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DevBhoomi Insider Desk
• Wed, 15 Mar 2023 5:07 pm IST


अपनी-अपनी संतुष्टि


प्रणव प्रियदर्शी
इत्तफाक ही कहिए कि उस दिन जिंदगी से एक सुकून भरी मुलाकात हो गई। हालांकि यह कोई पहला मौका नहीं था उससे मिलने का। मुंबई में मरीन ड्राइव पर जब भी दुनिया की ओर पीठ कर समंदर से रूबरू होता, वह अक्सर बगल में आ बैठती थी। गांव में आम और जामुन के पेड़ों की पत्तियों के बीच सूर्यास्त और सूर्योदय निहारते हुए भी वह अक्सर साथ होती। एक यादगार मुलाकात उस दिन की भी है, जब पिता की मौत के बाद घर में पहला और हमारी पीढ़ी का शायद आखिरी बड़ा आयोजन था, छोटे भाई की शादी का। चौथे दिन, जब सारे मेहमान जा चुके थे तब पटना में छत पर दिसंबर की धूप सेंकते हुए मैं, कहने को अकेला ही था, लेकिन जिंदगी मौन भाव से साथ बैठी उन सुकून भरे लम्हों का गवाह बनी हुई थी।

तो, यह हम दोनों की पहली मुलाकात तो बिल्कुल नहीं थी, लेकिन चूंकि बहुत दिनों बाद हो रही थी, इसलिए खास थी। असल में उस दिन दो ऐसे लोगों का उदाहरण एक साथ सामने आ गया जो विचारों और मूल्यों के एकदम विपरीत सिरों पर खड़े थे, लेकिन दोनों ही अपनी-अपनी जिंदगी से परम संतुष्ट थे। इस स्थिति ने मेरे सामने ऐसे सवाल खड़े कर दिए जिनका जवाब कोई और दे नहीं सकता था। सो, मैंने दोनों उदाहरण जिंदगी के सामने रख दिए। एक सज्जन हैं चोपड़ा साहब। लंबी सरकारी नौकरी से रिटायर होने को हैं। पूछने पर बताते हैं, ‘जिंदगी भर गधे की तरह खटता रहा, कठिन से कठिन पोस्टिंग बिना चूं चपड़ किए स्वीकारता रहा तो कम से कम इस बात का संतोष है कि कोई संतान यह नहीं कहेगी कि आपने मेरे बारे में नहीं सोचा। तीनों के नाम से एक-एक करोड़ रख दिया है। नौकरी रहे न रहे, बेटियों की शादी में धूमधाम की कमी नहीं होगी। बेटा भी नौकरी करे या कोई धंधा-पानी, मेरी तरफ से सपोर्ट तो हो ही जाएगा।’

दूसरा मामला एक कपल का है। हज्बंड दुनिया की बड़ी टेक कंपनी में टॉप के दो-तीन लोगों में आते हैं। वाइफ का अपना बिजनेस है। कमी किसी बात की नहीं लेकिन संतोष सिर्फ इस बात का है कि दोनों बेटे पढ़-लिख रहे हैं, पर्सनैलिटी अच्छी बन रही है उनकी, अपनी जिंदगी खुद बना सकते हैं। तो अब एक अच्छे ट्रस्ट की तलाश है, जिसे मौत के बाद अपनी पूरी संपत्ति सौंपी जा सके और जो उसे समाज की बेहतरी में लगा दे।’

मैं सवालिया निगाहों से जिंदगी की ओर देख रहा था, वह बोली, ‘देखो मेरे पास तो एक ही स्केल है चीजों को नापने का और वह है संतुष्टि का। कौन किस बात में संतुष्टि महसूस करता है, यह उसका अपना मामला है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि वह संतुष्टि मानवीय चेतना को किस ओर ले जाती है। सही दिशा में ले जाए तो संतुष्टि भी चक्रवृद्धि ब्याज की दर से बढ़ती रहती है, वरना हालात बदलते ही छूमंतर हो जाती है।’

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स