अटल बिहारी वाजपेयी का अंदाज-ए-बयां ही काफी था किसी को बोल्ड करने के लिए और दिसंबर 2003 में इसके शिकार हुए ऑस्ट्रेलिया के तत्कालीन पीएम जॉन हावर्ड। क्रिकेट के शौकीन ये दोनों नेता जब नाइजीरिया की राजधानी अबुजा में कॉमनवेल्थ हेड्स ऑफ गवर्नमेंट मीटिंग (CHOGM) के इतर मिले, तो गाबा में टीम इंडिया और ऑस्ट्रेलिया के बीच टेस्ट मैच का दूसरा दिन चल रहा था। हावर्ड ने वाजपेयी से स्कोर पूछ लिया। वाजपेयी ने जब मुस्कुराते हुए स्कोर बताया तो हावर्ड के मुंह से बस इतना ही निकला, ‘ओह माई गॉड!’ पहले दिन दो विकेट पर 262 रन बनाने वाली ऑस्ट्रेलियाई टीम केवल 323 पर आउट हो गई और इसी वजह से हावर्ड हैरान थे। उस वक्त ऑस्ट्रेलिया टूर पर टीम इंडिया का सीरीज जीतना तो दूर, किसी एक मुकाबले को जीतना भी करामात के बराबर था। हालांकि पिछले दो दशकों में कहानी बदल चुकी है। अब ऑस्ट्रेलियाई पीएम को कैसा भी स्कोरकार्ड देखकर हैरत नहीं होती। क्रिकेट में सुपरपावर बन चुका है भारत। इसके जरिये डिप्लोमेसी साधी जा रही। भारतीयों के लिए गर्व करने और उनको एक सूत्र में बांधने का जरिया है क्रिकेट। IPL के आने के बाद क्रिकेट की सॉफ्ट पावर और बढ़ गई। 11 बिलियन डॉलर से ज्यादा की वैल्यू के साथ IPL दुनिया की दूसरे नंबर की स्पोर्ट्स लीग बन चुकी है। फुटबॉल और बास्केटबॉल से टक्कर ले रही है। क्रिकेट की दूसरी लीग तो खैर इसके सामने कहीं टिकतीं ही नहीं। इंडियन प्रीमियर लीग ने क्रिकेट को खेल से आगे बहुत कुछ बना दिया है, जहां वह ‘राष्ट्रधर्म’ बन चुका है।
मैदान पर भारतीय खिलाड़ी अकेले नहीं उतरते, उनके साथ करोड़ों भारतीयों की भावनाएं उतरती हैं, अरबों का बाजार उतरता है। लेकिन, क्रिकेट के इस राष्ट्रवाद में भी कई पारियां और कई स्ट्रैटेजिक टाइमआउट हैं। टीम इंडिया की ताकत है एक टीम में, जबकि IPL को बढ़ावा मिला है राष्ट्रवाद के भीतर उप-राष्ट्रवाद के पनपने से। इस खेल में आज महेंद्र सिंह धोनी से बड़ा कोई चेन्नै वासी नहीं और विराट कोहली के आगे बेंगलुरु का कोई बंदा नहीं। शुभमान गिल सबसे बड़े गुजराती हैं, जबकि श्रेयस अय्यर बंगाली। यहां जब ऑस्ट्रेलियाई मैक्सवेल भारतीय हार्दिक पंड्या की गेंद को बाउंड्री पार भेजते हैं, तो चिन्नास्वामी स्टेडियम खुशी की लहर में डूब जाता है। क्षेत्रीय भावनाओं के इस उभार से ही ताकत मिलती है IPL को और तभी इसे और बढ़ाने की कोशिश है। वह ऐड देख लीजिए, जिसमें सुनील शेट्टी अपने दामाद केएल राहुल की जगह रोहित शर्मा को भाव देते हैं, क्योंकि शर्मा जी का बेटा मुंबई इंडियंस-कर है। इस सब-नैशनलिज्म को बढ़ाने में विदेशी खिलाड़ियों का भी बड़ा रोल है। जो खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में दुश्मन नजर आते हैं, वही T-20 लीग में दोस्त बन जाते हैं। पुरानी सारी अदावत और कड़वाहट को भुलाकर इनका एक मकसद होता है, अपनी फ्रैंचाइजी की ब्रैंड वैल्यू और फैन बेस को बढ़ाना। जब ये खिलाड़ी अपनी नैशनल टीम में वापस लौटते हैं, तो इनकी पूंजी वहां चली जाती है, लेकिन इससे IPL के खजाने पर असर नहीं पड़ता। लीग अपनी रफ्तार से बढ़ी जा रही है। क्रिकेट कोई आसान खेल नहीं है और यह बात उसके इस कैरेक्टर से भी साबित होती है, जहां वह देश के भीतर देश बनाए बैठा है।
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स