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DevBhoomi Insider Desk
• Fri, 10 Jun 2022 5:22 pm IST


कर्ज फिर महंगा, क्या काबू में आएगी महंगाई


अगर रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास रेपो रेट नहीं बढ़ाते तो आश्चर्य होता। रेपो रेट में बढ़ोतरी अपेक्षित थी। लेकिन 50 बेसिस पॉइंट की वृद्धि जरूर थोड़ा आश्चर्य पैदा कर रही है। इतनी ज्यादा बढ़ोतरी की उम्मीद नहीं थी। अभी पिछले महीने ही उन्होंने अप्रत्याशित रूप से 40 बेसिस पॉइंट की वृद्धि की थी। रेपो रेट वह दर है, जिस पर रिजर्व बैंक अन्य कमर्शल बैंकों को कर्ज देता है। इससे ही ब्याज दरें तय होती हैं। इस लगातार बढ़ोतरी के पीछे बढ़ती हुई मंहगाई है, जो आम आदमी के लिए परेशानियां पैदा कर रही है। आरबीआई गवर्नर ने बिना लाग-लपेट के यह मान लिया है कि देश में मुद्रास्फीति चिंताजनक स्थिति में है। उनकी तय की हुई सीमा से कहीं ज्यादा है और यह हालत अगले साल तक बनी रहेगी। इसे ही नियंत्रित करने के लिए उन्हें यह बड़ा कदम उठाना पड़ा है।


महंगाई ने मजबूर किया

बात यहीं खत्म नहीं होती। आने वाले महीनों में एक बार फिर रेपो रेट में बढ़ोतरी की जा सकती है। रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक इस समय मुद्रास्फीति की दर 6 फीसदी की अधिकतम सीमा से ज्यादा है और अगली तीन तिमाहियों तक ज्यादा ही रहेगी। लेकिन उसका यह भी कहना है कि इसका असर रोजमर्रा की चीजों पर अधिक हुआ है। खाने-पीने की चीजों की कीमतों में बढ़ोतरी इस मुद्रास्फीति के 75 फीसदी के लिए जिम्मेदार है। साफ है कि बढ़ी हुई मुद्रास्फीति, क्रूड की आकाश छूती कीमतों और रूस-यूक्रेन युद्ध ने ही रिजर्व बैंक को रेपो रेट बढ़ाने के लिए विवश किया।

फिर भी यह मानना होगा कि महंगाई को थामने में सरकार ने देर लगा दी और अब रिजर्व बैंक इस आग को बुझाने की कोशिश कर रहा है। मार्च महीने से ही कहा जा रहा था कि सरकार को महंगाई थामने की कोशिश करनी चाहिए। लेकिन उसने डीजल और पेट्रोल की कीमतों पर अंकुश नहीं लगाया, जिसका असर हर चीज की कीमत पर पड़ा। डीजल के दाम बढ़ने से कृषि की लागत बढ़ी और अनाज से लेकर फल-सब्जियों तक के दाम तक बढ़ते चले गए क्योंकि उनकी ढुलाई डेढ़ गुनी तक महंगी हो गई।

यह सही है कि कच्चे तेल की कीमतों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दोगुना इजाफा हुआ, लेकिन यह देखते हुए कि डीजल की कीमतें बढ़ने का रोजमर्रा की जिंदगी पर बड़ा असर पड़ता है, सरकार को आग बुझाने वाले कदम उठाने चाहिए थे न कि उसे राजस्व वसूली का जरिया बनाना चाहिए था। यह बात सरकार को जब समझ आई, तब तक महंगाई की लपटें छत से बाहर दिखने लगीं। आखिरकार, सरकार को पेट्रोल, डीजल की महंगाई से राहत देने के लिए इस पर टैक्स में कटौती करनी पड़ी।

