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• Wed, 3 Jan 2024 11:00 am IST


तब नए साल का जश्न मनाने का एकमात्र सहारा था दूरदर्शन


नए साल का जश्न मनाने कोई पहाड़ों का रुख कर चुका है तो कोई दोस्तों संग किसी होटल या क्लब में पार्टी का प्लान बना रहा है। कुछ लोग दिल्ली की इस सर्द बर्फीली रात में घर पर ही रज़ाई में घुसकर टीवी या ओटीटी पर अपनी पसंदीदा मूवी व प्रोग्राम के साथ नए साल के वेलकम की तैयारी में हैं। यानी ऑप्शंस की कोई कमी नहीं। पर एक समय ऐसा भी था, जब कोई विकल्प नहीं था, पूरा देश दूरदर्शन के सामने बैठकर नए साल का स्वागत करता था। मनोरंजन का एकमात्र सहारा यह एक चैनल ही था, जिस पर रात दस बजे से आने वाले दो घंटे के प्रोग्राम का लोग बेसब्री से इंतजार करते थे। पहले से ही खाने-पीने की सारी तैयारी कर सब टीवी के आगे जमकर बैठ जाते थे। हालांकि ये प्रोग्राम आज की तरह बहुत तड़क-भड़क और फिल्मी सितारों के डांस नंबर्स वाले नहीं होते थे। किसी बॉलिवुड सिंगर का स्टूडियो में एक गाना हो जाता था, एक-दो गीत-गज़ल और थोड़े बहुत चुटकुले नुमा कॉमिडी। इतना भर भी उस रात को गुलज़ार करने के लिए काफी होता था।

लेकिन ज़रूरी नहीं कि दूरदर्शन हर साल आपकी रात ऐसे ही हसीन बनाता था। उससे वक्त-बेवक्त धोखे मिलना बड़ी आम बात थी। अब जैसे मेरे एक स्कूल मित्र के किस्से को ही ले लीजिए। एक न्यू ईयर ईव पर उनके घर ढेर सारे पकवान बने और तय हुआ कि इनका लुत्फ रात को टीवी के कार्यक्रम देखते हुए लिया जाएगा। बच्चों का मन ललचाया भी तो उन्हें छूने नहीं दिया गया कि प्रोग्राम से पहले कोई नहीं खाएगा। प्रोग्राम शुरू हुआ तो दूरदर्शन की एंकर ने बताया कि आज हम आपके लिए लाए हैं भारत के शास्त्रीय संगीत और नृत्यों का संसार। सबको लगा कि चलो शुरू में थोड़ा बहुत यह दिखाने के बाद मेन प्रोग्राम शुरू होगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं, जब घंटे भर बाद समझ आया कि आज ऐसे ही 12 बजेंगे तो सजाकर रखे गए पकवानों को खाकर सब नया साल शुरू होने से पहले ही रज़ाई तानकर सो गए।

क्लासिकल डांस और म्यूज़िक का एक अलग दर्शक वर्ग और वक्त होता है, नए साल के स्वागत का जश्न मनाने के मूड में बैठे लोग क्या लोग यह सब देखना चाहेंगे, इसकी परवाह दूरदर्शन ने कभी नहीं की। उसे कभी भी अचानक अपना दायित्व याद आ जाता था। माना कि आप पर मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञानवर्धक कार्यक्रम दिखाने की भी ज़िम्मेदारी है, लेकिन उन्हें कब दिखाना है, यह भी तो देखें। उस वक्त तो शिक्षाप्रद कार्यक्रमों का स्तर भी ऐसा नहीं था जो दर्शकों में उत्सुकता जगा सकें। मनोरंजन के नाम पर हफ्ते में एक बार फिल्मी गाने दिखाने वाला आधे घंटे का चित्रहार और रविवार की फिल्म ही थे। लेकिन किसी बड़े नेता के निधन पर 13 दिन तक वे भी बंद कर दिए जाते थे और दिन भर सिर्फ सारंगी वादन चलता था। समाचारों से पहले बजने वाली सिग्नेचर ट्यून तक म्यूट कर दी जाती थी और न्यूज रीडर्स एकदम शोक संतप्त चेहरे के साथ समाचार पढ़ते थे।

अपने एकाधिकार का दूरदर्शन ने भरपूर फायदा उठाया, लोगों की पसंद-नापसंद या कार्यक्रमों की गुणवत्ता से उसे कोई मतलब नहीं था। यही वजह है कि उदारीकरण के बाद प्राइवेट चैनलों के आते ही दूरदर्शन दर्शकों को तरस गया। मनोरंजन, खेल, न्यूज़, डॉक्युमेंट्री समेत सैंकड़ों चैनलों के ऑप्शन आते गए तो लोगों ने दूरदर्शन को ऐसा भुलाया कि आज तक उसकी तरफ नहीं लौटे। अब तो ओटीटी के मल्टीपल प्लैटफॉर्म प्राइवेट टीवी चैनलों को ही बड़ी चुनौती दे रहे हैं तो दूरदर्शन की क्या बिसात। वह आज भी 80 के दशक में दिखाए गए अपने लोकप्रिय प्रोग्रामों के सहारे आगे बढ़ने की नाकाम कोशिश में लगा है। बदलते जमाने के साथ खुद को ढालने की उसने कभी कोशिश ही नहीं की।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स