लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा में 58 साल बाद शुक्रवार को अदालत लगाई गई और कटघरे में छह पुलिसकर्मी पेश हुए। विशेषाधिकार हनन और सदन की अवमानना के दोषी इन सभी पुलिसकर्मियों को विधानसभा अध्यक्ष ने एक दिन की सजा सुनाई। सजा तीन मार्च रात 12 बजे तक की होगी।
इस दौरान सभी पुलिसकर्मियों को विधानसभा में बनी सेल के
लॉकअप में रखा जाएगा। सजा पर निर्णय होने के बाद मार्शल सभी पुलिसकर्मियों को सदन
से लॉकअप में ले गए। इससे पहले विधानसभा में सन् 1964 में अदालत लगी थी।
अखिलेश यादव बोले- ये गलत परंपरा है
सदन में लगी अदालत के दौरान सतीश महाना ने सभी दलों के
नेताओं से इस पर उनका पक्ष पूछा। ज्यादातर ने अध्यक्ष को फैसला लेने के लिए अधिकृत
किया। फिर दोषी पुलिसकर्मियों को अपनी सफाई में बोलने का मौका दिया। इसमें
तत्कालीन सीओ अब्दुल समद ने सदन से माफी मांगी। उन्होंने कहा कि ऐसी गलती दोबारा
नहीं होगी। इससे पहले सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव से सदन के बाहर इस बारे में पूछा
गया तो उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि यह गलत परंपरा है।
सपा सरकार में हुआ था लाठीचार्ज
विशेषाधिकार हनन और सदन की अवमानना का यह मामला वर्ष 2004 का है। उस समय सपा
की सरकार थी और मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे। कानपुर में बिजली कटौती
के विरोध में सतीश महाना (जो अब विधानसभा अध्यक्ष हैं) धरने पर बैठे थे। उनके साथ उस
समय के स्थानीय बीजेपी विधायक सलिल विश्नोई और कार्यकर्ता थे। प्रदर्शन के दौरान
पुलिस ने भाजपा विधायक और कार्यकर्ताओं पर लाठीचार्ज किया। इसमें सलिल विश्नोई का
पैर टूट गया। कई बीजेपी कार्यकर्ताओं को भी चोट आई। इसके बाद विशेषाधिकार हनन और
सदन की अवमानना की सूचना 25 अक्टूबर, 2004 को विधानसभा सत्र
में रखी गई थी।