बहुत सुना था कि गणेशोत्सव के दस दिन मुंबई का चप्पा-चप्पा आनंद में डूबा रहता है। हर घर का एक हिस्सा पूरी तन्मयता से सजाया जाता है और बड़े भाव से गणपति की प्रतिमा को वहां स्थापित किया जाता है। जानने वालों को दर्शन का न्योता भेजा जाता है। मुझे भी ऐसा न्योता मिला था। तीन लोकल बदलकर बोरीवली जाना था। अनजान शहर में किसी के घर जा रहा था, इसलिए कहां उतरकर कौन सी लोकल लेनी है और फिर कहां से ऑटो, इन हिदायतों को फॉलो करना था, नहीं तो मेरी चकरघिन्नी बन सकती थी। इसके बावजूद चूक हुई और मैं गलत प्लैटफॉर्म पर उतरकर स्टेशन से बाहर आ गया। पूछते-पूछते लंबा चलकर ऑटो वाली जगह पहुंचा। एक ऑटो को रोका तो उसने मराठी में कुछ पूछा। मैंने समझने का ढोंग किया और एड्रेस बताया। ऑटो वाला फिर कुछ बोला। मैंने एज्यूम किया कि वह बैठने को कह रहा है। उसने कहा, मीटर। मैंने कहां, हां, मीटर से चलिए। उसने ऑटो यूटर्न किया। पास ही कई ऑटो खड़े थे। उसने उनकी तरफ देखकर कुछ कहा, मुझे फिर समझ नहीं आया। मैंने कहा, हां-हां चलिए। उसने ऑटो आगे बढ़ाया, लेकिन तुरंत ही कुछ सोचकर रुक गया।
मुझे लगा वह कुछ तो कहना चाह रहा है। अब मैंने तफ्सील से कहा, ‘मुझे मराठी नहीं आती, आप आराम से बताइए, क्या कह रहे हैं।’ उसने कहा, ‘ये वाला ऑटो ले लो, 15 रुपये में पहुंचा देगा। शेयर वाला है।’ मैं थैंक्स बोलकर उतर गया। वह मुस्कुराया और आगे बढ़ गया। ग्राहक खोकर वह मुस्कुरा रहा था। मैं शायद उसे 70-75 रुपये देता। अगले दिन एक और घर में गणपति दर्शन को जाना था। घर पास ही था। मैं लोकेशन लगाकर चल दिया, लेकिन गफलत में उलटी तरफ चला गया। फिर लगा कि ऑटो ही कर लूं। एक ऑटो को रोका। उसने मीटर डाउन किया। वह यूपी का था। बोला, ‘मैं नया हूं, रास्ता आप बताइए।’ मैंने लोकेशन के हिसाब से रास्ता बताया और कुछ दूर जाकर रुक गया। वह बोला, ‘इधर तो आप पैदल आ जाते।’ मैंने कहा, ‘मुझे जल्दी आना था और रास्ते को लेकर कंफर्म नहीं था।’ मीटर में 23 रुपये आए। पैसे देने लगा तो वह बोला, ‘आप 15 ही दीजिए, आपको पता नहीं था।’ मैं मुस्कुराया तो जवाब में वह भी मुस्कुराया और चल दिया।
मैं यह सोचता हुआ आगे बढ़ गया कि एक ये ऑटो वाले हैं, जो अपनी आत्मा की आवाज सुनकर ऑटो चला रहे हैं, और एक वे हैं जो अच्छा भला कमाते हैं, लेकिन अपने जमीर को मारकर रिश्वत लेते हैं, नौकरी में बेईमानी करते हैं, ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए लोगों को चूना लगाते हैं। जिनकी पैसे की भूख खत्म ही नहीं हो रही। जिनको पता ही नहीं, संतोष और जमीर, किन चिड़ियाओं के नाम हैं। जो बरसों से इस मुगालते में जी रहे हैं कि हराम की कमाई उन्हें हजम हो जाएगी।
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स