Read in App

DevBhoomi Insider Desk
• Thu, 27 Jan 2022 2:58 pm IST


सांड: आस्था, आतंक या आवारागर्दी पर व्यंग्य


आज तोताराम सवेरे आते ही आध्यात्मिक मूड में आ गया, और हमारी बजाय पत्नी से बोला- भाभी, आज बड़ा पवित्र दिन हैं, कल मोक्षदा एकादशी है और आज बाबा विश्वनाथ के काशी कोरिडोर के लोकार्पण का लाइव प्रसारण होगा. मज़े से चाय और पकौड़ों के संग यह लोक और परलोक सुधारेंगे. इस नास्तिक, नकली शिव भक्त के पापों का प्रक्षालन भी हो जाएगा.

हमने कहा- हमारा मन साफ़ है इसलिए हमें भय नहीं लगता. चोर, उचक्के जब मंदिर में चप्पलें चुराने जाते हैं तो बड़े लम्बे तिलक खींचकर, जोर जोर से ‘नमः शिवाय’, ‘नमः शिवाय’ करते हुए जाते हैं. हमारे और प्रभु के बीच न कोई पर्दा है और न ही कोई दलाल. और क्या तू ही असली शिवभक्त हैं. तेरे अलावा राहुल से लेकर राजभर तक सभी नकली. क्या शिव का कॉपीराइट तुम्हीं ने ले रखा है ?

वैसे यह बाबा विश्वनाथ से ज्यादा मोदी जी का ड्रीम प्रोजेक्ट है. वैसे परिसर का काम अभी पूरा नहीं हुआ है फिर भी पूरे एक महिने तक इसे खेंचा जाएगा.

बोला- उपलब्धि चुनाव के समय नहीं दिखाएँगे तो कब दिखायेंगे ?

हमने कहा- ठीक है, यह जिनका एजेंडा है वे देखें, मन वांच्छित फल पायें. हमने तो सुना है-

“रांड, सांड, सीढ़ी, सन्यासी।

इनसे बचे तो सेवे काशी।।”

बोला- क्या यह कविता लिए मोदी जी ने लिखी है ? अनुप्रासात्मक शैली तो मोदी जी वाली ही है. वैसे मोदी जी की व्यवस्था में कोई कमी नहीं होगी. कहीं भी कोई आवारा सांड दिखाई नहीं देगा. जब जापान के प्रधानमंत्री आये थे तब भी सांडों को कहीं दूर छुड़वा दिया गया था.

हमने कहा- तोताराम, हमने तो काशी विश्वनाथ के आसपास तंग गलियों में भीड़ भाड़ वाला एक ख़ास माहौल देखा है. वही छवि नैनों में बसी हुई है और काशी के आवारा और आतंकी सांडों की भी.

बोला- मास्टर, सांड नहीं नंदी. नंदी हमारे पूज्य और शिव के वाहन हैं. उन्हें आवारा और आतंकी कह कर तू धर्मप्राण हिन्दुओं की आस्था पर चोट कर रहा है.

हमने कहा- तुझे आस्था की पड़ी है, पता भी है कल पिपराली रोड़ पर जाट कॉलोनी में एक बुज़ुर्ग सांड को रोटी खिलाने गया कि सांड ने उस पर हमला कर दिया और जब तक वह मर नहीं गया उसे कुचलता रहा. ऐसे सांड को आतंकी नहीं कहें तो क्या महात्मा गाँधी कहें ? जिसके पास कोई काम न हो और न ही काम करने की कोई मज़बूरी हो तो वह आवारागर्दी नहीं करेगा तो क्या करेगा ? क्या पहले लोग सांडों से आतंकित नहीं रहते थे ? किया क्या जाए, न तो बैलों को हल चलाना पड़ता और न ही पहले की तरह सांडों पर नस्ल सुधार की जिम्मेदारी.अब तो विदेशी सांडों के सीमन से संतानोत्पत्ति होने लगी है. ऐसे में देशी-विदेशी सभी तरह के पुल्लिंग गौवंश समस्या बने हुए हैं. ये लोगों को वैसे ही परेशान कर रहे हैं जैसे सेवा के लिए सड़क से संसद तक घूम रहे आतंकी टाइप सेवक.

बोला- आवारा पशुओं के लिए नगर परिषद् का १३ लाख का सालाना बजट तो है. और आयुक्त ने कहा भी है कि आवारा सांडों को शहर से बाहर छुड़वाया जाएगा.

हमने कहा- यह समस्या का कोई हल नहीं है. क्या जहां छुड़वाया जाएगा वहाँ इंसान नहीं रहते ? किसी लफंगे और अपराधी मंत्री से इस्तीफा ले लिया या पार्टी से निकाल दिया तो क्या हो गया ? गन्दगी अपने घर आगे से पड़ोसी के घर के आगे फेंक देना कोई सफाई नहीं है.

बोला- वैसे हिन्दू मनुष्य ही नहीं, हिन्दू पशु-पक्षी भी शांतिप्रिय और दयालु होते हैं .

हमने कहा- तो हिन्दुओं की दयालुता की बात भी सुन ले, उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में हिन्दुओं ने कमजोर और मरणासन्न सैंकड़ों गायों को जिंदा दफना दिया गया है.

बोला-हो सकता है यह सांड कहीं पकिस्तान की तरफ से देश में घुस आया हो. तभी तो इसने एक हिन्दू बुज़ुर्ग पर हमला किया.

हमने कहा- क्या जब देश में सभी हिन्दू थे तब वे आपस में लड़ते नहीं थे? लखीमपुर खीरी में जीप और किसान दोनों हिन्दू नहीं थे? वैसे यह सांड पाकिस्तानी नहीं हो सकता क्योंकि इसने एक ख़ास तरह की टोपी, लम्बा कुरता और छोटा पायजामा नहीं पहन रखा है.

बोला- तो फिर उपाय क्या है?

हमने कहा- दो उपाय हैं. पहला तो यह कि सभी नंदियों को शिव के पास कैलाश पर्वत पर भेज दिया जाये. दूसरा यह कि ऐसी गायें विकसित की जाएँ जो बिना सांडों के केवल बछियाओं को ही जन्म दें.

बोला- क्या ऐसा संभव है?

हमने कहा- जब बिना मुर्गों के अंडे पैदा किये जा सकते हैं तो यह भी संभव है? वेदों में देख, ज़रूर कोई न कोई क्लू मिल जाएगा.

सौजन्य से - नवभारत टाइम्स