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DevBhoomi Insider Desk
• Fri, 25 Mar 2022 3:54 pm IST


क्‍या बिना बॉस बदले नहीं चलेगा कांग्रेस का काम?


गांधी परिवार के लिए कांग्रेस को रिवाइव करना तो दूर, संभाले रखना भी मुश्किल होता जा रहा है। पांच राज्यों में ताजा-ताजा हार के बाद अनमनाए नेताओं की लिस्ट न सिर्फ लंबी हो गई है। पार्टी वर्कर्स में जोश नहीं, फ्रस्ट्रेशन का लेवल हाई है। 10 जनपथ के लिए G-23 वाले अलग चुनौती हैं। गाहे-बगाहे कोई न कोई बोल ही देता है कि भई, बहुत हुआ! परिवार के हाथ में पार्टी का रिमोट नहीं रखना चाहिए। कोई और अध्यक्ष की कुर्सी संभाले। एक प्रस्ताव आ भी गया है कि राहुल गांधी लोकसभा में नेता बन जाएं, कांग्रेस किसी गैर-गांधी के हिसाब से चले। विरासत में मिली चीज संभालकर रखना बड़ी जिम्मेदारी होती है। गांधी परिवार की वर्तमान पीढ़ी अब तक यह जिम्मेदारी निभाने में उतनी सफल नहीं रही है। कपिल सिब्बल ऐसे ही नहीं कह रहे हैं कि गांधी परिवार को किनारे हो जाना चाहिए।

अभी-अभी कांग्रेस छोड़कर गए डॉ कर्ण सिंह के पुत्र विक्रमादित्य सिंह की सुनिए। सोनिया गांधी को इस्तीफे में लिखते हैं कि पार्टी जमीनी हकीकत से दूर है। इसमें कोई शक नहीं कि कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। पिछले कुछ सालों में कांग्रेस ने केवल जनाधार ही नहीं खोया, व्यापक स्तर पर परसेप्‍शन की लड़ाई में भी भाजपा से मुंह की खाई है। फिर सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी के हाथ से ताकत लेने की बात उठे भी क्यों न!

कांग्रेस की समस्या वंशवाद नहीं है। जनता को वंशवाद से दिक्कत होती तो इस वक्त देश के सात बड़े राज्‍यों के मुख्‍यमंत्री कोई और होते। तमिलनाडु (एमके स्टालिन), महाराष्ट्र (उद्धव ठाकरे), आंध्र प्रदेश (जगन मोहन रेड्डी), तेलंगाना (केसीआर), कर्नाटक (बसवराज बोम्मई), ओडिशा (नवीन पटनायक), झारखंड (हेमंत सोरेन)… इस लिस्‍ट में अजित पवार को भी जोड़ सकते हैं जो महाराष्ट्र में डेप्‍युटी सीएम हैं। तेजस्‍वी यादव ने भी बिहार विधानसभा चुनाव में अपनी छाप छोड़ी।

बीजेपी में भी तो वंशवाद है मगर वह ऐसे नेताओं का इस्तेमाल भी अलग तरह से करती है। कांग्रेस से उसने ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह, रीता बहुगुणा जोशी जैसे नेता लिए। पार्टी के भीतर पहले से ही कई पिता-पुत्रों/पुत्रियों की जोड़ियां मौजूद हैं जो परफॉर्म भी कर रही हैं। फिर चाहे वह राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह हों या प्रेम कुमार धूमल के पुत्र अनुराग ठाकुर… बीजेपी का वर्किंग स्टाइल काफी कुछ कॉर्पोरेट बेस्‍ड है। यहां परफॉर्मेंस पर रिवार्ड्स मिलते हैं, अंडरपरफॉर्म करो तो पर भी कतरे जाते हैं।

प्राइवेट सेक्टर की फिलॉसफी है, ‘जॉब के वक्‍त बॉस को देखो, कंपनी नहीं।’ बॉस सही होगा तो किसी भी कंपनी में अपने कर्मचारियों का भला कर ही देगा। बीजेपी के पास नरेंद्र मोदी का चेहरा है, उनके नाम पर वोट पड़ते हैं। जिनके जीतने की कोई उम्मीद नहीं, वो मोदी के नाम पर चुनाव जीत जाते हैं। कांग्रेस में मोदी के मुकाबले राहुल गांधी है मगर वह पिछले लोकसभा चुनाव में अमेठी की अपनी सीट तक नहीं बचा पाए। उनके नाम पर किसी और के जीतने की बात फिलहाल बेमानी है। कई कांग्रेसी तो ‘बॉस फैमिली’ से परेशान होकर पार्टी छोड़ गए हैं।

एक-एक करके कांग्रेस राज्यों में सत्‍ता से बाहर होती चली गई मगर 10 जनपथ ने कोई सर्जरी करने की जहमत नहीं उठाई। यह ढुलमुल रवैया पार्टी को भारी पड़ रहा है। हर हर के बाद नेतृत्व का ‘छुट्टी’ पर चले जाना कार्यकर्ताओं में कितना जोश फूंकता होगा भला!

कांग्रेस को अपना बॉस बदलना होगा। ऐसा नहीं कि बॉस बदलते ही चमत्कार हो जाएगा। बॉस में दम भी तो होना चाहिए। ऐसा बॉस चाहिए तो पार्टी में आमूलचूल बदलाव ला दे। बीजेपी की 24×7 वर्किंग स्टाइल का मुकाबला करवा सके। अभी कांग्रेस में राष्‍ट्रीय स्‍तर पर कोई नेता नहीं दिखता जो बीजेपी के शीर्ष नेताओं की तरह चौबीसों घंटे लगा रहता हो। देश की सबसे पुरानी पार्टी किसी टाइम-लूप में फंसी हुई है। चुनाव आते हैं, पार्टी नींद से जागती है। रोड शो होने लगते हैं, रैलियां होती हैं, खूब माहौल बनाया जाता है और नतीजों के बाद पार्टी फिर सो जाती है। यूं ही साढ़े चार साल गुजर जाते हैं, फिर चुनाव आते हैं और यही प्रक्रिया बार-बार दोहराई जाती है। केंद्रीय स्तर पर और प्रादेशिक स्तर पर भी।

कांग्रेस का नया बॉस ट्विटर पर नरेंद्र मोदी का तिलिस्म तोड़ने की बस बातें न करें, जमीन पर अमल भी करके दिखाए।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स