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DevBhoomi Insider Desk
• Fri, 13 Aug 2021 2:39 pm IST


आखिर कौन डरता है जाति की गिनती से ?


सवाल है, जातियों के आधार पर जनगणना क्यों नहीं होनी चाहिए? एक स्पष्ट तर्क इसके विरुद्ध है. हमारा संविधान जातियों को नहीं मानता. तो हमारी जनगणना में जाति की गिनती क्यों हो? जातिवार जनगणना सामाजिक बराबरी के सिद्धांत के विरुद्ध है.

शायद यही वजह रही होगी कि आज़ादी के बाद भारत की जनगणना में जाति की गणना को छोड़ दिया गया. 1931 तक भारत में जातिवार गिनती होती रही. गिनती 1941 में भी हुई, लेकिन उसके नतीजे प्रकाशित नहीं किए गए. तब शायद यह आदर्श सा ख़याल होगा कि आज़ादी के बाद देश धार्मिक और जातिगत भेदभावों से ऊपर उठ जाएगा, एक राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत नए देश में जातियों की न अहमियत बचेगी न उनको गिनने की ज़रूरत.


लेकिन आज़ादी के 75 साल का जश्न मनाने से पहले हम पा रहे हैं कि जाति की रेखाएं हमारे समाज में कुछ गहरी ही हुई हैं. बल्कि आज़ादी के बाद एक दौर ऐसा ज़रूर आया था कि लोग जाति की सामंती ऐंठ को पीछे छोड़ लोकतांत्रिक संकोच के साथ अपनी जाति अपने घर के भीतर रखते थे. लेकिन जातिगत प्रदर्शन का अहंकार भी बड़ा हुआ है और जातियों के टकराव भी. खासकर 1990 के बाद जब मंडल आयोग की सिफारिशें लागू हुईं और नौकरियों और पढ़ाई में अन्य पिछड़ा वर्गों का कोटा शुरू हो गया, तब से जातिगत पहचान को लेकर एक नई आक्रामकता समाज में भी दिखती है और राजनीति में भी. पिछड़ा वर्गों के भीतर यह नई चेतना जागी है कि उसके संसाधनों पर एक बहुत छोटे से वर्ग का क़ब्ज़ा है तो सवर्णों के भीतर ये मायूसी है किन्हीं ऐतिहासिक अन्यायों की आड़ में उनकी प्रतिभा के साथ अब अन्याय हो रहा है, उनके मौक़े उनसे कमतर लोगों को दिए जा रहे हैं.


लेकिन इस मासूम लगने वाली सच्चाई के पहलू कुछ और भी हैं. भारत में अगर जाति बनी रही, अगर ऊंच-नीच बनी रही, अगर जाति के आधार पर अशिक्षा और गरीबी बनी रही तो इसका ज़िम्मेदार कौन है? जाहिर है, वह सवर्ण या अगड़ा तबका जिसने सारे फ़ैसले अपने वर्गहित को ध्यान में रखते हुए किए- न शिक्षा के अवसर सबको सुलभ कराए न सामाजिक बराबरी का एहसास सबको कराया. उल्टे वह अपनी जातिगत श्रेष्ठता के परकोटों को और मज़बूत करने में जुटा रहा. राजनीतिक-प्रशासनिक भ्रष्टाचार के समंदर से लेकर जातिगत पहचानों वाली झीलें तक उसके क़ब्ज़े में रहीं. वह बेशर्मी से अखबारों में अपनी जाति के भीतर गोरी और घरेलू कामकाज में दक्ष लड़कियां खोजता रहा और बहुत बारीकी से इस बात का खयाल रखता रहा कि सत्ता की जो मलाई है वह उसके अपनों को मिले.