अमेरिका के टेक्सस राज्य में 18 साल के एक युवक ने एक स्कूल में अंधाधुंध गोलियां चलाकर 19 छोटे-छोटे बच्चों और उनके 2 अध्यापकों को मौत के घाट उतार दिया। वह पहले अपने घर में दादी को गोली मारकर आया था। फिर इस प्राथमिक स्कूल में घुसकर 19 मासूम बच्चों और उन्हें बचाने लिए आगे बढ़े 2 टीचरों को ए.आर. 15 जैसी अर्द्ध स्वचालित रायफल से भून डाला। संयोग से उसकी दादी तो बच गई लेकिन कुल 21 लोग बेबात मारे गए। इस युवक ने, जिसका नाम साल्वाडोर रामोस बताया गया था, हाल ही में अपना जन्मदिन मनाने से पहले दो रायफलें खरीदी थीं। हमले से कुछ ही मिनट पहले उसने फेसबुक पर लिखा था कि वह एक स्कूल में हमला करने जा रहा है और अपनी दादी को तो मार भी चुका है।
गन लॉबी का दबदबा
अमेरिका में इस तरह की नृशंस हत्या की घटनाएं इधर बढ़ती ही जा रही हैं। ऐसे क्रूर हत्यारे बच्चों के स्कूलों, चर्चों और बड़े-बड़े स्टोरों में बिना किसी कारण लोगों को एक साथ मारने का काम करते हैं। ऐसे लोग न तो कोई मानसिक रोगी होते हैं और न ही हिंसक अपराधी। सवाल यह है कि उनमें ऐसा क्या गुस्सा या जुनून है, जिसके कारण वे सामूहिक गोलीबारी करके लोगों को मारते हैं। इसका एक ही उत्तर है कि अमेरिका बंदूक की संस्कृति से बुरी तरह परेशान है। वहां बंदूकें और पिस्तौलें बनानेवालों की ऐसी जबरदस्त और प्रभावशाली लॉबी है जो सरकार और संसद की चलने ही नहीं देती। अमेरिकी घरों में नागरिकों के पास करीब 40 करोड़ बंदूकें हैं। पारिवारिक रूप से भावनात्मक कमी, होड़ में पिछड़ने का एहसास या फिर अकेलेपन का डर किसी किशोर पर हावी हो जाता है तो वह अचानक एक जुनून का शिकार होकर अपने तईं समाज से बदला लेने के लिए उठ खड़ा होता है और इसके लिए सॉफ्ट टारगेट चुनता है।
अगर हम सपनों का देश कहे जाने वाले अमेरिका के इतिहास पर नजर डालें तो पाएंगे कि यह गृहयुद्धों और युद्धों के सतत खूनखराबे के बाद ही अस्तित्व में आया है। वहां बेइंतहा जमीन थी और कृषि जीविका का सबसे बड़ा साधन था। इसलिए पहले जमीन खरीदना और फिर अपनी और अपनी संपत्ति की हिफाजत करना अमेरिकियों के खून में है। यही कारण है कि जब संविधान लागू करने की बात उठी तो अनेक राज्यों ने शर्त रखी कि इसमें नागरिक के अधिकार संबंधी बिल का समावेश किया जाए। लोगों को आशंका थी कि अगर कभी केंद्र में बहुत मजबूत सरकार बनी तो वह लोगों को उन बुनियादी अधिकारों से वंचित कर सकती है, जिनकी राज्यों के संविधान में गारंटी दी गई है। इसलिए संविधान में दूसरा संशोधन करके यह सुनिश्चित किया गया कि लोगों के पास हथियार रखने का अधिकार बने रहना चाहिए। इससे अमेरिका में बंदूकें बनाने वालों की बन आई। आज स्थिति यह है कि हर 100 आदमियों पर 120.5 आग्नेयास्त्र हैं। मां-बाप इन हथियारों को बच्चों की पहुंच से दूर रखने में प्रायः विफल रहे हैं। इस साल अब तक कुल 149 दिनों में 212 सामूहिक नरसंहार हो चुके हैं।
