अस्पतालों में जरूरतमंद मरीजों के लिए ब्लड जुटाना हमेशा मुश्किल होता है। दुनिया के वैज्ञानिक ऐसे यूनिवर्सल डोनर ब्लड की तलाश में हैं, जो किसी भी ब्लड ग्रुप वाले व्यक्ति को दिया जा सके। वैसे तो ‘O’ ब्लड ग्रुप वाले यूनिवर्सल डोनर हैं, लेकिन इस ब्लड ग्रुप के लोग हमेशा पर्याप्त संख्या में नहीं होते। अब वैज्ञानिकों ने आंत के बैक्टीरिया का उपयोग करके इस दिशा में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की है। ‘नेचर माइक्रोबायॉलजी’ पत्रिका में प्रकाशित नया अध्ययन बताता है कि शोधकर्ताओं ने शुगर के मॉलिक्यूल की लंबी श्रृंखला की पहचान की है जो इस समस्या के समाधान में काफी मददगार हो सकता है।
एंटीजन का खेल
शुगर मॉलिक्यूल्स की यह श्रृंखला एक ग्रुप के ब्लड को दूसरे प्रकार के ब्लड के साथ असंगत बनाती है। शोधकर्ताओं ने लाल रक्त कोशिकाओं (RBC) से शुगर के इस एक्सटेंशन को हटाने के लिए आंत के बैक्टीरिया से प्राप्त एंजाइमों के एक मिश्रण का उपयोग किया। गलत खून चढ़ाने से घातक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया हो सकती है। इसकी वजह यह है कि इम्यून सिस्टम RBC से निकलने वाले बाहरी शुगर मॉलिक्यूल या एंटीजन को पहचान लेता है और उन पर हमला शुरू कर देता है। A टाइप के ब्लड में A एंटीजन, B टाइप के ब्लड में B एंटीजन के साथ मिश्रित नहीं होते। यूनिवर्सल डोनर ग्रुप O में इन एंटीजन की कमी होती है। यही वजह है कि इसे किसी भी ब्लड टाइप वाले में चढ़ाया जा सकता है।
असंगति से मदद
पिछले कई दशकों से वैज्ञानिक A और B ब्लड ग्रुप में एंजाइमों की मदद से एंटीजन हटाने की कोशिश कर रहे हैं। 1980 के दशक में टाइप B ब्लड को टाइप O में चेंज करने के लिए बिना भुनी हुई कॉफी बीन्स से प्राप्त एंजाइमों का उपयोग शुरू किया। तबसे वैज्ञानिकों ने और बेहतर एंजाइम खोजे हैं जो A और B, दोनों टाइप के ब्लड में काम करते हैं।
खोज में पता चला
RBC से एंटीजन साफ करने के बाद, टाइप A और टाइप B, दोनों ब्लड के अणु टाइप O रक्त की तरह दिखते हैं। लेकिन जब इस उपचारित ब्लड को टाइप O ब्लड प्लाज्मा (ब्लड का पानी वाला हिस्सा ) के साथ मिलाया गया तो सकारात्मक प्रतिक्रिया दिखी। यह असंगति का संकेत था। वैज्ञानिक सोच में पड़ गए कि वे असंगत कैसे हो सकते हैं, जबकि कायदे से उन्हें संगत होना चाहिए था। वैज्ञानिकों ने विस्तृत जांच करने के बाद पाया कि A और B टाइप से एंटीजन हटाने के बावजूद उनमें शुगर के मॉलिक्यूल की लंबी श्रृंखलाएं मौजूद थीं। उनकी उपस्थिति से यह असंगति पैदा हुई।
एंजाइम की कॉकटेल
नए अध्ययन में स्वीडन के वैज्ञानिक मार्टिन ओल्सन और उनके सहयोगियों ने दिखाया कि टाइप A और B ब्लड से एंटीजन और शुगर के एक्सटेंशन को हटाने से यह टाइप O ब्लड के साथ अधिक अनुकूल हो जाता है। उनकी टीम ने अक्करमेंसिया म्यूसिनीफिला नामक बैक्टीरिया से एंजाइमों के एक कॉकटेल का उपयोग किया।
शुगर एक्सटेंशन का असर
यह बैक्टीरिया मानव आंत में पाया जाता है। बैक्टीरिया आंत की म्यूकस लाइनिंग (चिपचिपी परत) में शुगर की लंबी श्रृंखलाओं को विखंडित कर देता है। जब वैज्ञानिकों ने टाइप B ब्लड में मूल एंटीजन को हटा कर उसका टाइप O प्लाज्मा के साथ प्रयोगशाला में परीक्षण किया, तो लगभग 80% B डोनर प्लाज्मा को टाइप O प्लाज्मा के साथ संगत पाया गया। एक बार शुगर का एक्सटेंशन हटाने के बाद यह मात्रा लगभग 91% से l96% तक बढ़ गई। इससे पता चला कि शुगर के एक्सटेंशन ने प्रारंभिक असंगति में योगदान दिया होगा।
पहला ठोस कदम
A ब्लड ग्रुप के लिए परिणाम उतने अच्छे नहीं हैं। A ग्रुप के डोनर में से केवल 20% में ही शुरू में कोई प्रतिक्रिया नहीं होती है। एक्सटेंशन हटाए जाने के बाद यह मात्रा बढ़कर लगभग 50% हो गई। कोलंबिया विश्वविद्यालय में ट्रांसफ्यूजन बायॉलजी लैब के को-डायरेक्टर डॉ. स्टीवन स्पिटलनिक ने कहा कि टाइप A, टाइप B की तुलना में जैव-रासायनिक रूप से अधिक जटिल प्रतीत होता है। इसलिए वैज्ञानिकों को एंजाइमों के अपने कॉकटेल को संशोधित करना पड़ेगा। इस विधि को पर्याप्त रूप से सुरक्षित बनाने के लिए अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है। फिर भी यह यूनिवर्सल डोनर ब्लड की दिशा में पहला ठोस कदम है।
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स