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DevBhoomi Insider Desk
• Fri, 29 Jul 2022 3:55 pm IST


बारिश के खेल ने बिगाड़ा खेती का मिजाज


दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की अब तक की चाल को देखें तो देश भर में न सिर्फ इसकी तीव्रता अलग रही है बल्कि बारिश में भी काफी असमानता दिखी है। 25 जुलाई तक10 देश में सामान्य से 11 प्रतिशत अधिक बारिश हुई है। इसके बावजूद इस मॉनसून से कोई खास फायदा होता नहीं दिख रहा है।

इस साल मॉनसून सीजन की शुरुआत के बाद से अब तक बाढ़ आने, जमीन खिसकने, बादल फटने और बिजली गिरने का सिलसिला जारी है। 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में इस तरह की घटनाएं इस मॉनसून में घट चुकी हैं। इनकी वजह से 1172 लोगों की जान गई है और 0.34 मिलियन हेक्टेयर फसल बर्बाद हो चुकी है। यह बर्बादी की तस्वीर का एक पहलू है। इसका दूसरा पहलू हमें इसी तरह की कई और मुसीबतें दिखाता है:

तेलंगाना, तमिलनाडु, गुजरात, दादरा व नागर हवेली और दमन तथा दीव में अब तक सामान्य से कहीं अधिक बारिश हो चुकी है। तेलंगाना में तो सामान्य से 110 प्रतिशत अधिक बारिश हुई। छह अन्य प्रदेशों और दो केंद्र शासित प्रदेशों में भी सामान्य से अधिक बारिश हुई है।
उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार, पश्चिमी बंगाल और केरल में बारिश सामान्य से कम हुई है। सबसे कम बारिश उत्तर प्रदेश में ही हुई है। यहां 54 प्रतिशत कम बारिश हुई है। यूपी के जौनपुर में 82 प्रतिशत कम, फर्रुखाबाद-कौशांबी में 83 प्रतिशत कम, और रामपुर में 88 प्रतिशत कम बारिश हुई है। झारखंड में भी 49 प्रतिशत कम बारिश हुई है। बिहार में 45 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल में 26 प्रतिशत कम बारिश हुई है। केरल में भी 22 प्रतिशत की कमी है।
मणिपुर में 36 प्रतिशत, त्रिपुरा में 31 प्रतिशत, मिजोरम में 17 प्रतिशत और नगालैंड में 13 प्रतिशत बारिश कम हुई है। हालांकि इन राज्यों में बादल फटने और जमीन खिसकने जैसी घटनाओं में 65 लोगों की जान जा चुकी है।
उत्तराखंड के बागेश्वर में 184 प्रतिशत अधिक बारिश हुई, तो पंजाब के फिरोजाबाद में 114 प्रतिशत और फतेहाबाद में 98 प्रतिशत अधिक बारिश हुई है। राजस्थान के बीकानेर में 134 प्रतिशत और गंगानगर में 160 प्रतिशत अधिक बारिश हुई है।

मौसम विभाग के अनुसार बिहार के 38 में से 36 जिलों में सामान्य से कम बारिश हुई है। बिहार में मॉनसून की कुल बारिश का 50 प्रतिशत हिस्सा जून-जुलाई में ही बरसता है। लेकिन इस बार बारिश कम होने से धान पर काफी बुरा असर पड़ सकता है। धान लगाने का उपयुक्त समय 15 जुलाई तक ही होता है। अब अगर अगस्त में बारिश सामान्य स्तर पर पहुंच भी जाए, तो किसानों को उसका नुकसान ही होगा, क्योंकि फिर बाढ़ धान की फसल बर्बाद कर देगी।

क्यों बदल रहा है ट्रेंड
कई ऐसी रिसर्च हैं जो बताती हैं कि भारत में 1901 से 2012 के दौरान बारिश के ट्रेंड में कमी आ रही है। इसकी कई सारी वजहें भी इन्हीं में दर्ज हैं। आइए देखते हैं क्या हैं मुख्य कारण:

पहली, हिंद महासागर लगातार गर्म हो रहा है। इसके चलते जमीन और महासागर के तापमान का अंतर कम हो रहा है।
दूसरी, मॉनसून में होने वाली बारिश विभिन्न जगहों के तापमान के अंतर पर निर्भर करती है। महासागर के गर्म होने का असर अब जमीन पर भी पड़ रहा है।
तीसरी, अरब सागर के गर्म होने से ही भारत में बारिश की तीव्र गतिविधियां होती हैं। इस तरह की तीव्र बारिश पूर्वोत्तर राज्यों जैसे असम, मेघालय में जून में ही देखने को मिली।
चौथी, अतिवृष्टि के लिए महासागरों से आ रही नमी भी जिम्मेदार है। जुलाई में महाराष्ट्र और राजस्थान में तीव्र बारिश के चलते बाढ़ आई। इन घटनाओं में करीब 35 प्रतिशत नमी अरब सागर से आई थी।
इस बार जहां मॉनसून सीजन में बारिश से खासतौर पर धान की खेती पर बुरा असर पड़ा है, वहीं इससे पहले हीट वेव के कारण गेहूं की यील्ड में कमी आई थी। मौसम के असामान्य पैटर्न से किसानों की स्थिति और खराब होगी, जो पहले ही खेती की लागत बढ़ने से परेशान हैं।

सौजन्य से : नवाभारत टाइम्स