आजकल की पीढ़ी पहाड़ी वाद्य यंत्रों को पूरी तरह से भूल चुकी हैं। उन्हें याद दिलाने को ‘हिमालय निनाद’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया। बता दे, यह कार्यक्रम नगर निगम ऋषिकेश, नमामि गंगे प्रकोष्ठ उमंग और हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर के संयुक्त तत्वावधान में जीएमवीएन भारत भूमि गेस्ट हाउस में आयोजित किया गया।
जिसमे दूसरे दिन कलाकारों ने वाद्य यंत्र बांसुरी, हुड़का, ढोल, दमाऊं, नगाड़ा, रणसिंघा और मस्कबीन की धुनों पर रियाज किया। कार्यक्रम संयोजक गणेश खुगशाल गणी ने बताया कि सात दिवसीय कार्यशाला का समापन नौ अप्रैल को होगा। इसका मुख्य उद्देश्य पहाड़ी वाद्य यंत्रों को पहचान देना और नई पीढ़ियों में उन्हें जीवंत करना है। कार्यशाला में टिहरी, पौड़ी और अल्मोड़ा आदि जनपद से आए कलाकार पहाड़ी वाद्य यंत्रों में निपुण और पारंगत हैं। कार्यशाला में पहाड़ी धुनों का श्रोताओं ने भी जमकर आनंद लिया। इस मौके पर रामचरण जुयाल, कैलाश ध्यानीअ और विरेंद्र आदि शामिल थे।