अगहन माह चल रहा है। आज शनिवार 12 नवंबर को कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी है। मार्गशीर्ष महीना होने से इस दिन गणाधिप रूप में गणेश जी की पूजा करने का विधान है। स्कंद और ब्रह्मवैवर्त पुराण के मुताबिक इस तिथि पर गणेश की विशेष पूजा के साथ व्रत रखने से परेशानियां दूर होती हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। संकष्टी चतुर्थी के दिन गणेश जी की विधि-विधान से पूजा की जाती है। अपने नाम के मुताबिक ही ये व्रत है। यानी इसे सभी कष्टों का हरण करने वाला माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान गणेश की आराधना और व्रत करने से सभी तरह के कष्टों से मुक्ति मिलती है। संकष्टी चतुर्थी व्रत शादीशुदा महिलाएं पति की लंबी उम्र और सौभाग्य की कामना से करती हैं। वही, कुंवारी कन्याएं भी अच्छा पति पाने के लिए दिन भर व्रत रखकर शाम को भगवान गणेश की पूजा करती हैं।
व्रत विधि
सूर्योदय से पहले उठकर नहाएं और सूर्य के जल चढ़ाने के बाद भगवान गणेश के दर्शन करें। गणेश जी की मूर्ति के सामने बैठकर दिनभर व्रत और पूजा का संकल्प लेना चाहिए। इस व्रत में पूरे दिन फल और दूध ही लिया जाना चाहिए। अन्न नहीं खाना चाहिए। इस तरह व्रत करने से मनोकामनाएं पूरी होती है। भगवान गणेश की पूजा सुबह और शाम यानी दोनों समय की जानी चाहिए। शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत पूरा करें।
पूजा विधि
पूजा के लिए पूर्व-उत्तर दिशा में चौकी स्थापित करें और भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें। चौकी पर लाल या पीले रंग का कपड़ा पहले बिछा लें। गणेश जी की मूर्ति पर जल, अक्षत, दूर्वा घास, लड्डू, पान, धूप आदि अर्पित करें। अक्षत और फूल लेकर गणपति से अपनी मनोकामना कहें और उसके बाद ऊँ गं गणपतये नम: मंत्र बोलते हुए गणेश जी को प्रणाम करने के बाद आरती करें। तत्पश्चात चंद्रमा को शहद, चंदन, रोली मिश्रित दूध से अर्घ्य दें। पूजन के बाद लड्डू प्रसाद स्वरूप ग्रहण करें।