वैसे तो तोताराम कभी मज़ाक में भी साधारण बातों में समय व्यर्थ नहीं
करता लेकिन आज कुछ अधिक ही गंभीर था, बोला- मोदी जी क्या-क्या करेंगे ? राष्ट्रीय समस्याओं में उनका हाथ बटाने का कुछ तो हमारा भी कर्तव्य
बनता है.
हमने कहा- क्यों नहीं. नियम से ‘मन की बात’ सुनते तो है. रसोई गैस की मनमाने
तरीके से बढ़ाई जा रही कीमतों को बर्दाश्त कर तो रहे हैं. देशद्रोही किसानों के
प्रति सहानुभूति दिखाने के लिए हम दिल्ली कब गए ?
बोला- मैं इन छोटी बातों के बारे में
बात नहीं कर रहा हूँ. मैं तो भारत और भारत के लोकतंत्र की पहचान बन चुके चाय और
योगा को खालिस्तानियों के हमले से बचाने में सहयोग करने की बात कर रहा हूँ.
बोला- नहीं, मैं सोचता हूँ कि चाय के महत्त्व को
रेखांकित करने के लिए तेरे इस बरामदे का नाम ‘यूनिवर्सल चाय चर्चा स्थल’ रख दें. अब भारत के लिए इंटरनेशनल नाम बहुत छोटा लगने लगा है.
यूनिवर्सल ही सही है. जब से मोदी जी ने मंगल यान भेजा है तब से ‘नमस्ते ट्रंप’ ही क्या, जाने किस-किस ग्रह से लोग भारत के ‘विकास के मॉडल’ का अध्ययन करने यहाँ आएँगे.
हमने कहा- लेकिन इस चर्चा स्थल पर हम
कई दशकों से चाय के साथ चर्चा करते रहे हैं इसलिए हमारे योगदान को रेखांकित करते
हुए इसके नाम से पहले ‘रमेश जोशी’ और जोड़ दिया जाए.
बोला- मुझे तेरी छोटी सोच, आत्ममुग्धता और यशलिप्सा पर तरस आता
है. अरे, जब नाम ही जोड़ना था तो तोताराम को
क्यों भुला दिया. क्या तोताराम के बिना तेरी यह ‘चाय-चर्चा’ पूरी हो सकती थी ? क्या अर्जुन के बिना गीता की कल्पना
संभव है ?
हमने कहा- इस आत्ममुग्धता और यशलिप्सा
से तो खुद को फकीर कहने वाले भी नहीं बच सके. पहले से ही किसी और नाम से जाने जाने
वाले स्टेडियम को अपने नाम से उद्घाटित करवा लिया. हम तो सामान्य इंसान हैं. और
फिर हमारा बरामदा, हमारी चाय तो फिर स्थल हमारे नाम पर
नहीं तो क्या तेरे नाम पर बनेगा ?
बोला- यह तो मोदी जी की लोकप्रियता से
जलने वालों का दुष्प्रचार है.
हमने कहा- हम दो प्रमाण दे सकते हैं- “1983 में इस स्टेडियम को बनाया गया था. तब
इसका नाम ‘गुजरात स्टेडियम’ हुआ करता था. उस वक़्त यह स्टेडियम
रिकॉर्ड 9 महीने में बन कर तैयार हुआ था.
तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जै़ल सिंह ने इसका शिलान्यास किया था.”
“साल 1994-95 में इस स्टेडियम के नाम के आगे सरदार
वल्लभ भाई पटेल जोड़ा गया था. उस वक़्त गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष नरहरि
अमीन थे.”
बोला- लेकिन तुझे पता होना चाहिए कि
मोदी जी ज़मीन से जुड़े व्यक्ति हैं. कांग्रेस की तरह जन भावनाओं का अपमान तो नहीं
कर सकते. अब क्या करें. जनता पीछे ही पड़ गई तो विनम्रता पूर्वक स्वीकार करना पड़ा.
तुझे याद होना चाहिए कि कुछ दिनों पहले ही उन्होंने कहा था- यदि मोदी का सम्मान ही
करना है तो किसी कोरोना या लॉक डाउन पीड़ित की मदद करो. तुझे यह भी पता होना चाहिए
कि उन्होंने दो एंड्स के नाम भी दो विनम्र देश सेवकों ‘अडाणी और अम्बानी’ के नाम पर रखे हैं.
हमने कहा- तो कोई बात नहीं. तू भी
क्या याद करेगा, जहां तू बैठा है उस कोने का नाम ‘तोता कोर्नर’ रख देते हैं.
बोला- तो इसी ख़ुशी में अब चाय के साथ
नाश्ता भी हो जाए. लेकिन ध्यान रहे, हम किराए पर भारत विरोधी ट्वीट करने वाली ग्रेटा और रियाना के बारे
में कोई बात नहीं करेंगे.
हमने कहा- लेकिन हम भी तो ट्रंप के
लिए चुनाव प्रचार करने ह्यूस्टन गए थे. क्या यह दूसरों के घरेलू मामलों में
हस्तक्षेप नहीं है ?
बोला- ये बड़े लोगों की बड़ी बातें हैं.
सामान्य लोगों पर तोऐसी हरकतों के लिए देशद्रोह का आरोप लग सकता है ।
सौजन्य – रमेश जोशी