भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर इस समय दुनिया के बड़े देशों में सबसे तेज है। कई रिपोर्ट्स बताती हैं कि भारत में छोटे और मध्यम दर्जे के शहरों और गांवों में तेजी से विकास हो रहा है, बाजार भी बढ़ रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में मोबाइल फोन और इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या कुल आबादी की करीब 88% है, गांव-गांव में तकनीकी सुविधाओं का लाभ पहुंच रहा है। आर्थिक स्थिति सुधरने से काफी लोग स्टॉक मार्केट में भी निवेश करने लगे हैं।
यह बात सच है कि निवेशक अपनी धारणा सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध जानकारी और खबरों से बनाते हैं। अगर निवेशकों को किसी कंपनी और प्रबंधन पर भरोसा है तो उस स्टॉक को हाई वैल्यूएशन मिलता है। इसी तरह शेयर प्राइस में तेजी निवेशकों के कंपनी पर विश्वास और उसे प्रदर्शन पर निर्भर होती है। लेकिन कभी-कभी बाजार के कुछ उतार-चढ़ाव अफवाहों के आधार पर या कुछ ऐसे तत्वों के हस्तक्षेप के कारण हो जाते हैं, जिनसे आम निवेशकों की सुरक्षा जरूरी हो जाती है।
हिंडनबर्ग केस
उदाहरण के तौर पर, पिछले दिनों अडाणी ग्रुप से रिलेटेड ऐसी कुछ घटनाएं हुई थीं। हिंडनबर्ग और ऑर्गनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रॉजेक्ट की रिपोर्ट जारी होने से इस कंपनी के शेयरों में गिरावट आई और आम निवेशकों पर भी इसका असर पड़ा। हालांकि ध्यान रखना चाहिए कि दोनों रिपोर्टों के बावजूद अडाणी ग्रुप में कुछ विदेशी निवेशक जैसे GQG पार्टनर्स, कतर इन्वेस्टमेंट अथॉरिटी सहित और भी लोग निवेश कर रहे हैं।
अदालत में सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति की रिपोर्ट के मुताबिक इस मामले में 24 जनवरी से 27 फरवरी के बीच अडाणी ग्रुप में भारतीय निवेशकों को लगभग 29,200 करोड़ का नुकसान हुआ है। सेबी भी मामले की जांच कर रहा है। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि कुछ विदेशी निवेशकों सहित एक दर्जन कंपनियां अडाणी ग्रुप के शेयर में ‘शॉर्ट’ करने से मुनाफे में रहीं। कुछ निवेशकों द्वारा विशिष्ट कंपनियों में कृत्रिम तरीकों से भाव गिराना और उसका व्यक्तिगत लाभ उठाकर बेच देना कई देशों में गैर-कानूनी है। इसलिए यहां सवाल उठता है कि क्या अडाणी ग्रुप के बारे में जो आरोप लगाए गए, उनके विषय में तथ्यात्मक जांच की गई?
नए नियम
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक इंटरव्यू में शॉर्ट सेलिंग को लेकर सेबी के रोल पर प्रकाश डाला था। उन्होंने कहा था कि नियमों के समुचित पालन से कॉरपोरेट गवर्नेंस को बढ़ावा मिलता है, जिससे अर्थव्यवस्था निर्बाध रूप से बढ़ती है। गलत सूचना और अफवाह निवेशकों के विश्वास को हिला सकते हैं। बाजार और अर्थव्यवस्था पर भी इसका गहरा असर पड़ता है। केवल विदेशी निवेशकों का ही नहीं, भारत के हजारों छोटे और मध्यम वर्गीय निवेशकों का भी नुकसान हो सकता है। अच्छी बात यह है कि सेबी के नए नियमों के मुताबिक अब कंपनियों को मीडिया में चल रही कंपनी से संबंधित सार्वजनिक निवेश की अफवाहों या खबरों की पुष्टि या खंडन करना होगा। यह सूचना दिए जाने के 24 घंटे के भीतर कंपनी को स्पष्टीकरण देना होगा। यह नियम शीर्ष 100 कंपनियों के लिए 1 अक्टूबर 2023 से लागू हो जाएगा और शीर्ष 250 कंपनियों के लिए 1 अप्रैल 2024 से।
सुलझेगी समस्या
दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था के रूप में उभरने के लिए जरूरी है कि कॉरपोरेट गवर्नेंस की सुरक्षा और अनुपालन हो और अफवाहों को भारत के आर्थिक ढांचे में बाधा न बनने दिया जाए। इसके लिए सेबी, RBI, ED, स्टॉक एक्सचेंज और सरकार को मिलकर काम करना होगा। इसके साथ ही विश्व के अन्य विकसित केंद्रों के अधिनियमों को भी ध्यान में रखना होगा। सिंगापुर और दुबई हमारे लिए अच्छे उदाहरण हैं और दोनों ही देशों से निवेश हमारे देश में आता है। आशा करते हैं कि सेबी के नए नियम लागू होने से इस समस्या का काफी हद तक समाधान होगा।
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स