‘ऊंचे ख्वाबों के लिए दिल की गहराई से काम करना पड़ता है, यूं ही नहीं मिलती कामयाबी किसी को, मेहनत की आग में दिन-रात जलना पड़ता है...।’ लक्ष्य की भी कहनी कुछ ऐसी ही है। बचपन में पिता व कोच डीके सेन चार बजे स्टेडियम निकल जाते थे, जबकि मां शिक्षिका थीं। ऐसे में तीन साल की उम्र में पिता ने लक्ष्य को एकेडमी ले जाना शुरू किया। वहां एक बार जो लक्ष्य ने रैकेट पकड़ा, इसके बाद बचपन के खेलकूद सब भूल गया।
डीके सेन के पारिवारिक मित्र और उनसे प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले गोकुल सिंह मेहता ने लक्ष्य के बचपन की कुछ यादें साझा की। उन्होंने बताया कि बचपन में लक्ष्य को रिमोट कार बहुत पसंद थी। मम्मी के सामने जब भी वह होता तो रिमोट वाली कार चलाता था, लेकिन पापा डीके सेन के घर आने की आहट होते ही उसे छिपा देता था।
धीरे-धीरे स्टेडियम में जब मेहनत ज्यादा पड़ने लगी तो उसने बचपन के खेल और अपनी प्यारी रिमोट कार भी छोड़ दी। लेकिन पिछले दिनों वह जब इंडोनेशिया से लौटा तो रिमोट वाली कार लेकर आया। डीके सेन से बात हुई तो उन्होंने बताया कि कामयाबी के लिए लक्ष्य ने जो बचपन नहीं जिया है वह अब जीने की कोशिश कर रहा है।