कुछ एक्सपर्ट्स मानते हैं कि दुनिया में फिर से शीत युद्ध शुरू हो गया है तो कुछ का कहना है कि यह शुरू होने वाला है। अगर इस बहस में ना भी पड़ें तो यूक्रेन युद्ध से इतना तो तय हो चुका है कि एक खेमा अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और ज्यादातर यूरोपीय देशों का है तो दूसरे खेमे में रूस के साथ चीन खड़ा है और ईरान का भी उन्हें साथ मिला हुआ है। इस खेमेबाजी के बीच दुनिया के करीब तीन चौथाई देश इस गोलबंदी से अलग हैं। इनमें भारत, इंडोनेशिया और ब्राजील जैसे देश शामिल हैं। दूसरी ओर, इस्राइल और तुर्किये जैसे मुल्क रूस के साथ अपने संबंधों को बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं। यह बात इसलिए मायने रखती है क्योंकि इस्राइल-अमेरिका के करीबी रिश्ते किसी से छिपे नहीं हैं। दूसरी ओर, तुर्किये नैटो का सदस्य है और उसने इस अलायंस में शामिल अमेरिका जैसे देशों को तंग कर रखा है। तुर्किये के राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोआन खुद को व्लादिमीर पूतिन का दोस्त बताते हैं और दोनों ही निरंकुश शासक हैं।
खैर, यूक्रेन युद्ध के बहाने शुरू हुई वैश्विक खेमेबाजी में भले ही रूस केंद्र में है, लेकिन इसमें किसी को जरा भी शक नहीं है कि नए शीत युद्ध में देशों के एक समूह का लीडर अमेरिका होगा तो दूसरे का चीन। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका क्वॉड और औकस जैसे मंचों के जरिये चीन के खिलाफ मोर्चेबंदी कर रहा है तो चीन ने भी इस क्षेत्र को लेकर काफी आक्रामक रुख अपना रखा है। वह सामरिक बढ़त के लिए सोलोमन आइलैंड जैसे छोटे देशों के साथ समझौते कर रहा है। इसी वजह से अमेरिका को पापुआ न्यू गिनी जैसे द्वीपीय देशों की याद आई। यानी नए शीत युद्ध की शक्ल तय हो रही है, लेकिन यह कई मायनों में पहले शीत युद्ध से अलग होगी। पहले कोल्ड वॉर में बराबरी का मुकाबला नहीं था। सोवियत संघ कभी भी अमेरिका की आर्थिक बराबरी नहीं कर पाया। जब उसकी इकॉनमी पीक पर थी, तब भी वह अमेरिका के 60 फीसदी के बराबर थी।
नए शीत युद्ध में चीन सबसे बड़ी आर्थिक ताकत होगा और अमेरिका दूसरे नंबर पर। भारत इस दशक के खत्म होने से पहले दुनिया की तीसरी बड़ी आर्थिक ताकत बन सकता है और इस सदी के दूसरे हिस्से में उसके चीन के बाद दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का भी अनुमान लगाया जा रहा है। भारत ही नहीं, इंडोनेशिया और ब्राजील जैसे देश भी बड़ी आर्थिक ताकत बनकर सामने आ रहे हैं। इंडोनेशिया के भी 21वीं सदी के आखिर के 50 साल में विश्व की चौथी बड़ी इकॉनमी बनने का अनुमान लगाया जा रहा है। इसलिए शीत युद्ध की खेमेबंदी में इन्हें भी शामिल करने की कोशिश होगी। इसका एक अहम पहलू चीन और भारत के संबंध भी होंगे, जिनमें सीमा विवाद की वजह से पिछले तीन वर्षों में काफी गिरावट आई है।
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स