हमें वायु प्रदूषण की इतनी आदत पड़ चुकी है कि अब जरा सा भी प्रदूषण कम होता है तो जश्न मनाना शुरू कर देते हैं। दिवाली के आसपास जब प्रदूषण कम हुआ तो दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने 24 अक्टूबर को दिल्लीवासियों को बधाई देते हुए कहा कि दिल्ली अब एशिया के दस सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल नहीं है। इस विज्ञप्ति को लेकर सोशल मीडिया पर काफी हंगामा हुआ। लेकिन दिल्ली के प्रदूषण की सचाई क्या है? और दिल्ली के वायु प्रदूषण को हम सही मायने में कैसे कम कर सकते हैं?
प्रदूषण की सचाई
हमारे देश में वायु गुणवत्ता को अच्छे, मध्यम, बुरे, बहुत बुरे और बेहद खतरनाक में बांटा जाता है। दिवाली के दिन दिल्ली का वायु प्रदूषण बहुत बुरे वर्ग में था। एयर क्वॉलिटी इंडेक्स (AQI) उस दिन 300 था। यह पिछले कुछ सालों से अच्छा तो था, फिर भी यह बहुत ही नुकसानदायक माना जाएगा। इतनी खराब वायु गुणवत्ता पर जश्न मनाने की जरूरत नहीं है। फिर भी यह समझना जरूरी है कि इस दिवाली में वायु प्रदूषण क्यों कम हुआ। क्या किसी सरकारी कार्रवाई से हवा की गुणवत्ता में सुधार हुआ या कोई और कारण था। दुर्भाग्य से, किसी भी सरकारी कार्रवाई के कारण हवा की गुणवत्ता में सुधार नहीं हुआ था। सुधार दो प्रमुख कारणों से हुआ:
पहला, पिछले कुछ सालों के मुकाबले इस बार दिवाली एक से डेढ़ हफ्ते पहले आई।
दूसरा, साइक्लोन सितरंग, जो कि दिवाली के एक दिन पहले बंगाल की खाड़ी में आया।
दिल्ली में इस बार दिवाली 24 अक्टूबर को हुई है। अभी पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने का सीजन शुरू नहीं हुआ है। पराली का तेजी से जलना इस बार दिवाली को नहीं झेलना पड़ा है। इसका मतलब यह नहीं है कि पंजाब-हरियाणा में इस साल पराली नहीं जलेगी। इस साल भी जलेगी, लेकिन पराली जलाने का असर नवंबर में महसूस होगा। दिल्ली के प्रदूषण में पराली जलाने का योगदान दिवाली पर न्यूनतम था। ऐसा 2019 में भी देखने को मिला था जब दिवाली 27 अक्टूबर को थी।
साइक्लोन का कमाल
चक्रवात वह वातावरणीय सिस्टम है, जो हवा और नमी को खींचता है और वायु में गति लाता है। इस साइक्लोन ने ओडिशा, वेस्ट बंगाल के तटीय इलाकों सहित बांग्लादेश और मेघालय को हिट किया था। एक हलका तूफान था, फिर भी इसके चलते दिल्ली और इसके आसपास के इलाकों के वातावरण पर काफी असर पड़ा। वायु की गति तेज होने से दिल्ली में दिवाली के आसपास का प्रदूषण यहां टिका नहीं रह सका। इसी के कारण एक्यूआई तीन से साढ़े तीन सौ के बीच रहा। यदि चक्रवात न होता तो प्रदूषण का स्तर काफी अधिक होता। तो इस साल दिवाली के दिन दिल्लीवासी एक तरह से भाग्यशाली थे कि प्रदूषण नहीं झेलना पड़ा। पर इसमें कोई इंसानी हाथ नहीं है। बल्कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि हमें आज के दिन में दिल्ली में साफ हवा के लिए जलवायु परिवर्तन के कारण आया एक साइक्लोन मदद कर रहा है।
अगले साल दिवाली 12 नवंबर को है। मैं भगवान से प्रार्थना करता हूं कि कोई चक्रवात न आए क्योंकि यह जीवन और आजीविका को नष्ट कर देगा। उस स्थिति में हम इस वर्ष की तुलना में कहीं अधिक खराब वायु गुणवत्ता का अनुभव करेंगे। ऐसे में दिल्ली में वायु प्रदूषण कम करने के लिए करना क्या होगा?
वायु प्रदूषण के दो ही कारण हैं। पहला, किसी चीज का जलना और दूसरा है धूल, जो काफी हद तक जमीन से उठती है। जब तक इन दो कारणों को हम हल नहीं करेंगे, तब तक उत्तर भारत, जो पंजाब से लेकर पश्चिम बंगाल तक है, और जिसमें हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड जैसे राज्य शामिल हैं, वहां वायु प्रदूषण कम नहीं होगा।
भारत में आज के दिन हम लोग कोई दो सौ करोड़ टन मटीरियल जलाते हैं। इसमें 80 फीसदी कोयला, लकड़ी, कृषि अवशेष और अन्य बायोमास हैं। कोयला बिजली बनाने में और फैक्ट्रियों में इस्तेमाल होता है। बायोमास का उपयोग बड़े पैमाने पर खाना पकाने के ईंधन के रूप में किया जाता है। यही प्रमुख कारण हैं वायु प्रदूषण का। बिना कोयला और बायोमास कम किए हम वायु प्रदूषण कम नहीं कर सकते। यूरोप, नॉर्थ अमेरिका या फिर चीन में ही देख लें, तो इन सभी देशों ने वायु प्रदूषण कम किया है ठोस ईंधन की खपत कम करके, जो कि कोयला और बायोमास है।
भूमि का क्षरण धूल का एक प्रमुख स्रोत है। मरुस्थलीकरण बढ़ रहा है तो धूल भी बढ़ रही है। इसे पेड़ पौधे लगाकर, मिट्टी की नमी बढ़ाकर, भूजल को बढ़ाकर रोका जा सकता है। इसके लिए हमें लाखों किसानों के साथ काम करना होगा। मिट्टी के क्षरण को रोकने के लिए हमें उन्हें संसाधन और तकनीक देनी होगी, जिससे कृषि को भी मदद मिलेगी।
तुरंत लें एक्शन
दिल्ली में दिखाने के लिए स्मॉग टावर लगाए जा रहे हैं, जिसका कोई फायदा नहीं है। हां, गाड़ियों पर प्रदूषण नियंत्रण का फायदा हुआ है। लेकिन केवल वाहनों पर कार्रवाई से वायु गुणवत्ता में सुधार नहीं होगा। अगर प्रदूषण कम करना है तो सरकार लोगों को स्वच्छ ईंधन दे। दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने की जरूरत है। लेकिन आज के दिन में दिल्ली में बसों की संख्या पिछले साल से कम है। फिर दिल्ली में प्रदूषण तीन सौ किलोमीटर के रेडियस से पहुंचता है। इस तीन सौ किलोमीटर की रेंज में भी काम करने की जरूरत है। भाषण और बधाई से इतर दिल्ली के लोगों को अपने नुमाइंदों से सही सवाल पूछने की जरूरत है कि आप क्या कर रहे हैं प्रदूषण के बेसिक मुद्दों को एड्रेस करने के लिए?
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स