भाषा और लिपि की बात करें तो भारत में सबसे पुरानी सिंधु लिपि ही मानी जाएगी जो अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है। इसके बारे में भाषाविद इतना ही जान पाए हैं कि इसकी पहली लाइन दाएं से बाएं चलती है और दूसरी बाएं से दाएं। इसमें लगभग चार सौ संकेत हैं, लेकिन एक ही संकेत के अलग-अलग अक्षरों या तस्वीरों को छोड़ दें तो यह 250 रह जाते हैं। इस लिपि की सबसे खास बात यह है कि अपनी एक हजार साल की यात्रा में यह न के बराबर ही बदली। अपनी किताब अक्षर कथा में प्रसिद्ध विज्ञान लेखक गुणाकर मुले कहते हैं कि इस लिपि में जो अक्षर और तस्वीरें 2600 ईसा पूर्व की मिलती हैं, कमोबेश वही अगले हजार साल तक दिखाई देती हैं। आज की भाषाओं को देखें तो हिंदी ने पिछले बीस सालों में डेढ़ लाख नए शब्द शामिल किए हैं तो अंग्रेजी ने इसी साल दस नए शब्द जोड़े हैं। जब लोगों को लगता है कि शब्द कम पड़ रहे हैं तो नया शब्द भी जन्म ले लेता है। ध्यान देने वाले पकड़ लेते हैं कि हर घर में कुछेक शब्द ऐसे होते हैं, जो उसी घर के लोग समझते हैं। ऐसे शब्द पीढ़ियों तक यात्रा करते हैं।
पहले लोग मानते थे कि देवता फूलों की तरह अक्षरों की बारिश करते हैं। भारत सहित नेपाल, श्रीलंका, तिब्बत सहित दक्षिण पूर्व एशिया की बहुत सी लिपियां ब्राह्मी से जनमी हैं। ब्रह्मा को लिपि का निर्माता माना जाता है, इसलिए इस लिपि का नाम ब्राह्मी पड़ा। इंसानी सभ्यता में सबसे ज्यादा पवित्र भाषा या लिपि को ही माना गया है, इसीलिए लगभग हर सभ्यता के पास लेखन का एक देवता है। मिस्र में इसके देवता का नाम थोत था, तो बेबीलोन में नेबो। यहूदी इसका जनक पैगंबर मूसा को मानते हैं तो इस्लाम का मानना है कि अक्षर अल्लाह ने बनाकर आदम को सौंपे। पर आज सब जानते हैं कि अक्षर और भाषा हमने ही बनाई। यह मानव जाति की असाधारण प्रतिभा ही है कि आज दुनिया भर में 6500 से भी अधिक भाषाएं और 293 के आसपास लिपियां हैं। इन्हें इंसान पीढ़ी दर पीढ़ी सहेजता आया है।
नीदरलैंड के मैक्स प्लैंक इंस्टिट्यूट फॉर साइको लिंग्विस्टिक्स ने दुनिया भर की यूनिवर्सिटीज के साथ मिलकर भाषा पर शोध करने के लिए ग्रामबैंक बनाया है। इसी महीने आई इनकी रिसर्च बताती है कि भाषा का भूगोल से कहीं ज्यादा संबंध अनुवांशिकता से है। 2400 भाषाओं पर हुआ यह शोध बताता है कि लोग दूसरी भाषा के लोगों के साथ रहकर उनकी भाषा तो सीख लेते हैं, लेकिन वे उसे अपना नहीं पाते। शोध के सीनियर राइटर रसेल ग्रे तो यहां तक कहते हैं कि भाषा में वंशावली बड़े आराम से भूगोल को रौंदकर रख देती है। सिंधु सभ्यता के लगभग 1400 केंद्र खोजे गए हैं, जिनमें से 925 अकेले भारत में हैं। बड़ी बात यह कि इन सबकी लिपि एक ही है, और जैसा पहले बताया कि हजार साल में भी यह नहीं बदली। तो क्या यह माना जाए कि सिंधु सभ्यता के लोग एक ही वंश के थे?
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स