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• Fri, 1 Dec 2023 11:00 am IST


... इसीलिए तो तुम्हें हम नज़र नहीं आते


देश में वीआईपी कल्चर को जितना खत्म करने का ढिंढोरा पीटा जाता है, वह उतना ही बढ़ता जा रहा है। उसका नतीजा यह हो रहा है कि आम आदमी की हैसियत ही खत्म होती जा रही है। कुछ महीने पहले लोकसभा के अंदर गृह मंत्रालय की तरफ से एक आंकड़ा पेश किया गया था। इससे यह पता चलता है कि जनसंख्या की तुलना में पुलिस की उपलब्धता का अनुपात लगातार बढ़ रहा है। देश में एक लाख की आबादी के लिए सिर्फ 152 पुलिस कर्मी ही उपलब्ध हैं। अगर बात सिर्फ यूपी की हो तो एक लाख की आबादी पर महज 133 पुलिसकर्मी ही मौजूद हैं। इसमें से भी एक बड़ा हिस्सा वीआईपी ड्यूटी पर निकल जाता है यानी कि आम आदमी के हिस्से पुलिस की उपलब्धता का अनुपात और भी घट जाता है। लेकिन अनुपात को दुरुस्त करने को कभी सोचा भी नहीं जाता क्योंकि आम आदमी को लेकर यह माना जाता है कि उसकी जान-ओ-माल की कोई कीमत ही नहीं है।

उधर हर खास आदमी की सुरक्षा का खास ध्यान होता है। उन्हें तो विशिष्ट श्रेणी में रखा जाता है। और उसका नतीजा यह होता कि जब वह सड़क से गुजर रहा होता है तो उस सड़क पर आम लोगों को चलने पर बंदिश लगा दी जाती है। और अगर बंदिश नहीं लगाई जाती है तो फिर ज्यादातर मौकों पर किसी न किसी आमजन के साथ वैसा ही हादसा पेश आ जाता है जैसे पिछले दिनों एक नामचीन कवि के सुरक्षा कर्मियों की ओर से एक डॉक्टर के साथ पेश आ गया क्योंकि विशिष्ट जन के जो सुरक्षाकर्मी होते हैं, वे खुद अपने भीतर एक अदृश्य शक्ति महसूस करते हैं। उन्हें अपने बीच में किसी और का आना गंवारा नहीं होता। विशिष्ट जन के लिए इस बात के कोई मायने नहीं होते कि आम आदमी को भी उतने ही अधिकार हासिल हैं, जितने उन्हें।

विशिष्टजन की सुरक्षा के लिए आम आदमी का रास्ता रोकते हुए यह कभी नहीं देखा जाता कि वह अगर सड़क पर है तो उसकी भी कोई अपरिहार्यता होगी। विशिष्ट जन की सुरक्षा के लिए रोके गए ट्रैफिक की वजह से कई घटनाएं ऐसी हो चुकी हैं कि जब गंभीर मरीज सही वक्त पर अस्पताल नहीं पहुंच और इलाज के अभाव में उन्होंने सड़क पर ही दम तोड़ दिया लेकिन कभी ऐसा नहीं हुआ कि ऐसी घटनाएं जिन लोगों की वजह से हुई हों, उन्हें शर्मिंदगी का अहसास हुआ हो। वैसे मीडिया में स्पेस बनाने को जब तब विशिष्ट जन की तरफ से ऐसे एलान जरूर देखने को मिल जाते हैं कि वे वीआईपी कल्चर के खिलाफ हैं, वह इसे खत्म करना चाहते हैं लेकिन दिल से उन्होंने ऐसा कभी नहीं चाहा। यही वजह है कि महीने दर महीने, साल दर दर साल अपने को विशिष्ट श्रेणी में दिखाने के लिए विशिष्ट सुरक्षा लेने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है और डॉक्टर साहब के साथ जैसा हुआ, ऐसी घटनाएं भी लगातार बढ़ रही हैं। वसीम बरेलवी का एक शेर भी है- तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आते इसीलिए तो तुम्हें हम नज़र नहीं आते।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स