Read in App

DevBhoomi Insider Desk
• Thu, 2 Feb 2023 11:03 am IST


ब्रह्मपुत्र से सोन तक


तकरीबन बीस घंटे के सफर के बाद ट्रेन से गुवाहाटी उतरा तो मेरे रिश्तेदार भास्कर स्टेशन पर थे, जो मुझसे कुछ ही साल छोटे हैं। गाड़ी में बैठे तो उन्होंने कहा, घर चलते हैं। मैं बोला, पहले ब्रह्मपुत्र चलते हैं। रात में ब्रह्मपुत्र पहुंचने के लिए पहले तो दोनों ने डेढ़ घंटे तक जाम झेला, फिर किसी तरह कैंट जाने वाला बाहरी किनारा पकड़ा। यहां रात में पहली बार मुझे ब्रह्मपुत्र के दर्शन हुए। अयोध्या की सरयू किनारे तो मैं जाने कितनी रातें बैठा हूं। सरयू कितनी भी बढ़ी हो, ऐसे कभी नहीं डराती, जैसे ब्रह्मपुत्र डराता है। इसकी जो वजह मेरी समझ में आई, वो यह कि गंगा हो या सरयू, यह नदियां बहती हैं तो किनारों से कल-कल की संगीत भी बहता है। ब्रह्मपुत्र एकदम खामोश था। कहीं कोई कल-कल नहीं। खामोशी का डर प्रत्यक्ष महसूस करना हो तो जाड़ों की रात ब्रह्मपुत्र के किनारे खड़ा होना बुरा आइडिया नहीं।

पिछली बार जब मैंने कहा कि ब्रह्मपुत्र शायद भारत की इकलौती पुरुष नदी है तो बड़े भाई दिवाकर जी ने याद दिलाया कि एक बार सोन नदी को भी चेक करो। शायद वह भी पुरुष नदी है। भारत में एक नहीं, बल्कि दो पुरुष नदियां हैं। दिवाकर जी की बात सही निकली। एक कथा में सोन यानी शोणभद्र को नर्मदा का प्रेमी माना जाता है। दोनों की शादी होने वाली थी। इसी बीच नर्मदा को पता चला कि शोणभद्र को नर्मदा की दासी जुहिला से प्रेम हो गया। उसी वक्त नर्मदा ने सोन से मुंह मोड़ लिया और दूसरी ओर चल पड़ीं। दूसरी कथा के मुताबिक नर्मदा के पिता राजा मेखल ने तय किया कि जो भी राजकुमार गुलबकावली का दुर्लभ फूल लाएगा, उसी से नर्मदा की शादी होगी। राजकुमार शोणभद्र फूल ले आए। नर्मदा ने राजकुमार को देखा तो नहीं था, पर उनके प्रताप की कहानियां सुनकर उन्हें उनसे प्रेम हो गया था। उन्होंने अपनी दासी जुहिला (नदी) के हाथों सोन को प्रेम संदेश भेजा। जुहिला ने जाने से पहले छल किया और राजकुमारी के जेवर-कपड़े पहन लिए।

शोण ने जुहिला को सजे-धजे देखा तो राजकुमारी समझ उन्हें उसी से प्रेम हो गया। पीछे-पीछे नर्मदा भी पहुंचीं तो दोनों को साथ देखकर बिफर पड़ीं और तुरंत वहां से उल्टी दिशा को चल पड़ीं। आज भी सोन नाम का नद भौगोलिक रूप से नर्मदा का पीछा करता है, मगर एक जगह पर नर्मदा उससे एकदम विपरीत दिशा में चली जाती हैं। नदियों में सबसे पवित्र चिरकुंवारी नर्मदा को ही माना गया है। मत्स्यपुराण कहता है कि यमुना हफ्ते भर में, तीन दिन में सरस्वती, गंगाजल उसी दिन और नर्मदा का पानी उसी पल पवित्र कर देता है। अपवित्र तो सोन को भी नहीं माना गया, बल्कि उसके किनारों पर आज भी छोटे-बड़े नहान होते रहते हैं। मैंने भास्कर से पूछा कि जिस तरह से हमारे यहां अयोध्या में मेले-मौकों पर नहान होते हैं, वैसा कोई सीन ब्रह्मपुत्र में बनता है? उन्होंने बताया कि यहां ऐसा कुछ नहीं होता बल्कि लोग मौज-मजे में भी ब्रह्मपुत्र में तैरने नहीं जाते। मैंने पूछा, ऐसा क्यों? वह बोला, इसकी खामोशी से अकेले आप ही नहीं हो, जो डर गए।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स