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DevBhoomi Insider Desk
• Sun, 27 Mar 2022 10:00 am IST


प्रकृति के उपासक हैं हम: हमारा शरीर पंचतत्व से बना


भारतीय संस्कृति में प्रकृति की पूजा ईश्वर की पूजा के समान है। श्री कृष्ण द्वारा शुरू कराई गई गोवर्धन पर्वत की पूजा उनके प्रकृति प्रेम को दर्शाता है। छठ पर्व भी लोगों के प्रकृति प्रेम को दर्शाता है। इस पर्व की खासियत यही है कि लोग प्रकृति के काफी करीब तो पहुंचता ही है, उसमें देवत्व स्थापित करते हुए उसे सुरक्षित रखने की कोशिश भी करता है। छठ पर नदियों, जलाशयों, गांव के पोखर और कुएं साफ कर दिए जाते हैं। रामचरित मानस में कहा गया है कि 'क्षिति जल पावक गगन समीरा पंच रचित अति अधम शरीरा' हमारा शरीर जीवन पंचतत्व से बना है। यह जीवन तभी बचेगा जब हम पर्यावरण के प्रति सचेत रहेंगे। हमारी प्रकृति और पर्यावरण में भी ये पांच तत्व मुख्य रूप से घुले हुए हैं। यदि इन तत्वों में प्रदूषण होता है, तो इससे न केवल हमारा पर्यावरण दूषित होता है, बल्कि हमारे शरीर और मन भी अस्वस्थ व रोगी बनते हैं। प्रकृति में घुले हुए ये पंचतत्व आपस में घुले-मिले हैं, एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। इनमें से किसी भी तत्व में आया हुआ असंतुलन दूसरे तत्व को प्रभावित करता है। किसी भी तत्व में कमी या वृद्धि दूसरे तत्व को प्रभावित करती है।