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• Mon, 5 Apr 2021 11:22 am IST


बचत का बचाव


केंद्र सरकार ने छोटी बचतों पर ब्याज दर घटाने के अपने फैसले को वापस लेकर सुखद कार्य किया है। बुधवार को अचानक ब्याज दरों में कटौती का फैसला करने के बाद सरकार आलोचकों के निशाने पर आ गई थी, लेकिन गुरुवार होते ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बता दिया कि सभी छोटी बचतों पर पुरानी यानी 2020-21 की दरें ही लागू रहेंगी। सरकार ने बचत खातों, पीपीएफ, टर्म डिपॉजिट, आरडी और बुजुर्गों से जुड़ी बचत योजनाओं तक पर ब्याज दरों में कटौती कर दी थी। नई दरें पहली अप्रैल से लागू हो जातीं और 30 जून, 2021 तक प्रभावी रहतीं। ऐसा लगता है, सरकार ब्याज दरों को कुछ समय के लिए कम करके समग्र प्रभाव देखना चाहती थी, लेकिन जिस तरह से लोगों ने विरोध किया, उससे सरकार को समय रहते लग गया कि ब्याज दर घटने से उसकी लोकप्रियता काफी प्रभावित होगी। बचत पर ब्याज भारत में एक संवेदनशील मामला है। लोग बहुत उम्मीद से बचत करते हैं, क्योंकि उन्हें पता होता है, मुसीबत में उनके साथ जल्दी कोई खड़ा नहीं होगा या मुसीबत के समय किसी के सामने हाथ फैलाना पड़ेगा। ऐसे में, थोडे़ अच्छे दिनों में की गई बचत बुरे दिनों के कहर से बचाने में मददगार साबित होती है। 

वाकई, यह दौर ऐसा नहीं है, जब बचत को अनाकर्षक बनाया जाए। महामारी का असर जारी है, आर्थिक क्षति की पूर्ति अभी नहीं हुई है। हमें अच्छे से पता है, लोगों की बचत घटी है और बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जो अगली किसी बड़ी मुसीबत को झेलने की स्थिति में नहीं हैं। बचत के अनाकर्षक होने पर सेवाभावी लोगों और संस्थाओं पर भी असर पड़ता है। ज्यादातर बुजुर्गों को, जिनकी कोई अन्य कमाई नहीं होती और जो अपनी बचत पर मिलने वाले ब्याज से ही सारी उम्मीदें लगाए होते हैं, ब्याज दर घटने से तगड़ा झटका लगता। हालांकि, लोगों के मन में एक आशंका तो अब पैदा हो ही चुकी है कि देर-सबेर सरकार अपनी कमाई बढ़ाने के लिए ब्याज दरों में कटौती करेगी। महामारी के भयानक असर के कारण सरकार की कमाई घट रही है, उसे कहीं से पैसा कमाना या बचाना है। चूंकि पेट्रोल, डीजल की कीमतों में वृद्धि की तरह ब्याज दर में कटौती भी सरकार के लिए राजस्व जुटाने का एक आसान रास्ता है, इसलिए अनेक अर्थशास्त्री सरकार कोब्याज दरें घटाने की सलाह देंगे। फैसला वापस लेने के बावजूद अर्थव्यवस्था के कर्ताधर्ताओं को ध्यान में रखना चाहिए कि वर्ष 2008 की मंदी के समय छोटी बचतों ने ही इस देश को आर्थिक तबाही से बचाया था। ऐसे में, यह चिंता की बात है कि बचत योजनाओं के प्रति लोगों के लगाव में कमी आ रही है। नोटबंदी के बाद लोगों ने बैंकों में पैसे रखने को तरजीह दी है, लेकिन आर्थिक कमजोरी की वजह से बचतों का आंकड़ा यथोचित बढ़ नहीं रहा है। यह तथ्य है, देश में वित्त वर्ष 2007-08 में सकल घरेलू बचत दर 36.8 प्रतिशत थी, वह लगातार घटती हुई वित्त वर्ष 2017-18 में 29.8 प्रतिशत रह गई थी। महामारी ने बचत के इन आंकड़ों को और कम किया होगा। ऐसे में, ब्याज दरों में कमी समाज के एक बड़े वर्ग की सामाजिक सुरक्षा को तोड़ देगी। बुजुर्गों या जरूरतमंदों को सीधे नकदी देने से ज्यादा जरूरी है कि समाज में बचत का आकर्षण कायम रखा जाए, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग आत्मनिर्भर बनें।

सौजन्य–हिंदुस्तान