कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प से कोई भी इंसान सफल हो सकता है। इसकी मिसाल बिहार के एक ऐसे व्यक्ति ने पेश की है जो करीब एक दशक तक एक विश्वविद्यालय में चपरासी की नौकरी करता रहा था लेकिन बाद में पढ़-लिख कर वह उसी स्कूल में प्रोफेसर बन गया। हम बात कर रहे हैं बिहार के भागलपुर जिले के रहने वाले कमल किशोर मंडल (42) की, जिन्होंने अपनी मेहनत से कई लोगों को प्रेरित किया है। बिहार के इस व्यक्ति को साल 2003 में बहुत ज्यादा आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा था जिसकी वजह से उन्हें बिहार के मुंगेर जिले के एक कॉलेज में नाइट गार्ड की नौकरी करने के लिए मजबूर होना पड़ा था।
इस नौकरी को जॉइन करने से पहले वे राजनीति विज्ञान से स्नातक की पढ़ाई पूरी कर चुके थे। बाद में उन्हें तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय में अंबेडकर के विचार और सामाजिक कार्य विभाग में तैनात कर दिया गया, यहां पर करीब पांच साल तक गार्ड की ड्यूटी करने के बाद उन्हें चपरासी के पद पर नियुक्त कर लिया गया। हालांकि, मंडल अपने जीवन में कुछ बड़ा हासिल करना चाहते थे इसलिए उन्होंने प्रस्तावित विषयों पर शोध किया और विश्वविद्यालय से आग्रह किया कि उन्हें आगे पढ़ाई करने की इजाजत दी जाए।
विश्वविद्यालय ने उनके अनुरोध को मान लिया। इसके बाद उन्होंने साल 2009 में Ambedkar Thought and Social Work से एमए (MA) किया, फिर उन्होंने विश्वविद्यालय से पीएचडी (PhD) करने की भी अनुमति मांगी, लेकिन इस बार उन्हें कुछ सालों तक अनुमति मिलने का इंतजार करना पड़ा। साल 2012 में TMBU ने उनके अनुरोध को स्वीकार किया और उन्हें पीएचडी करने की अनुमति दे दी। इसके बाद मंडल ने पीएचडी में दाखिला लिया और 2017 में अपनी थीसिस भी पूरी कर ली। किशोर मंडल सुबह के समय कक्षाओं में जाकर पढ़ाई करते थे। दोपहर के समय अपनी ड्यूटी करते थे और आधी रात को वे अपने स्टडी मेटेरियल के जरिए रिविजन किया करते थे। साल 2019 में उन्हें पीएचडी की डिग्री से सम्मानित किया गया। इसके बाद उन्होंने प्रोफेसर और लेक्चरर के रूप में नौकरियों के लिए आवेदन करना शुरू कर दिया। इसी दौरान बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग ने उसी समय तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर के पद के लिए विज्ञापन निकाला था।
किशोर ने तुरंत उस पद के लिए आवेदन कर दिया। इंटरव्यू राउंड के लिए 12 उम्मीदवारों को शॉर्टलिस्ट किया गया था। इंटरव्यू के बाद किशोर का चयन Ambedkar Thought and Social Work Department में सहायक प्रोफेसर के पद पर हो गया। बता दें कि यह वहीं कॉलेज था जहां उन्होंने कई सालों तक चपरासी की नौकरी की थी।