उत्तराखंड के चमोली जिले में जोशीमठ ब्लॉक के हेलंग गांव में 15 जुलाई को मंदोदरी देवी और अन्य घसेरियां रोज की तरह अपने पुश्तैनी चरागाह से घास के गट्ठर पीठ पर लादे गांव लौट रही थीं। तभी राज्य पुलिस और सीआईएसएफ के जवानों ने उन्हें रोक लिया और उनके गट्ठर छीन लिए। विरोध करने पर पुलिस बदसलूकी पर उतर आई और चार महिलाओं को नजदीकी थाने ले गई। साथ में एक दुधमुंहा बच्चा भी था। सोशल मीडिया पर वायरल होते ही मामले ने तूल पकड़ लिया और देखते ही देखते आसपास के ग्रामीणों सहित अनेक राजनीतिक और सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ता महिलाओं के समर्थन में हेलंग पहुंचने लगे।
मामले की नजाकत को देखते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने फौरन प्रशासन से रिपोर्ट तलब की और गढ़वाल मंडल के आयुक्त को जांच के निर्देश दे दिए। यहां तक कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने भी इसका संज्ञान लेकर ट्वीट किया कि ‘पहाड़ों की घास पर पहाड़ के ही लोगों को हक न मिलना सरासर ज्यादती है। स्थानीय लोगों ने पहाड़ों की रक्षा की और संवारा। सरकार उन्हीं को उत्तराखंड के हेलंग में घास काटने से रोक रही है।’
विकास बनाम अस्तित्व
एक बार फिर इस हिमालयी क्षेत्र में विकास बनाम अस्तित्व का प्रश्न खड़ा हो गया है। आजीविका से जुड़े पारंपरिक संसाधनों पर कंपनियों और निजी इजारों (पट्टे पर ठेका लेने वालों) के कसते शिकंजे ने सत्तर के दशक की याद दिला दी। तब स्थानीय जनता पर कड़े प्रतिबंध लागू थे जबकि इन इजारों को स्थानीय संसाधनों पर खुली छूट हासिल थी। तब लोगों ने जल-जमीन-जंगल के अपने पारंपरिक हक-हकूकों को लेकर चिपको जैसी अहिंसक क्रांति का बिगुल बजाया और सरकारी तंत्र को जनता के हक में झुका डाला था। फर्क सिर्फ इतना है कि तब पहला निशाना जंगल थे, आज नदियां हैं। विकास का पर्याय कहे जा रहे इस बड़े निर्माण को ताकतवर बनाने में सरकारी तंत्र लगातार मदद पहुंचा रहा है। इस साठगांठ की जद में सीधे तौर पर स्थानीय जनता है।
क्या है परियोजना
गांव के निकट अलकनंदा नदी पर विश्वबैंक की मदद से 440 मेगावाट की ‘विष्णुगाड-पीपलकोटी पनबिजली परियोजना’ का निर्माण कार्य चल रहा है। लगभग 140 हेक्टेयर भूमि पर निर्माणाधीन इस परियोजना का स्वामित्व ‘टिहरी हाइड्रो पावर डिवेलपमेंट कॉरपोरेशन’ (टीएचडीसी) के पास है और निर्माण कार्य का ठेका मुंबई की एक निजी कंपनी को दिया गया है। बांध के लिए पहाड़ों को खोदकर चार सुरंगें बनाई जा रही हैं। यह हेलंग गांव के करीब बन रही है।
खुदाई का मलबा गांव के निकट अलकनंदा के किनारे जिस स्थान पर डाला जा रहा था, वह भर चुका है और अब उनकी निगाहें हेलंग के पारंपरिक चरागाह पर हैं।
THDC ने बहुत ही चतुराई से वहां खेल का मैदान विकसित करने का पासा फेंका और चमोली जिला प्रशासन ने गुपचुप अनापत्ति प्रमाण-पत्र भी जारी कर दिया।
इसी बीच चरागाह में हरे भरे पेड़ काटे जाने लगे और मलबा डंप किया जाने लगा तो ग्रामीणों ने विरोध किया और धरना दिया।
7 जून को हुए इस विरोध प्रदर्शन का सबसे मुखर स्वर 57 वर्षीय मंदोदरी देवी का था। मौका पाकर 15 जुलाई को मंदोदरी और अन्य घसेरियों को सबक सिखाने के इरादे से छह घंटे तक हिरासत में लेकर तंत्र ने ताकत दिखला दी।
सवाल अब भी हैं
फिलहाल पलड़ा घसेरियों के हक में तो झुकता दिख रहा है, मगर उनकी परेशानियां खत्म होने वाली नहीं हैं। आजीविका से जुड़े ग्राम्य संसाधनों पर कंपनियों के कब्जे का खतरा बरकरार है। शासन को जनता के प्रश्नों का जवाब देना होगा कि 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद उत्तराखंड की सरकार ने नदियों के किनारे निर्माण पर रोक का जो कड़ा फैसला किया था, उसका क्या हुआ?
सुप्रीम कोर्ट के कई फैसले में गोचर/पशु चरागाह से कब्जा हटाने के आदेश जारी किए जा चुके हैं। सवाल उठता है कि इसके बाद भी आखिर इन आदेशों को हेलंग के मामले में निरापद क्यों मान लिया जाता है!
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स