इंडिया की टॉप आईटी सर्विस कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) में नौकरी के बदले रिश्वत लेने का मामला आया है। मामले का खुलासा तब हुआ, जब एक व्हिसल ब्लोअर ने कंपनी को सचेत किया कि कुछ अधिकारी लोगों को ठेके पर रखते वक्त कुछ स्टाफिंग कंपनियों को फेवर कर रहे हैं। इसके बाद TCS ने नैतिक आचरण का उल्लंघन करने के लिए छह कर्मचारियों और छह बिजनेस असोसिएट्स पर तुरंत बैन लगा दिया।
वैसे, इस प्रकरण में कोई ताज्जुब करने वाली बात नहीं है। मार्केटिंग से लेकर सेल्स तक में भारत के प्राइवेट सेक्टर में भ्रष्टाचार फैला हुआ है। जो लोग इस तरह के मामलों में दोषी पाए भी जाते हैं, उनके करियर पर बहुत असर नहीं पड़ता। इसकी वजह यह है कि देश में टैलंट की कमी है। इसलिए ऐसी संभावना है कि TCS ने जिन लोगों को निकाला है या जिन एजेंसियों पर बैन लगाया है, उन्हें दूसरी कंपनियां रख लेंगी।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि भारत के पब्लिक सेक्टर में भ्रष्टाचार का लंबा इतिहास रहा है। कह सकते हैं कि अधिकतर भारतीय, भ्रष्टाचार और इसमें होने वाले हितों के टकराव के आदी हैं। कई लोग तो इसे काम करवाने का इकलौता रास्ता मानते हैं। इसलिए ठेके देने वाले बहुत से अधिकारी अपने फायदे के लिए निडर होकर पब्लिक सेक्टर के भ्रष्टाचार की नकल करते हैं। स्थापित संगठनों में रूल बुक और व्हिसल ब्लोअर पॉलिसी होती तो है, पर जब बात कॉन्ट्रैक्ट देने की आती है तो मार्केटिंग डिपार्टमेंट वाले कुख्यात होते हैं, सेल्स डिपार्टमेंट तो उनसे भी ज्यादा।
यहां तक कि जब लीडरशिप टीम कंपनी को साफ-सुथरा रखने के लिए कड़ी मेहनत करती है, तब भी कोई मैनेजर इस पर पानी फेर सकता है। अक्सर ऐसे लोग कंपनी के किसी टेंडर में शामिल वेंडरों को गुमराह करने से शुरुआत करते हैं। उन्हें मानदंडों पर अधूरी जानकारी देते हैं और अंतिम समय में पायलट प्रॉजेक्ट की मुश्किलें बताते हैं। प्रॉजेक्ट की प्राइसिंग को लेकर भी वे इतना दबाव बनाते हैं कि ईमानदार वेंडर दौड़ से बाहर हो जाते हैं।
इस तरह का करप्शन मल्टिनैशनल से लेकर बड़ी घरेलू कंपनियों तक में है। लेकिन जहां ऐसे कुछ करप्ट लोगों का पता लगाना आसान है, वहीं कइयों की बेईमानी सामने नहीं आ पाती। भ्रष्टाचार करने और किसी वेंडर को फायदा पहुंचाने के बदले इन्हें विदेश में परिवार के साथ शानदार छुट्टियां मनाने, महंगे उपहार, रियल एस्टेट या बच्चे की विदेश में पढ़ाई के लिए पैसों के इंतजाम का तोहफा मिलता है। अब सवाल यह है कि प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों में ऐसे भ्रष्टाचार को किस तरह से रोका जाए? इसका सबसे अच्छा तरीका निर्णय लेने की प्रक्रिया के शुरुआती हिस्से को ऑटोमेटिक करना है। पहले टेक्नॉलजी की सीमाओं के कारण ऐसा करना मुश्किल था, लेकिन AI के लैंग्वेज लर्निंग मॉडलों की मदद से यह काम किया जा सकता है। वेंडर चुनने की प्रक्रिया में AI का उपयोग रिश्वतखोरी को खत्म कर सकता है। कोई प्रपोजल सही है या नहीं, इसके लिए AI लाखों उदाहरणों को देखकर जवाब दे सकता है। कई कंपनियां पहले से ही हर चीज में पूर्वाग्रह को खत्म करने के लिए AI का उपयोग कर रही हैं। चाहे वह भर्ती हो, निवेश के लिए किसी स्टार्टअप की क्षमता पता लगानी हो या सिस्टम और प्रक्रियाओं में तकनीकी खामियों को सामने लाना हो। AI उन कंपनियों के लिए एक रास्ता है, जो इस तरह के भ्रष्टाचार से जूझ रही हैं।
फिर भी भ्रष्टाचार कायम रहता है तो इसे इतना दंडात्मक बना दिया जाए कि नियमों को तोड़ने को बढ़ावा ही न मिले। वैसे भारत में जितनी रिश्वत मिलती है, उससे ज्यादा इंसेंटिव देना अच्छा तरीका हो सकता है। इसे कर्मचारी कॉन्ट्रैक्ट में शामिल किया जाना चाहिए।
लंबे समय से ईमानदार व्यवहार को निजी क्षेत्र ने चुपचाप कमजोर कर दिया है। अब हम जानते हैं कि भारत के सबसे बड़े निजी बैंकों में से एक के पूर्व सीईओ से लेकर स्टार्टअप के पोस्टर बॉय तक भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझ रहे हैं। लालच उम्र, लिंग, अनुभव और क्षेत्र से परे है। ऐसे में एक ऐसा तरीका चाहिए, जो पर्दे के उस पार भी देख सके।
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स