दूसरी, राजपथ का आर्किटेक्चर और भावना गुलामी के प्रतीक थे। अब इसका आर्किटेक्चर भी बदला है और आत्मा भी।
– तीसरी, सांसद, अधिकारी, मंत्री जब यहां से गुजरेंगे तो उन्हें देश के प्रति अपने कर्तव्यों का बोध होगा।
– चौथी, कर्तव्य पथ पर नेताजी की प्रतिमा देश को नई ऊर्जा देगी।
इस तरह प्रधानमंत्री ने इस परियोजना को गुलामी के अवशेष खत्म कर उनकी जगह अतीत, वर्तमान और भविष्य के भारत का जीवंत और प्रेरणादायी निर्माण साबित किया। जानबूझकर उन्होंने अपनी विचारधारा के अनुरूप राष्ट्रवाद को भावनात्मक चरित्र देने की रणनीति अपनाई। प्रधानमंत्री मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से जिन पांच प्रणों की घोषणा की थी, उनमें गुलामी की छोटी से छोटी चीज से भी मुक्ति पाने की बात शामिल थी। संसद भवन सहित समूची सेंट्रल विस्टा परियोजना को उनकी इसी सोच का साकार रूप कहा जा सकता है।
अभियान की शुरुआत
इस दृष्टि से देखें तो प्रधानमंत्री ने इसे प्रेरणादायी बनाने की शुरुआत भी कर दी। लोगों से वहां आने और सेल्फी लेकर हैशटैग कर्तव्य पथ के साथ सोशल मीडिया पर डालने की उनकी अपील से एक अभियान आरंभ हो गया है। भारी संख्या में लोग आ रहे हैं, तस्वीरें ले रहे हैं। यह ऐसी स्थिति है जिसकी कल्पना मोदी विरोधियों ने नहीं की होगी। इस अवसर का उपयोग करते हुए मोदी ने सरकार के ऐसे कुछ कदमों का सिलसिलेवार ब्यौरा देकर यह साबित किया कि देश में पहली बार उनकी सरकार ने ही गुलामी से जुड़े अवशेषों को भारतीय दृष्टि और आवश्यकता के अनुरूप परिणत किया है।
निश्चित रूप से इसके राजनीतिक अर्थ ढूंढे जाएंगे। मोदी प्रधानमंत्री के साथ ही एक पार्टी के नेता हैं और उन्हें आगामी समय में कई विधानसभाओं के साथ 2024 में लोकसभा चुनाव का सामना करना है। ऐसे में प्रखर राष्ट्रवाद का सामूहिक भाव बीजेपी के लिए राजनीतिक रूप से लाभकारी होगा। विरोधियों पर स्वाभाविक ही पुनर्निर्मित सेंट्रल विस्टा की दृष्टि और उसकी उपादेयता पर बीजेपी को होने वाले संभावित राजनीतिक लाभ की चिंता हावी हो गई होगी। प्रधानमंत्री ने इस विषय को जिस तरह उठाया है, उस संदर्भ में भी कुछ बातों का जिक्र करना जरूरी है।
– एक, लोग यह सवाल पूछेंगे कि पहले की सरकारों ने किंग्सवे को राजपथ क्यों बनाया।
– दो, आजादी मिलने के बाद 21 वर्षों तक कैनोपी में जॉर्ज पंचम पंचम की मूर्ति क्यों लगी रही?
– तीन, इंडिया गेट पर ब्रिटिश शासन के लिए युद्धों में लड़ने वाले सैनिकों के ही नाम क्यों खुदे रहे?
– चार, अंग्रेजों द्वारा बनाई गई संसद को स्वतंत्र भारत का संसद भवन और वायसराय भवन को राष्ट्रपति भवन के रूप में क्यों स्वीकार किया गया? किसी ने भी इनकी जगह नवनिर्माण करने का साहस क्यों नहीं दिखाया?
निश्चित रूप से आगे संसद भवन से लेकर केंद्रीय सचिवालय तक के उद्घाटन का कार्यक्रम इससे ज्यादा भव्य, आकर्षक और प्रभावी होगा। कहा गया है कि जो साहस और संकल्प दिखाता है, विजय उसे ही मिलती है। ऐसा नहीं कि संसद भवन से लेकर केंद्रीय सचिवालय और यहां तक कि इंडिया गेट के पूरे क्षेत्र में परिवर्तन की योजनाएं पहले सामने नहीं आईं। संसद भवन की योजना तो पिछली यूपीए सरकार में भी आई थी। लेकिन किसी ने उसे इतना व्यापक दृष्टिकोण नहीं दिया और न साकार करने का साहस दिखाया। राजनीतिक पार्टियों ने इस परियोजना का तीखा विरोध करके अपनी नकारात्मक छवि बनाई। प्रधानमंत्री मोदी और उनके साथी अवश्य ही उन सारे वक्तव्यों और विचारों को जनता के समक्ष रखेंगे। वे जनता के सामने प्रश्न उठाएंगे कि गुलामी के अवशेषों से मुक्ति और वर्तमान समय के अनुकूल नवनिर्माण का विरोध करने वालों के साथ आप कैसा व्यवहार करेंगे तो आमजन का उत्तर क्या होगा, यह बताने की आवश्यकता नहीं।
संपूर्णता में बदलाव
हालांकि बदलाव के समर्थकों द्वारा भी यह प्रश्न उठाया जा रहा है कि केवल सड़कों का नाम बदलने या कुछ प्रतीक खड़ा कर देने भर से गुलामी के अवशेष नहीं खत्म जाएंगे। गुलामी मानसिकता में होती है और जब तक पूरी व्यवस्था भारतीय नहीं होती, हम गुलामी से मुक्ति का दावा नहीं कर सकते। इसी संदर्भ में ध्यान देने की जरूरत है कि मोदी ने बिना यह प्रश्न उठाए नई शिक्षा नीति की चर्चा की है। वास्तव में नई शिक्षा नीति गुलामी की सोच को तोड़ने और भारतीय दृष्टि पैदा करने का बड़ा आधार साबित होगी। न्यायालयों की भाषा, नौकरशाही की औपनिवेशिक संरचना आदि में बदलाव भी आवश्यक है। न्यायालयों की भाषा का प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में उल्लेख किया है। काफी संख्या में अंग्रेजों द्वारा बनाए गए कानून बदले हैं। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और काशी विश्वनाथ धाम के पुनर्निर्माण आदि को भी इससे अलग करके नहीं देख सकते। इन सबको एक साथ मिलाकर देखेंगे तो निष्कर्ष यही आएगा कि आजाद भारत में गुलामी के अवशेषों से मुक्ति और भारतीय राष्ट्रीयता की आत्मा के अनुरूप बदलाव और निर्माण की निरंतरता में इतने कदम उठाने की कभी कल्पना तक नहीं की गई।