भारत के पर्यावरण की हालत अच्छी नहीं है। उत्तर प्रदेश और पंजाब में वायु और जल प्रदूषण का भीषण प्रकोप है। हमारे देश की सबसे प्रदूषित नदियां आपको पंजाब और उत्तर प्रदेश में मिलेंगी। गोवा में लोग टूरिज्म के लिए जाते हैं। एक वक्त था जब वहां के समुद्र तट बहुत ही साफ-सुथरे माने जाते थे। लेकिन वहां भी प्रदूषण बढ़ रहा है। उत्तराखंड और मणिपुर जहां सबसे ज्यादा जंगल हैं वहां जंगलों का निम्नीकरण और जैव विविधता की हानि बहुत बड़ा मुद्दा है। पांचों राज्यों में जहां कि अभी चुनाव हो रहे हैं, पर्यावरण लोगों की जिंदगी के साथ जुड़ा हुआ है और प्रदूषण उनकी जिंदगी पर असर डाल रहा है। लेकिन अगर आप इन राज्यों के चुनावी चर्चे को पढ़ें तो यह बिलकुल साफ दिखता है कि चुनावों में पर्यावरण मुद्दा है ही नहीं। जो बड़े राजनीतिक दल हैं, उनके चुनावी घोषणापत्र देखें तो पर्यावरण एक-दो जगह दर्ज तो है, लेकिन वायु प्रदूषण, जमीन का गलत दोहन, जलवायु परिवर्तन और पानी- जो कि पर्यावरण के बड़े और बुनियादी मुद्दे हैं, वे इसमें नजर नहीं आते।
हाल-ए-हवा
आज उत्तर प्रदेश के शहर दुनिया भर में वायु प्रदूषण में टॉप पर हैं। गंगा में बहुत पैसा जा रहा है, लेकिन गंगा का जो प्रदूषण है, वह किसी मायने में कम नहीं हुआ है। यमुना सबसे प्रदूषित नदी मानी जाती है। कांग्रेस ने अपने मैनिफेस्टो में वायु प्रदूषण के बारे में थोड़ी-बहुत बात की है। उसने कहा है कि रिवर क्लीनिंग का बजट डबल कर देंगे। अवैध खनन यूपी में एक बहुत बड़ा मुद्दा है, कांग्रेस ने उसको खत्म करने की बात की है। जलवायु परिवर्तन पर उसने कहा है कि वह एक क्लाइमेट चेंज सेल बनाएगी। कांग्रेस ने खाना पकाने के स्वच्छ ईंधन के बारे में भी थोड़ी-बहुत बात की है।
इसके उलट अगर आप भारतीय जनता पार्टी को देखें तो उसने प्रदूषण को ज्यादा महत्व नहीं दिया है, ना ही यह उसके कैंपेन में दिख रहा है। उसने गंगा की सफाई के बारे में जरूर थोड़ी-बहुत बात की है। उसने पानी के बारे में कहा है कि 2024 तक यूपी के हर घर में स्वच्छ पानी पहुंचाया जाने लगेगा। बीजेपी ने थोड़ी-बहुत अक्षय ऊर्जा और स्वच्छ ईंधन के बारे में भी बात की है।
अब समाजवादी पार्टी का मेनिफेस्टो देखें। अखिलेश यादव खुद एक एनवायरनमेंट इंजीनियर हैं, उन्होंने एनवायरनमेंट साइंस से पढ़ाई की है ऑस्ट्रेलिया से। बड़ी हैरानी वाली बात है कि एसपी के मेनिफेस्टो में पर्यावरण के मुद्दे से जुड़ा कोई बहुत बड़ा अनाउंसमेंट नहीं है। यह यूपी में चुनाव लड़ रही तीनों बड़ी पार्टियों का हाल है।