अब रिजर्व बैंक अपने टूल के जरिये बाजार में धन के प्रवाह पर अंकुश लगा रहा है। इसका सीधा-सादा तरीका रेपो रेट में बढ़ोतरी ही है। हालांकि केंद्रीय बैंक ने बैंकों के आग्रह पर कैश रिजर्व रेश्यो नहीं बढ़ाया। पिछली बार उसने यह कदम भी उठाया था, जिससे 83,000 करोड़ रुपये सिस्टम से बाहर हो गए थे। दरअसल, यह माना जाता है कि धन की बहुलता से चीजें महंगी होती हैं, लेकिन फिलहाल जो स्थिति है उसके अनुसार सप्लाई की बाधाओं के कारण रोजमर्रा के सामानों की कीमतें बढ़ी हैं। रिजर्व बैंक ने इस ओर इशारा भी किया है। उसका कहना है कि सप्लाई की कमी को सुधारा जा सकता है और इस बात की पूरी संभावना है कि मॉनसून सामान्य होगा। जब 2022-23 का सालाना बजट पेश किया गया था तो उसके अनुमान क्रूड के 70 डॉलर प्रति बैरल की कीमत के हिसाब से लगाए गए थे। इधर, यह 120 डॉलर प्रति बैरल तक जा पहुंचा है। यूक्रेन युद्ध की वजह से क्रूड के दाम में यह तेजी आई।

क्रूड की कीमतों के 120 डॉलर प्रति बैरल तक जाने से देश का बजट गड़बड़ा गया है। सरकार रूस से भारी मात्रा में क्रूड आयात कर रही है क्योंकि यह उसे अंतर्राष्ट्रीय बाजार की कीमतों से 45 डॉलर कम दर पर मिल रही है। यह सही रास्ता है महंगाई से निबटने का। रूस भारत को उसकी क्रूड की जरूरतों का महज दो फीसदी बेचता था, लेकिन यूक्रेन युद्ध के कारण उसने भारत को सस्ती दरों पर ही नहीं बल्कि असीमित क्रूड देने का ऑफर किया है। इसका फायदा भारत ने उठाया है और अभी वह अपनी जरूरत का 25 फीसदी तक क्रूड वहां से आयात कर रहा है।

रिजर्व बैंक ने कुछ ऐसे कदम भी उठाए हैं, जिनसे हाउसिंग सेक्टर को बढ़ावा मिल सकता है। अर्बन और रूरल कोऑपरेटिव बैंकों को पहले की तुलना में दोगुना हाउसिंग लोन देने की इजाजत दे दी गई है। रूरल कोऑपरेटिव बैंकों को कमर्शल प्रॉपर्टीज के लिए कुछ शर्तों पर लोन देने की छूट दे दी गई है। अर्बन को ऑपरेटिव बैंक अब घर-घर जाकर बैंकिंग सेवाएं दे सकेंगे जिससे बाजार में धन की उपलब्धता आसानी से हो जाएगी।

इन सबके बीच रिजर्व बैंक ने इस वित्त वर्ष के लिए जीडीपी विकास दर बढ़ोतरी की संभावना को 7.2 प्रतिशत ही रखा है। हालांकि पिछले दिनों वर्ल्ड बैंक ने वर्ष 2022-23 के लिए जीडीपी विकास दर के प्रोजेक्शन को 8 फीसदी से घटाकर भी 7.5 फीसदी पर रखा था। इसके पहले मूडीज ने इसे 9.8 फीसदी से घटाकर 9.1 फीसदी कर दिया था। उसका कहना था कि ईंधन की बढ़ी हुई दरों और फर्टिलाइजर के आयात पर बढ़े हुए खर्च से सरकार के पूंजीगत खर्च पर असर पड़ेगा।

मिडल क्लास की मुसीबत

बहरहाल, रिजर्व बैंक की नीतिगत घोषणाओं और आकलनों से सरकार को महंगाई से छुटकारा पाने में मदद मिल सकती है। लेकिन जो लोग बैंकों से कर्ज ले चुके हैं या लेने जा रहे हैं, उन्हें ज्यादा ब्याज पर लोन मिलेगा। पिछले महीने एचडीएफसी, आईसीआईसीआई बैंक ने ब्याज दरें बढ़ाने की घोषणा की थीं। जाहिर है, इस बार भी यह बढ़ोतरी होगी और ऑटो लोन, होम लोन पर ब्याज बढ़ेगा। मिडल क्लास के लिए यह समस्या खड़ी कर देगा।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स