ऐसा नहीं कि सभी अमेरिकी हथियार रखने के पक्ष में हैं। लेकिन गन-लॉबी इतनी तगड़ी और असरदार है कि सरकार कुछ नहीं कर पाती। रिपब्लिकन पार्टी के लोगों पर इस लॉबी का बहुत दबदबा है। संसद के उच्च सदन सीनेट में हर राज्य के दो-दो प्रतिनिधि होते हैं, राज्य चाहे कितना भी बड़ा या छोटा हो। ज्यादातर रिपब्लिकन सांसद ‘हथियार रखने के इस नागरिक अधिकार’ से कोई छेड़छाड़ बर्दाश्त करने को तैयार नहीं होते। यही वजह है कि इस वारदात के बाद राष्ट्र के नाम अपने संदेश में राष्ट्रपति बाइडन असहाय से लगे। वे इतना ही कह पाए कि देश के लोग आगे आकर अमेरिकी संसद पर इतना दबाव डालें कि वह गन संबंधी कानूनों को कड़ा बनाए। उन्होंने भी इशारे से रिपब्लिकन पार्टी को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया। यानी बंदूक की अपसंस्कृति तो है ही, राजनीति का भी इसमें हाथ है। जब तक राजनीतिक सर्वानुमति नहीं बनेगी बंदूक के निर्बाध व्यापार का नियमन और नियंत्रण भी नहीं हो पाएगा। वैसे कुछ ऐसे राज्य हैं जहां बंदूक और गोली-बारूद के व्यापार का कुछ नियमन किया गया है। ये ऐसे राज्य हैं जहां निर्बाध रूप से बंदूक खरीदने बेचने वाले राज्यों की तुलना में बंदूकों से मरने वाले लोगों की संख्या कम है। ऐसे राज्यों में कैलिफोर्निया और हवाई शामिल हैं।
अमेरिका में जब सेना और पुलिस रखने का चलन नहीं था, तब मिलिशिया का इस्तेमाल लड़ाइयों में होता था जो अपने-अपने राज्यों और समुदायों की हिफाजत के लिए लड़ते थे। उसी मिलिशिया का वास्ता देकर अब नागरिकों के नए-नए हथियारों के साथ घर से बाहर निकलने के तर्क गढ़ लिए गए हैं। सवाल है कि जब हर राज्य के पास कानून और व्यवस्था को कायम रखने के लिए पुलिस आदि की व्यवस्था है तो नागरिकों को हथियारों से लैस रखने की जरूरत ही कहां है? किसी 18 साल के बालिग को सीधे दुकान पर जाकर दो-दो अर्द्ध स्वचालित हथियार खरीदने की सुविधा क्यों होनी चाहिए?
खुदकुशी का साधन
एक बात और है। ज्यादातर लोग खुद को गोली मारकर आत्महत्या करने लगे हैं। गोली मारना ज्यादा कारगर होता है बनिस्बत इस बात के कि कोई ज्यादा दवाई फांक ले या जहर खा ले। तो जो बंदूक अपनी और अपनी संपत्ति की सुरक्षा के लिए नागरिक का हक बनी, उससे लोग न केवल छोटे-छोटे स्कूली बच्चों को बल्कि खुद अपने आप को भी मार रहे हैं। लेकिन दूसरों का भय दिखाकर जो कंपनियां भारी मुनाफे पर बंदूक बेच रही हैं, वे क्यों मानेंगी? अमेरिका की समस्या सचमुच विकट है जहां भय और हिंसा का माहौल अपने उत्कर्ष पर है और लोग इस कदर डरे हुए हैं कि बंदूक रखना उनके स्वभाव और संस्कृति का जरूरी हिस्सा बन गया है।
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स