इस साल जून में पहली बार एनडीए यानी नैशनल डिफेंस अकैडमी में लड़कियों की एंट्री होगी। पहले बैच में 19 लड़कियां शामिल होंगी। अब तक एनडीए में सिर्फ लड़के ही ट्रेनिंग लेते रहे हैं। क्या एनडीए में लड़कियों की एंट्री से सेना में लड़ाकू भूमिका में भी लड़कियों की एंट्री का रास्ता खुलेगा? सेना में महिला अधिकारी कॉम्बेट रोल (लड़ाकू भूमिका) में क्यों नहीं हैं, यह सवाल कई सालों से उठता रहा है। एक बार मैंने एक इंटरव्यू के दौरान जब तत्कालीन आर्मी चीफ जनरल रावत से यही सवाल पूछा था, तब उन्होंने कहा था, ‘कॉम्बेट रोल में महिलाएं हैं, लेकिन फ्रंट लाइन कॉम्बेट रोल में नहीं हैं। इंजीनियर्स में महिलाएं हैं, सिंगल्स में हैं, ये कॉम्बेट रोल ही हैं।’
तो फिर सवाल यह है कि फ्रंट लाइन पर महिला अधिकारी कब लीड करेंगी? जब भी इस विषय पर किसी फौजी से अनौपचारिक चर्चा होती है तो लगभग सब एक ही बात कहते हैं कि युद्ध में दूसरा मौका नहीं मिलता और दुश्मन जेंडर देखकर ज्यादा या कम अटैक नहीं करेगा। तो इसका मतलब यह हुआ कि महिलाओं को फ्रंट लाइन पर लीड करने के लिए खुद को साबित करना होगा कि वह किसी भी मानक में पुरुष अधिकारियों से कम नहीं हैं।
अभी अगर हम ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकैडमी में शारीरिक क्षमता का पैमाना देखें तो यह पुरुष कैडेट और महिला कैडेट के लिए अलग रखा गया है। अति उत्कृष्ट (एक्सिलेंट) की कैटिगरी में आने के लिए पुरुष कैडेट को 2.4 किलोमीटर की दौड़ 9 मिनट में पूरी करनी होती है, वहीं महिला कैडेट के लिए यह टाइम 11 मिनट का है। 100 मीटर की स्प्रिंट (तेज दौड़) पुरुष कैडेट को 13 सेकंड में और महिला कैडेट को 16 सेकंड में पूरी करनी होती है। 60 मीटर की स्प्रिंट पुरुष कैडेट को 10 सेकंड में और महिला कैडेट को 15 सेकंड में पूरी करनी होती है। बीपीईटी (बैटल फिजिकल एफिशंसी टेस्ट) में करीब 4.5 किलो वजन के साथ 5 किलोमीटर की दौड़ पुरुष कैडेट को 24.30 मिनट में और महिला कैडेट को 30 मिनट में पूरी करनी होती है। पुरुष कैडेट को 10 चिनअप्स करने होते हैं। महिला कैडेट को इसकी जगह पर 20 पुशअप्स करने होते हैं। 20 किलोमीटर का स्पीड मार्च पूरा करने के लिए पुरुष कैडेट को तीन घंटे 15 मिनट का वक्त दिया जाता है और महिला कैडेट को अतिरिक्त 42 मिनट मिलते हैं। इसी तरह 30 किलोमीटर का स्पीड मार्च पुरुष कैडेट को 5 घंटे 5 मिनट में पूरा करना होता है और महिला कैडेट को यह पूरा करने के लिए 55 मिनट अतिरिक्त दिए जाते हैं।
क्या इसका मतलब है कि महिलाएं शारीरिक क्षमता में पुरुषों से कम हैं? क्या 2.4 किलोमीटर की दौड़ वह 9 मिनट में पूरी नहीं कर सकती हैं, या फिर 10 चिनअप्स या दूसरे पैमाने पर वह खरी नहीं उतर सकतीं? महिला एथलीट्स को ही देख लें तो इसका जवाब मिल जाएगा। माना कि हर महिला शारीरिक क्षमता में उत्कृष्ट नहीं हो सकती लेकिन हर कोई कॉम्बेट रोल में जाना भी तो नहीं चाहेगी। जो भी वह चुनौती लेने को तैयार है, उसे मौका क्यों ना दिया जाए। 100 में से अगर एक महिला अधिकारी भी खुद को साबित कर फ्रंट लाइन पर लीड करना चाहती है तो उससे यह मौका क्यों छीनना? हां यह जरूर है कि उसे हर पैमाने पर खुद को पुरुषों के बराबर साबित करना होगा और कौन कहता है कि वह साबित नहीं कर सकती। उसे मौका तो दीजिए।
पहले महिला अधिकारियों को सेना में सिर्फ मेडिकल कोर, लीगल और एजुकेशन कोर में ही परमानेंट कमिशन दिया जाता था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सेना में महिलाएं अब इंजीनियर्स, सिगनल्स, सर्विस कोर, ऑर्डिनेंस कोर, ईएमई, इंट कोर, एयर डिफेंस और एयर एविएशन में भी परमानेंट कमिशन की हकदार हैं। क्राइटीरिया पूरा करने वाली महिला अधिकारी इन 8 ब्रांच में परमानेंट कमिशन पा सकती हैं। भारतीय सेना ने महिला अधिकारियों के लिए जो पोस्टिंग पॉलिसी बनाई है, उसमें कहा गया है कि इन सभी 8 ब्रांच में महिला अधिकारियों के लिए पोस्टिंग के नियम पुरुष अधिकारियों की तरह ही होंगे। इसलिए ये सभी महिला अधिकारी अब फील्ड, लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल, लाइन ऑफ कंट्रोल, हाई एल्टीट्यूट एरिया में पोस्टिंग के लिए योग्य होंगी। सवाल यह है कि लीड करने का मौका कब मिलेगा?
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स