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• Mon, 8 Feb 2021 4:15 pm IST


ग्लेशियर के फटने के पीछे क्या कारण है ? यहां विशेषज्ञों का कहना है


चमोली आपदा 

उत्तराखण्ड के चमोली जिले में आई आपदा ने सब कुछ अस्त व्यस्त कर दिया है । ग्लेशियर फटने से कई लोगो के अपनी जान से हाथ धोना पड़ा , वहीं सरकार को लगभग 4000 करोड़ का नुकसान हुआ है । अब तक चमोली आपदा में 19 शव बरामद हो चुकें है , जबकि 202 से अधिक लोग लापता है । गौर करने वाली बात यह है कि अभी भी वहां रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है । लिहाज़ा NTPC की टीम ने अब तक 12 लोगो को सुरक्षित निकाल लिया गया है । वर्तमान की बात करें तो घटनास्थल पर अब भी 500 से अधिक जवान मौजूद है , जबकी एंम्बुलेंस सहित स्वास्थ्य विभाग की मेडिकल टीमें भी वहां तत्पर है । 

शोधकर्ता की यें है राय

रविवार की सुबह जब ये हादसा हुआ तो सभी शोधकर्ता ने  इस आपदा को लेके अपना अपना पक्ष रखा , किसीने कहा , जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण खतरनाक और अपरिवर्तनीय स्थिति बन गई है। तो किसीने ये तथ्य रखा कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण इस क्षेत्र में गर्मी बढ़ गई थी, लिहाज़ा गर्मी बढ़ने की वजह से बर्फ पिघल रही है , जिससे पानी का स्तर बढ़ रहा है ष लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि अभी इस आपदा की मुख्य वजह अज्ञात बनी हुई है । 

वैज्ञानिकों ने बताई आपदा की मुख्य वजह

वैज्ञानिकों की माने तो ग्लेशियर फटने का मुख्य कारण अभी सामने नहीं आया है , हालाकिं विशेषज्ञ, अंजल प्रकाश, जो जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (IPCC) के महासागरों और क्रायोस्फीयर पर एक विशेष रिपोर्ट के प्रमुख लेखकों में से एक हैं,  उन्होंने कहा कि ऐसा प्रतीत हो रहा है कि जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण खतरनाक और अपरिवर्तनीय स्थिति बन गई है। उन्होंने कहा कि हिमालयी क्षेत्र सबसे कम निगरानी वाला क्षेत्र है और सरकार को इन क्षेत्रों पर नज़र रखने में अधिक संसाधन खर्च करने की आवश्यकता है ताकि अधिक जागरूकता हो। इसी के चलते अंजल प्रकाश ने कहा कि  हिमालयी क्षेत्र सबसे कम निगरानी वाला क्षेत्र है और यह घटना वास्तव में दिखाती है कि हम कितने कमजोर हो सकते हैं। मैं सरकार से इस क्षेत्र की निगरानी में अधिक संसाधन खर्च करने का अनुरोध करूंगा ताकि हमें परिवर्तन प्रक्रिया के बारे में अधिक जानकारी हो। इसका परिणाम यह होगा कि हम अधिक जागरूक हैं और बेहतर अनुकूलन प्रथाओं को विकसित कर सकते हैं। 

वहीं  IIT इंदौर के सहायक प्रोफेसर, मोहम्मद फारूक आज़म ने कहा कि बर्फ का थर्मल प्रोफाइल बढ़ रहा है, क्योंकि पहले बर्फ का तापमान -6 से -20 डिग्री सेल्सियस तक था, अब यह -2 डिग्री है, जिससे यह पिघलने के लिए अतिसंवेदनशील हो जाता है।यह संभावना नहीं है कि यह चमोली जिले में मौसम की रिपोर्ट के बाद से बादल फटने के बाद से आज तक बारिश का कोई रिकॉर्ड नहीं है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण इस क्षेत्र में गर्मी बढ़ गई है।जलवायु परिवर्तन से प्रेरित अनियमित मौसम के पैटर्न जैसे बर्फबारी और बारिश में वृद्धि, और गर्म सर्दियों के कारण बहुत अधिक बर्फ पिघलने की ओर बढ़ गया है । 

2013 में, उत्तराखंड में इसी तरह की घटना ग्लेशियल झील के प्रकोप बाढ़ (GLOF) के कारण देखी गई थी। शोधकर्ताओं ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण ऐसा हुआ है जो ग्लेशियरों को पिघलाने के लिए अग्रणी है। उन्होंने यह भी चेतावनी दी थी कि भविष्य में इस तरह की घटनाएं अधिक बार हो सकती हैं।

इससे निपटने के लिए, हमें हिमालय क्षेत्र के लिए वर्तमान विकास मॉडल के बारे में पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। चंचल ने कहा कि यह पर्यावरण और स्थानीय समुदायों की लागत पर नहीं हो सकता है।आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, पौड़ी, टिहरी, रुद्रप्रयाग, हरिद्वार और देहरादून सहित उत्तराखंड में कई जिलों के प्रभावित होने की संभावना है और उन्हें हाई अलर्ट पर रखा गया है।

हिंदू कुश हिमालयन निगरानी और आकलन कार्यक्रम (HIMAP) की हालिया रिपोर्ट के निष्कर्षों की ओर इशारा करते हुए, प्रकाश ने कहा कि हिंदू कुश हिमालयी क्षेत्र में तापमान बढ़ रहा है, इसलिए इस क्षेत्र में प्रभाव अधिक होगा।