आमतौर पर ड्रोन का काम हमारा जीवन आसान और सुविधापूर्ण बनाना है। कोरोना काल में तेलंगाना और हिमाचल की दुर्गम जगहों तक ड्रोन से ही दवाइयां पहुंची। किसान खेतों में दवाइयां और खाद ड्रोन से डाल रहे हैं। खुद सरकारें भी ड्रोन से ढेरों क्रिएटिव काम लेती रही हैं। मगर दुनिया की कुछ सरकारें ड्रोन पाकर हैवानियत पर उतर आई हैं। यूएन तक को कहना पड़ा है कि ड्रोन मानवाधिकारों के सबसे बड़े विध्वंसक बनकर उभरे हैं।
ड्रोन का विध्वंसक रूप अब एक वास्तविकता है। टारगेट किलिंग के सैकड़ों मामलों में आम नागरिकों की जानें गई हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ मानवाधिकार परिषद ने इन्हें मानवाधिकारों के उल्लंघन का दोषी ठहराया है-
परिषद की रिपोर्ट में अनेक देशों द्वारा टारगेट किलिंग के उद्देश्य से सशस्त्र ड्रोन के पिछले पांच वर्षो में बढ़ते प्रयोग पर चिंता प्रकट करते हुए इनसे होने वाले विध्वंस की जिम्मेदारी तय करने पर सवाल उठाए हैं।
परिषद ने इनकी मारक क्षमता को भी सवालों के कटघरे में खड़ा किया है। ड्रोन से टारगेट किलिंग की बढ़ती घटनाओं से राजनीतिक और आम नागरिकों की हत्याओं ने इंसानियत को हर स्तर पर चुनौती दे दी है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जब भी टारगेट किलिंग वाले ड्रोन का प्रयोग जरूरी सुरक्षा मानकों के विरुद्ध किया गया, सैकड़ों लोगों को जान गंवानी पड़ी। इससे मानवाधिकार, लोकतंत्र, शांति और सुरक्षा से जुड़े नियम भंग हुए।
ड्रोन हमलों को नरसंहार के लिए प्रयोग किए जाने वाले मामलों को अब इंटरनैशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस और यूरोपियन कोर्ट ऑफ ह्यूमन राइट के तहत लाने की दलील दी जा रही है।
आतंकी ड्रोन : रिपोर्ट है कि ड्रोन अब लीबियन नैशनल आर्मी, हरकत तहरीर अल-शाम और फिलीस्तीनी इस्लामिक जिहाद, आईएसआईएस, अल कायदा, हरकत उल अंसार जैसे 20 संगठनों के पास भी हैं। 2017 में मोसुल, इराक से ड्रोन हमले एक साथ कुर्दिश, अमेरिकी और फ्रांसीसी सेना पर हुए। हफ्तार सशस्त्र संगठन के ड्रोन हमलों में बड़ी संख्या में आम नागरिक मारे गए। 2019 में वहां शरणार्थी शिविरों पर भी ड्रोन हमला हुआ, ढेरों शरणार्थी मारे गए। इसी साल जम्मू में वायुसेना हवाई अड्डे पर पाकिस्तानी ड्रोन ने हमला किया, हालांकि हमले में कोई विशेष नुकसान नहीं हुआ। माना जा रहा है कि 2032 तक इन संगठनों के पास 40% ड्रोन 90 फीसदी अचूक मारक क्षमता से लैस होंगे।
जब भी ड्रोन हमले की बात आती है, भले ही वे सरकारें करें या आतंकवादी, हमारी दुनिया की शक्ल कुछ और बिगड़ जाती है-
2015 से मिस्र, यूके, इराक, ईरान, इस्राइल, नाइजीरिया, पाकिस्तान, सऊदी अरब, तुर्की, यूएई और अमेरिका ने ड्रोन का प्रयोग टारगेट किलिंग के लिए शुरू कर दिया था।
तुर्की ने ड्रोन का प्रयोग कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी के खिलाफ किया। नाइजीरिया ने 2016 को बोको हरम के ठिकानों पर मारक ड्रोन के प्रयोग करने की बात स्वीकार की। पाकिस्तान ने भी 2015 में पहली बार ड्रोन का प्रयोग तीन खूंखार आतंकियों को मारने के लिए किया।
अमेरिकी ड्रोन हमले में 3 जनवरी 2020 में ईरानी मेजर जनरल कासिम सुलेमानी की बगदाद एयरपोर्ट पर हत्या कर दी गई। हमले में पांच इराकी और चार ईरानी नागरिकों की भी जान गई। इस हमले को यूएन सहित कई देशों ने अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार नियमों के खिलाफ बताया।
इसी ड्रोन से सऊदी अरब के तेल ठिकानों को भी निशाना बनाया गया। इसी साल जनवरी में अबू धाबी एयरपोर्ट पर मारक ड्रोन के हमले में दो भारतीय और एक पाकिस्तानी नागरिक भी मारे गए।
वर्ष 2010-11 में अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना के ड्रोन हमलों में आम नागरिकों की 10 गुना अधिक जानें गईं।
2015 में पाकिस्तान में ड्रोन हमले की चूक के चलते सैकड़ों बेकसूर लोगों की जानें चली गईं, मरने वालों में तकरीबन डेढ़ सौ बच्चे भी थे।
यूएन की रिपोर्ट आने के बाद अगला कदम ड्रोन को लेकर एक अंतरराष्ट्रीय नीति बनाने का है। 2020-21 तक लगभग 140 देशों के पास मारक ड्रोन थे, जबकि 35 देश सबसे खतरनाक ड्रोन रखने का दम भरते थे। यह दिखाता है कि दुनिया भर की सरकारों में मारक ड्रोन को लेकर किस तरह की दीवानगी बढ़ रही है। यूएन की मानें तो इसकी कीमत सबसे अधिक आम आदमी अपनी जान देकर चुकाएगा।
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स