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DevBhoomi Insider Desk
• Thu, 27 Jul 2023 1:12 pm IST


मन के रोग की दवा


दो कि तीन हफ्ते पहले अम्मा यानी मेरी नानी अपनी तबियत और उम्र से इस कदर ऊबीं कि मुझे फोन करके राम जी से बात करने को कहने लगीं। जाने कैसे उन्हें इलहाम हुआ कि मेरा भगवान राम से कोई डायरेक्ट कनेक्शन है! उनकी ख्वाहिश थी कि मैं राम जी से कहूं कि अब तो उन्हें मुक्त करें! मैंने पूछा कि क्या हुआ है तबियत को? उन्होंने वही अलामत बताई, जो फिल्म पीकू में अमिताभ बच्चन को थी और जिसके लिए मरहूम इरफान खान दिल्ली से लेकर कोलकाता तक हैरान हुए जाते थे। अम्मा से पूछा, क्या सोचने ज्यादा लगी हो? बोलीं, अब सोचने के लिए कुछ बचा ही नहीं है। सारे बच्चे अपनी-अपनी जगह सेट हैं। क्या सोचें, और क्यों सोचें? मैंने पूछा, अपने बारे में तो सोचती हैं? जवाब में अम्मा ने इधर-उधर करने की कोशिश तो की, मगर पकड़ी गईं। कहने लगीं, बस यही अपनी तबियत से चिंता होती रहती है।

मैंने कहा, अबसे जब भी दिमाग इधर-उधर होने को हो, तुरंत कंठी उठाकर राम का नाम जपना है। दिन में ऐसा तीन बार करना है, और कंठी खत्म होते ही एक गिलास गुनगुना पानी पीना है। यही दवाई है आपकी। राम जी बोले हैं कि इसी से आपकी हर सुबह हलकी होगी, और बेचैनी भी जाती रहेगी। मेरी इस दवा की बाकी सबने तो हंसी उड़ाई, मगर अम्मा के डॉक्टर ने जब यह कहा कि यही सबसे सही दवा है, तब सबने इसे सीरियसली लिया। 96 की उम्र में आप किसी को भारी-भरकम दवा तो नहीं ही दे सकते हैं, खासकर कि बीमारी जब तन से ज्यादा मन से जुड़ी हो। अम्मा ने वैसे भी यही मंत्र ले रखा है। गुरुजी ने उनके कान में यही कहा था कि राम नाम कह। हर दूसरे दिन मैंने फॉलो किया कि अम्मा दवा ले रही हैं या नहीं। पता चला कि आधी कंठी राम नाम कहती हैं, फिर बोर हो जाती हैं। पानी से अलग दुश्मनी हो रखी है।

कल बताने लगीं कि बहुत जगह से लोग आकर झाड़-फूंक कर गए। मामा के दोस्त एक मौलवी साहब को लेकर आए थे, वो झाड़-फूंक करके गए। पास की ही मस्जिद के बूढ़े मौलवी साहब, जो अम्मा को जानते हैं और जिनके पास अम्मा हम बच्चों की नजर उतरवाने लेकर जाती थीं, जब उन्होंने सुना, तो वो भी आकर अम्मा की नजर उतारकर गए। मैंने पूछा, और राम का नाम? कहने लगीं कि उसमें मन नहीं लग रहा, कुछ और बताओ। मम्मी बता रही थीं कि राम से ज्यादा तो वो बाबू यानी मेरे नाना का नाम लेती हैं। बात-बात पर कहती हैं, बाबू, यहां दर्द है। या बाबू, अब जी निकल रहा है। क्या मजाल कि बाबू को पल भर के लिए भी नजर से दूर होने दें। बाबू भी उन्हीं की उम्र के हैं, सो वो भी परेशान हो जाते हैं। पहले सोचा कि बाबू का ही नाम जपने को बोल दूं। फिर एक और आइडिया दिमाग में आया। बोला, अब से राधे-राधे जपो। अब अम्मा राधे-राधे जप रही हैं।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स