76 साल पहले गंवाया पूरा परिवार, 80 की उम्र में सड़क पर शांतिदेवी का कुनबा
देहरादून के काबुल हाउस में अंदर जाने पर घरों के बाहर सामान बिखरा पड़ा है। एसी, फ्रिज से लेकर तमाम कीमती सामान सड़क पर कबाड़ की तरह रखा हुआ है। कुछ लोग अपना सामान ट्रैक्टर ट्रालियों में लादकर ले जा रहे हैं, जबकि कई लोगों का सामान सड़क पर ही बिखरा है। मकान के आगे बिखरे सामान को सौरभ जोशी ठीक से लगा रहे हैं। अब कहां जाएंगे..पूछने पर उनकी आंखें नम हो जाती हैं। वह अंदर ले जाते हैं, जहां एक अंधेरे कमरे में करीब 80 वर्ष की शांति जोशी पलंग पर लेटी हुईं हैं।
वह लड़खड़ाती जुबान और भीगी आंखों से काबुल हाउस में आने की पूरी कहानी बताती हैं। कहती हैं, वह पेशावर की रहने वाली थीं। देश का बंटवारा हुआ तो दंगा भड़क उठा। उनका पूरा परिवार उनकी आंखों के सामने चाकुओं से गोदकर मार दिया गया। वह बमुश्किल बचकर भागीं। तब वह सात-आठ साल की थीं। उनका पूरा परिवार उनकी आंखों के सामने खत्म हो गया। वह वाहा कैंप पंजाब में रोकी गईं। इसके बाद जालंधर में शरणार्थी शिविर में रहीं।