मलिन बस्तियों के विनियमितीकरण और मालिकाना हक दिलाने के लिए राजनेताओं की होड़ किसी से छुपी नहीं। वर्ष-2017 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार भी इस हसरत के साथ विदा हो गई व मौजूदा भाजपा सरकार भी उसके ही नक्शे-कदम पर चल रही है। चार वर्ष पहले भाजपा के सत्ता में आने पर तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा भी बस्तियों के विनियमितीकरण का फैसला लिया गया था, लेकिन तकनीकी अड़चन में सरकार इसे आगे सरकाती रही।
अब प्रदेश के नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत भी इसी दिशा में आगे बढ़ते दिख रहे। तीरथ तो एक कदम आगे निकलकर न केवल बस्तियों के विनियमितीकरण बल्कि उनके सुंदरीकरण में भी जुट गए हैं। बुधवार को मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने इसका ऐलान भी कर दिया। मुख्यमंत्री का यह फैसला दून शहर की 129 बस्तियों के तकरीबन 40 हजार अवैध भवनों को वैध कर देगा। बस्तियों पर डोजर चढ़ाना पहले ही मुश्किल था, मगर सरकार के फैसले के बाद ये बस्तियां खुद नियमित हो जाएंगी।
यह बात दीगर है कि कांग्रेस ने बस्तियों के विनियमितीकरण के लिए जिस मलिन बस्ती सुधार समिति का गठन किया था, उसकी रिपोर्ट में चौकानें वाले तथ्य थे। रिपोर्ट में जिक्र था कि प्रदेश में 36 फीसद बस्तियां निकायों की भूमि पर हैं जबकि 10 फीसद राज्य सरकार, केंद्र सरकार, रेलवे व वन विभाग की भूमि पर हैं। रिपोर्ट में सिर्फ 44 फीसद बस्तियां ही निजी भूमि पर बताई गईं थी। दून नगर निगम क्षेत्र में पहले 129 बस्तियां मानी जा रही थी, लेकिन सरकारी आंकड़ों में संख्या 128 बताई गई।
केवल दो ही बस्तियां लोहारवाला और मच्छी का तालाब, श्रेणी एक के तहत बताई गई थी। इनमें महज 34 ही भवन नियमितीकरण के लिए उपयुक्त बताए गए थे। शहर में 56 बस्तियां नदी-खाला व जलमग्न श्रेणी की भूमि में जबकि 62 बस्तियां सरकारी भूमि, निजी भूमि या केंद्र सरकार के संस्थानों की भूमि पर बनी हुई हैं, जबकि आठ बस्तियां वन भूमि पर बसी हैं। सरकार इन बस्तियों को कैसे नियमित करेगी, यह तकनीकी पेंच फंसा हुआ है।