क्या कभी आपने सोचा कि हिंदू धर्म में प्रत्येक पूजा पाठ के दौरान कलाई पर कलावा बांधने के पीछे का क्या कारण हो सकता है? नहीं तो चलिए जानते हैं-
पौराणिक कथा- शास्त्रों में बताया गया है कि कलावा बांधने की शुरुआत माता लक्ष्मी ने की थी। जब भगवान विष्णु ने बामन अवतार में तीन पग धरती नाप ली थी, तो राजा बलि की दानवीरता से प्रसन्न होकर उन्होंने उसे पाताल लोक रहने के लिए दे दिया था। तब राजा बलि ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वे भी उनके साथ पाताल लोक में आकर रहें। विष्णु जी ने प्रसन्न होकर उसकी ये प्रार्थना स्वीकार कर ली। इसके बाद माता लक्ष्मी भगवान विष्णु को वहां से वापस लाने के लिए भेष बदलकर पाताल पहुंची और बालि के सामने रोने लगीं कि मेरा कोई भाई नहीं है। इसके बाद बालि ने कहा आज से मैं आपका भाई हूं। इस पर माता लक्ष्मी ने तब राजा बलि को रक्षा सूत्र के तौर पर कलावा बांधा और उसे अपना भाई बना लिया। इसके बाद उपहार के तौर पर भगवान विष्णु को उनसे मांग लिया। तब से इस कलावे को रक्षा सूत्र के तौर पर बांधा जाने लगा।
क्या कहता है विज्ञान- विज्ञान के अनुसार, शरीर के ज्यादातर अंगों तक पहुंचने वाली नसें कलाई से होकर गुजरती हैं। कलाई पर मौली या कलावा बांधने से इन नसों की क्रिया नियंत्रित रहती हैं। माना जाता है कि कलावा बांधने से ब्लड प्रेशर, हृदय संबंधी रोग, डायबिटीज और पैरालिसिस जैसे रोगों से काफी बचाव होता है।
कलावा बांधने से फायदे- ऐसी मान्यता है कि अगर कलाई पर कलावा बांधा जाए तो इससे आने वाले संटक टल जाते हैं। कलावा बांधने से ब्रह्मा, विष्णु और महेश का आशीर्वाद मिलता है इसके साथ ही सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती देवियों की विशेष कृपा प्राप्त होती है। ये भी माना जाता है कि काले रंग का कलावा कलाई में बांधना शनि ग्रह के लिए शुभ होता है।