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DevBhoomi Insider Desk
• Sat, 1 Oct 2022 9:30 am IST


हवन के बिना अधूरी है अष्टमी-नवमी की पूजा, जानिए विधि और सामग्री


शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। हिंदू धर्म में नवरात्रि के इस पावन पर्व का बहुत अधिक महत्व होता है। नवरात्रि का ये महापर्व देशभर में काफी धूम-धाम से मनाया जाता है। नवरात्रि के 9 दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। इस साल शारदीय नवरात्रि का समापन 05 सितंबर को दशहरा के दिन हो रहा है। उसके पहले 03 सितंबर को महाष्टमी और 04 सितंबर को नवमी है। मां अंबे की आराधना के लिए ये दोनों ही तिथियां बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। अष्टमी और नवमी को मां महागौरी की पूजा और हवन किया जाता है। नवरात्रि में मां दुर्गा की उपासना के साथ हवन करना अनिवार्य होता है। मान्यता है कि हवन के बिना नवरात्रि की पूजा संपन्न नहीं होती है। ऐसे में चलिए जानते हैं नवरात्रि में हवन विधि और सामग्री के बारे में।  

कब है दुर्गा अष्टमी और नवमी ?
नवरात्रि में कुछ लोग दुर्गा अष्टमी तो कुछ महानवमी के दिन हवन करते हैं। इस बार शारदीय नवरात्रि में अष्टमी तिथि 02 अक्टूबर को शाम 6 बजकर 47 मिनट से शुरू हो रही है, जो कि 3 अक्टूबर को शाम 04 बजकर 37 मिनट तक रहेगी। ऐसे में अष्टमी का व्रत 3 अक्टूबर को रखा जाएगा। इसके बाद से नवमी तिथि की शुरुआत हो जाएगी। 04 अक्टूबर को नवमी तिथि दोपहर 02 बजकर 22 मिनट तक है। ऐसे में अष्टमी और नवमी तिथि समाप्त होने से पहले हवन कर लें। 

नवरात्रि हवन-सामग्री 
हवन कुंड, आम की लकड़ी, चावल, जौ, कलावा, शक्कर, गाय का घी, पान का पत्ता, काला तिल, सूखा नारियल, लौंग, इलायची, कपूर, बताशा आदि। 

हवन विधि 
सबसे पहले हवन कुंड को गंगाजल से शुद्ध कर लें। हवन कुंड के चारों तरफ कलावा बांध दें। इसके बाद उस पर स्वास्तिक बनाकर पूजा करें। फिर हवन कुंड पर अक्षत, फूल और चंदन आदि अर्पित करें। इसके बाद हवन सामग्री तैयार कर लें। इसमें घी, शक्कर, चावल और कपूर डालें। फिर हवन कुंड में पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण दिशा की ओर 4 आम की लकड़ी रखें। फिर इसके बीच में पान का पत्ता रखकर उस पर कपूर, लौंग, इलायची, बताशा आदि रखें। इसके बाद हवन कुंड में आम की लकड़ियां रखकर अग्नि प्रज्वलित करें। अब मंत्र बोलते हुए हवन सामग्री से अग्नि में आहुति दें। हवन संपूर्ण होने के बाद 9 कन्याओं की पूजा कर उन्हें भोजन कराएं। इसके बाद उनके पैर छूकर आशीर्वाद लें। फिर कन्याओं को दक्षिणा या उपहार देकर श्रद्धापूर्वक विदा करें।