रविवार, 4 दिसंबर को गीता जयंती है। इस बार पंचांग भेद होने के कारण कुछ पंचांगों में शनिवार को भी एकादशी बताई गई है। कई पौराणिक ग्रंथ हैं जिनकी रचना इंसानों ने ही की है, लेकिन श्रीमद्भागवत गीता एकमात्र ऐसा ग्रंथ है, जिसे स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाया है। श्रीकृष्ण के मुख से प्रकट होने की वजह से श्रीमद्भागवत गीता का महत्व सबसे अधिक है। ये एकमात्र ग्रंथ ऐसा है जिसकी जंयती मनाई जाती है।
मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी पर श्रीकृष्ण ने दिया था गीता का उपदेश
महाभारत युद्ध की शुरुआत में मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। इसी वजह से इस ग्रंथ में कहीं भी श्रीकृष्ण उवाच नहीं लिखा है, हर जगह श्री भगवान उवाच लिखा गया है। इसका अर्थ है श्री भगवान कहते हैं। गीता जयंती की तिथि को मोक्षदा एकादशी भी कहते हैं।
सभी वेदों, उपनिषद और पुराणों का सार है गीता
धर्माचार्यों का कहना है कि श्रीमद्भागवत गीता में सभी वेद, उपनिषद और पुराणों का सार है। इस ग्रंथ का पाठ करने से और इसमें बताए गए सूत्रों को जीवन में उतारने से हमारी सभी समस्याएं खत्म हो सकती हैं। ग्रंथ में कर्म, भक्ति और ज्ञान मार्ग के बारे में बताया गया है। इस ग्रंथ के 18 अध्यायों में श्रीकृष्ण के उपदेश हैं। इन उपदेशों से हमारी सभी शंकाएं दूर होती हैं और हम जीवन में सफलता के साथ ही सुख-शांति भी हासिल कर सकते हैं।
जीने की कला सिखाती है गीता
गीता हमें जीने की कला सिखाती है। गीता का मूलमंत्र यह है कि हमें हर स्थिति में कर्म करते रहना है। कभी भी निष्काम न रहें, क्योंकि कर्म न करना भी एक कर्म ही है और हमें इसका भी फल जरूर मिलता है।