह्वैगे।
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स