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DevBhoomi Insider Desk
• Tue, 24 May 2022 4:22 pm IST


सेना का सिरदर्द न बन जाएं नई राइफलें!


भारतीय सैनिक काफी वक्त से स्वदेशी इंसास राइफल का इस्तेमाल कर रहे हैं। इन्हें बदलने की पहल शुरू किए भी काफी वक्त हो गया है। इंसास में कई बार मैगजीन क्रैक होने और तेल वापस छोड़ने जैसी दिक्कतें आईं। इसके बाद कहा गया कि इन्हें बदलने के काम में तेजी आनी चाहिए।

फिलहाल भारतीय सेना के फ्रंट लाइन सैनिकों को अमेरिकी कंपनी सिग सॉर की सिग-716 असॉल्ट राइफलें दी गई हैं। हालांकि ये संख्या में कम हैं। इसलिए सभी फ्रंट लाइन सैनिकों के पास अभी ये राइफलें नहीं हैं। काफी सैनिक इंसास का ही इस्तेमाल कर रहे हैं। भारतीय सेना के पास एके सीरीज की राइफलें भी हैं, लेकिन उनका इस्तेमाल काउंटर टेररिज्म और काउंटर इंसरजेंसी ड्यूटी में लगे सैनिक कर रहे हैं। भारत ने फरवरी 2019 में अमेरिकी कंपनी सिग सॉर के साथ 72400 सिग-716 असॉल्ट राइफल का कॉन्ट्रैक्ट किया था। 7.62×51 एमएम कैलिबर की ये राइफलें थल, वायु और नौसेना के लिए ली गई हैं। फास्ट ट्रैक प्रक्रिया के तहत ये राइफलें आईं और इनमें से थल सेना को 66400, वायुसेना को 4000 और नौसेना को 2000 राइफलें मिली हैं।

इसके साथ ही भारत ने रूस से AK-203 असॉल्ट राइफल्स को लेकर भी डील की है। कहा गया कि भारतीय सेना की पुरानी इंसास राइफल को रिप्लेस करने के लिए रूस के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश के अमेठी की ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में करीब साढ़े सात लाख AK-203 राइफलें बनेंगी। दिसंबर 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका उद्‌घाटन किया था। AK-203 राइफल AK सीरीज की ही नई राइफल है।

वैसे तो सिग सॉर राइफल की दूसरी खेप को लेकर भी बातचीत चल रही थी, जिसके तहत 73 हजार सिग-716 असॉल्ट राइफल सेना को और मिल जातीं। लेकिन उसे लेकर अब दुविधा है। वह डील फंसी पड़ी है और इसकी संभावना भी है कि वह कैंसिल हो सकती है क्योंकि अभी तक उसे फाइनल अप्रूवल नहीं मिला है। अब अगर सिग सॉर राइफल नहीं आएंगी तो फ्रंट लाइन पर तैनात सैनिकों की इंसास राइफल किससे रिप्लेस होंगी? शायद एके-203 से! इस तरह जब पुरानी इंसास राइफल पूरी तरह रिप्लेस हो जाएंगी तो फ्रंट लाइन पर कुछ सैनिकों के पास सिग सॉर राइफल होगी और कुछ के पास एके-203 असॉल्ट राइफल।

जहां इंसास राइफल का कैलिबर 5.56×51 एमएम है, वहीं एके राइफल का कैलिबर 7.62×39 एमएम का है। इसी तरह सिग-716 राइफल का कैलिबर 7.62×51 एमएम है। यानी एके और सिग-716 राइफल में एक जैसी बुलेट नहीं होंगी। दोनों का एम्युनिशन अलग होगा। एक्सपर्ट्स साफ तौर पर बताते हैं कि एक बटालियन में दो तरह के हथियार अच्छा आइडिया नहीं है। क्योंकि एक सैनिक के पास जो हथियार होगा, उसका एम्युनिशन अलग होगा और दूसरे सैनिक के पास अलग एम्युनिशन वाला हथियार होगा, तो कभी इमरजेंसी में वे एक-दूसरे के हथियार शेयर नहीं कर पाएंगे।

भारतीय सेना में रहे अलग-अलग अधिकारियों से बात करने पर उन्होंने इसका भी जिक्र किया कि जब सैनिक दस्ते में जाते हैं तो कुछ पर्सनल हथियार और कुछ सपोर्टिंग हथियार लेकर चलते हैं। किसी भी ऑपरेशन की जब रणनीति बनाई जाती है तो यह भी उसका हिस्सा होता है कि जिस जगह पर कब्जा करेंगे, वहां मजबूत पकड़ बनाए रखना कैसे सुनिश्चित करेंगे। मान लीजिए किसी जगह पर दुश्मन को हराकर भारतीय सैनिक काबिज हुए। ऑपरेशन सफल रहा। उस स्थिति में यह भी देखा जाता है कि किस सैनिक के पास कितना एम्युनिशन बचा है, ताकि वहां डटे रहने का इंतजाम हो। जिस सैनिक के पास कम एम्युनिशन है उसे दूसरे से लेकर एम्युनिशन दिया जा सकता है। लेकिन एम्युनिशन अलग होने पर यह संभव नहीं होगा।

इसके अलावा लॉजिस्टिक स्तर पर भी काम बढ़ जाएगा। अलग-अलग हथियार होने पर उनकी मेंटेनेंस के लिए अलग-अलग उपकरण चाहिए होंगे। फील्ड एरिया में जो वर्कशॉप होती हैं, उनके लिए भी ज्यादा स्पेस की जरूरत हो सकती है। जो मेंटेनेंस का काम करेंगे, उन्हें उन सभी हथियारों की जानकारी होनी चाहिए। उसके उपकरण से लेकर स्पेयर पार्ट्स तक अलग-अलग रखने होंगे। जाहिर है, मामला काफी सीरियस है। इस पर अच्छे से विचार करने की जरूरत है कि सैनिकों को एक ही काम के लिए अलग-अलग हथियार देना कहीं उनकी मुसीबतें बढ़ा तो नहीं देगा!

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स