इसी तरह से पंजाब चुनाव में भी पर्यावरण मुद्दा नहीं है। चाहे वह भूजल प्रदूषण हो, मरुस्थलीकरण हो- हकीकत यह है कि पंजाब की जमीन रेगिस्तान में बदल रही है। चाहे वायु प्रदूषण का मसला हो या नदियों के प्रदूषण का, पंजाब टॉप पर नजर आता है। इसके बावजूद यहां आप कांग्रेस, बीजेपी और आम आदमी पार्टी के इलेक्शन मैनिफेस्टो देखें तो वायु प्रदूषण पर थोड़ी-बहुत बात तो तीनों ने की है, लेकिन बाकी के किसी मुद्दे पर किसी ने भी बात नहीं की है। पर्यावरण पर आम आदमी पार्टी का मेनिफेस्टो बहुत कमजोर है। गोवा, उत्तराखंड और मणिपुर में भी यही स्थिति है। उन राज्यों में भी किसी पार्टी ने पर्यावरण के बारे में गंभीरता से बात नहीं की है।
ऐसे में सहज ही सवाल उठता है कि यह मुद्दा राज्यों में हो रहे चुनावों में महत्वपूर्ण क्यों नहीं है? आखिरकार यही तो वह मुद्दा है, जो तय करेगा कि लोगों को साफ हवा, साफ पानी, साफ भोजन मिलेगा या नहीं मिलेगा। यही मुद्दा तय करेगा कि हमारी जलवायु में स्थिरता आएगी या नहीं। जब देश में लोकसभा चुनाव होते हैं, उसमें राजनीतिक दल पर्यावरण के बारे में बड़े जोर-शोर से चर्चा करते हैं। 2019 के चुनाव में सारे राजनीतिक दलों ने पर्यावरण के बारे में अपने मेनिफेस्टो में काफी चर्चा की थी। चुनाव प्रचार के दौरान भी उस पर काफी चर्चा हुई। लेकिन राज्यों के चुनावों में इसकी कोई चर्चा नहीं है। इसका कारण क्या है?
मेरे ख्याल से इसके तीन कारण हैं। एक, यह धारणा बनी हुई है कि पर्यावरण केंद्र सरकार का मुद्दा है, राज्य सरकारों का मुद्दा नहीं है। यह बहुत ही गलत धारणा है। इसी के चलते हमारे देश में पर्यावरण की समस्या बढ़ रही है। अगर देश में पर्यावरण के मुद्दे को हल करना है तो इसे राज्य और स्थानीय सरकारें ही कर सकती हैं। दिल्ली से बैठकर देश के पर्यावरण का मुद्दा हल नहीं हो सकता।
दूसरा कारण यह कि हम पर्यावरण को लोगों की जीविका से जोड़ नहीं पा रहे हैं। यह बुद्धिजीवियों की समस्या है। यह हमारे जैसे पर्यावरणविदों की भी समस्या है कि हम लोगों को बता नहीं पा रहे हैं कि किस तरह से उनकी नौकरी, उनकी जमीन, उनकी जीविका, उनकी जिंदगी पर्यावरण पर निर्भर है और इसके लिए उन्हें आवाज उठाने की जरूरत है। इसी कारण लोग भी पर्यावरण के मुद्दे को चुनावी मुद्दा नहीं बना रहे हैं।
जाति, धर्म, क्षेत्र
तीसरा कारण है कि इन पांच राज्यों में यह चुनाव विकास के मुद्दे पर नहीं हो रहा है, रोजगार के मुद्दे पर नहीं हो रहा है। गोवा और पंजाब में क्षेत्रवाद बहुत बड़ा मुद्दा है। यूपी में चले जाइए, जहां कि अब जाति और धर्म बहुत बड़ा इश्यू है। राज्य के चुनाव वास्तव में जिन मुद्दों पर होने चाहिए थे, उन पर नहीं हो रहे हैं। वे इमोशनल मुद्दों पर हो रहे हैं। इन्हीं वजहों से पर्यावरण का मुद्दा न तो राजनीतिक पार्टियों के मेनिफेस्टो में है, न चुनावी कैंपेन में है और न ही लोग इसके बारे में मांग कर रहे हैं। लेकिन अगर हम भारत को बदलना चाहते हैं, भारत का विकास करना चाहते हैं, तो पर्यावरण और विकास को सबसे ऊपर का चुनावी अजेंडा बनाना ही होगा।
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स