गाइये गणपति जगवंदन। शंकर सुवन भवानी के नंदन ॥
सिद्धि सदन गजवदन विनायक। कृपा सिंधु सुंदर सब लायक ॥
मूर्ति पूजा की प्रथा प्राय; सभी देशों, सभी जातियों और सभी धर्म के लोगों में किसी-न-किसी रूप में प्रचलित है। कोई देवता मान कर, कोई छिपा कर-अपने धर्म के बावत और कोई अपने पूर्वज मान कर आराधना-पूजा-प्रार्थना, स्मरण और अन्य किसी रीति-रिवाजों से करते हैं। पहले तो लोग उन देवताओं अथवा पूर्वजों का स्मरण कर उस स्थान की पूजा करते थे जहां वे प्रगट अथवा जन्म लिए थे या निवासी थे। बाद में उनकी मूर्ति किसी भी धर्मानुसार स्थापित कर देते थे, उसके बाद उसे धर्मावलम्बियों को सुपुर्द कर, तीर्थाटन का मार्ग बना देते है। जब इस प्रकार की पूजा से लोगों को संतोष नहीं हुआ तब लोगों ने उनके स्वरुप के प्रकार पर मूर्तियाँ बनायीं और उनकी स्थापना कर पूजा-आराधनायें करने लगे। अपवादों में एकाध धर्म को छोड़ कर। इस प्रकार मूर्ति पूजा का प्रचलन आरम्भ हुआ। विदेशों में भी मूर्ति पूजा की प्रथा है। चीन, जापान में बुद्ध, अधिकांश योरोप, अमेरिका आदि देशों के निवासी ईसामसीह को पूजते हैं। इस प्रकार देखा जाय तो विश्व के सभी देशों के निवासी एवं विविध धर्मों के अनुयायी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से मूर्ति पूजक कहे जायेंगे।
इसी क्रम में प्रथम पूजनीय गणपति की चर्चा साधकों के लिए करेंगे। इनका वाहन चूहा है। चूहा ज्ञान प्राप्ति प्राणी का चिन्ह है। यह एक रात में ही लगभग 05 किलोमीटर की यात्रा कर सकता है। इनकी प्रजनन एक वर्ष में अनुमानतः हजारों की तादात में है, जो ज्ञान का प्रचार काफी लोगों तक प्रचारित कर सकेगा। इनके मुँह पर की मूंछें एंटीना जैसा कार्य करती है। विश्व भर का 20 प्रतिशत खाद्यान्न का आहार बना कर, ये तंदरुस्त रहते हैं, साथही इसी आहार को सभी जीव-जंतु, किट-पतंग और पशु-पंक्षी के आहार का ध्यान रखते हैं। हमें गणपति की तरह सोच कर हमारा कल्याणकारी सभी हैं। भाव ये है- साधक अब भी अद्वैत लक्ष्य तक नहीं पहुंचा है। ये गजमुख हैं। जीभ ही सभी विघ्नों का कारण है। वह सब के मुख में बाहर भी दिखाई देती है। इसीलिए दूसरों के दोषों का वर्णन करने में लगन दिखाते हैं। हमारे मन रूपी जीभ के अग्र भग को दुसरों की ओर से मोड़ कर अपनी ओर घुमाते अर्थात अपने दोषों की गणना करने लगेंगे तो कई विघ्नों से मानव मुक्ति पा सकता है। प्रकृति में अन्य प्राणियों से भिन्न रूप में हाथी की जीभ कंठ की ओर रहती है। गोलाकार बल खायी हुई सूंड़ हम अपने में होने लायक (ॐ) प्राण को सूचित कराती है। लम्बोदर बताता है कि सर्व विश्व को धारण करने वाले आप ही हो। चौड़े कान सूचित करते है कि ध्यान से दूषित विचारों को त्याग दो। गणपति बप्पा लौकर (जल्दी) या (आइये)…
सौजन्य – नवभारत टाइम्स