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• Fri, 19 Feb 2021 6:28 pm IST


लघु कथा : आखों की रोशनी गई, लेकिन नहीं गया जज्बा


कहते हैं अगर मन में दृढ़ इच्छाशक्ति है तो इंसान कुछ भी कर सकता है और बड़ी से बड़ी कठिनाई उसके हौंसलों की उड़ान को नहीं रोक सकती. ऐसी ही एक मजबूत इच्छा शक्ति की मिशाल कायम की है गुजरात के उमेश भाई ने. आंखे हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है और इसके बिना हम अपनी जिंदगी के कुछ पलों की भी कल्पना नहीं कर सकते. अगर हमारे शरीर के किसी अन्य भाग को कुछ हो जाए तो हम किसी भी तरह से जिंदगी जी लेते हैं, लेकिन अगर आंख न हो तो हम एक पल भी नहीं रह सकते.


गुजरात के द्वारका से 30 किमी दूर रहने वाले रहने वाले उमेश जब पांच साल के थे तभी उनकी आखों की रोशनी चली गई थी. रोशनी को पाने के लिए उमेश ने कई डॉक्टरों से संपर्क किया लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. डॉक्टरों के साथ-साथ उन्होंने ने भगवान का भी सहारा लिया, लेकिन उनकी रोशनी वापस नहीं आ सकी. सबसे आश्चर्य वाली बात तो यह है कि रोशनी न होने के बाद भी उमेश का जज्बा कम नहीं हुआ है.


उमेश भाई होड्डर आज 39 साल की उम्र में खुद की इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को ठीक करने की दुकान को चला कर अपने परिवार को का गुजरा करते हैं. उमेश भाई की आंखो की रोशनी 5 साल की उम्र के बाद चली गई थी और आज वह बिना आंख की रोशनी के भी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को ठीक करने का काम करके लोगों को अचंभित कर देते हैं.


उमेश भाई ने पहले अपने घर की इलेक्ट्रॉनिक चिजों जैसे कि बल्ब, पंखा, स्विच बोर्ड को खोलकर उसको फिट करने का अभ्यास किया, जिसके बाद वह इलेक्ट्रॉनिक पंखा, मोटर और आदि उपकरणों को ठीक करना सीख गए और आज किसी भी तालीम के बिना वह किसी भी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण को ठीक कर सकते हैं.