नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन के जरिये रूस से जर्मनी को गैस की सप्लाई गुरुवार को शुरू हो गई। यह पाइपलाइन साइबेरिया से बाल्टिक सागर होते हुए जर्मनी पहुंचती है। इस पाइपलाइन से जो गैस जर्मनी आती है, वह यूरोप के दूसरे देशों को भी भेजी जाती है। यह पाइलाइन गुरुवार से पहले 10 दिनों तक सालाना रखरखाव के लिए बंद थी। इससे यूरोपीय देशों की सांस अटक गई थी। उन्हें लग रहा था कि पश्चिमी देशों की पाबंदियों से नाराज होकर कहीं रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पूतिन इस पाइपलाइन से गैस की सप्लाई पूरी तरह ही ना रोक दें।
गैस की सप्लाई शुरू होने का मतलब यह नहीं है कि यूरोप की मुसीबत टल गई है। इसकी वजह यह है कि नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन से जून के बाद 40 फीसदी गैस की सप्लाई ही जर्मनी को की जा रही थी। रूस ने पश्चिमी देशों की पाबंदियों की वजह से इसमें तब से कटौती कर रखी है। रखरखाव का काम पूरा होने के बाद फिलहाल जर्मनी को इतनी ही गैस रूस से मिलेगी।
यूरोप में कुछ महीनों बाद सर्दियों का मौसम शुरू होने वाला है, जब अन्य कामकाज के अलावा घरों को गर्म रखने के लिए गैस की मांग पीक पर होती है। अमूमन, सर्दियों के लिए जर्मनी और अन्य यूरोपीय देश कुछ महीने पहले से गैस जमा करने लगते हैं। इस बार रूस से कम सप्लाई के कारण वे ऐसा नहीं कर पाएंगे। ऐसे में उन्हें गैस की राशनिंग करनी पड़ सकती है। दूसरे, गैस की अधिक कीमत से आम लोगों पर बोझ बढ़ने के कारण उन्हें सब्सिडी देनी पड़ सकती है। इससे जीडीपी में भी कमी आ सकती है।
पश्चिमी देशों का मानना है कि रूस ने सप्लाई में कटौती सर्दियों से पहले उन पर दबाव बनाने के लिए की है ताकि वे आर्थिक पाबंदियों में ढील देने पर मजबूर हों। अगर वाकई ऐसा है तो रूस की सोच गलत नहीं है। सप्लाई घटने और अनिश्चितताओं की वजह से जर्मनी की सबसे बड़ी गैस वितरण कंपनी यूनिपर एसई सरकार से बेलआउट पैकेज मांग रही है। जर्मनी ने तीन न्यूक्लियर पावर प्लांट बंद करने की योजना बनाई थी, अब वह उस पर पुनर्विचार करेगा। वह बिजली प्रोडक्शन के लिए कोयले के अधिक इस्तेमाल पर पहले से ही काम कर रहा है।
इतना ही नहीं, रूस पर पश्चिमी देशों के आर्थिक प्रतिबंधों की वजह से जर्मन सरकार की लोकप्रियता भी लोगों के बीच घट रही है। वहां ज्यादातर लोग कह रहे हैं कि इन पाबंदियों से रूस से अधिक नुकसान जर्मनी को हो रहा है। यूरोप के दूसरे देश भी गैस सप्लाई कम होने को लेकर डरे हुए हैं और इमरजेंसी प्लानिंग कर रहे हैं। इसी हफ्ते यूरोपीय संघ अगस्त 2022 से मार्च 2023 के बीच गैस की खपत में 15 फीसदी की कटौती का सुझाव दे चुका है। 2024 तक यूरोप ने रूस पर तेल-गैस को लेकर निर्भरता खत्म करने का वादा किया है और इस दिशा में यहां के देश काम भी कर रहे हैं, लेकिन यह आसान नहीं होगा। दूसरी तरफ, पूतिन लंबे वक्त तक यूक्रेन से युद्ध करने के लिए तैयार हैं और आर्थिक युद्ध जीतने के लिए भी वह हर पैंतरा आजमा सकते हैं।
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स