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• Wed, 17 Jan 2024 3:13 pm IST


"सड़क होती तो बच जाती जान" - लछिमा देवी की मौत पर प्रशासन के खिलाफ फूटा ग्रामीणों का गुस्सा !


पिथौरागढ़ : पिथौरागढ़ के बंगापानी गांव तक सड़क नहीं होने का खामियाजा एक और बीमार को अपनी जान देकर भुगतना पड़ा। यही नहीं अफसोस यह भी है कि महिला की मौत की खबर को बाहर आने में पांच दिन लग गए और आप इस खबर को घटना के छठे दिन पढ़ रहे हैं। यह हाल आलम दारमा गांव का है। यह कोई साधारण गांव नहीं है इस गांव के नौ लोगों ने स्वतंत्रता संग्राम में अहम योगदान तो दिया ही, साथ ही यह गांव एक वीर चक्र विजेता की पहचान भी है। और जानते हैं! गांव तक सिर्फ आठ किमी सड़क की जरूरत है जो ज्यादा बड़ा काम भी नहीं है।जानकारी के अनुसार आलम दारमा गांव की लछिमा देवी (58) 10 जनवरी की शाम को दौरा पड़ने से घर में बेहोश हो गईं। रात का समय होने के ग्रामीणों ने सुबह होने का इंतजार किया। 11 जनवरी की सुबह होते ही परिजन ग्रामीणों की मदद से डोली के सहारे महिला को आठ किमी बदहाल पैदल रास्तों पर चलकर बंगापानी तक लाए। यहां से महिला को वाहन से 100 किमी दूर जिला अस्पताल पहुंचाया गया। अस्पताल में प्राथमिक इलाज के बाद उन्हें हायर सेंटर रेफर बरेली रेफर किया गया। परिजन बरेली के लिए चले लेकिन चल्थी (टनकपुर) में लछिमा देवी ने दम तोड़ दिया।ग्रामीणों का कहना है कि अगर उनके गांव तक सड़क होती तो महिला को समय पर अस्पताल पहुंचाकर उनकी जान बचाई जा सकती थी। गांव तक सड़क नहीं होने से ग्रामीण गर्भवती और बीमार महिलाओं को डोली के सहारे अस्पताल पहुंचाते हैं। कई बीमार और बुजुर्ग अस्पताल पहुंचने से पहले की दुनिया को छोड़कर चले जाते हैं। इसके बाद सरकार और शासन-प्रशासन को लोगों का दर्द नहीं दिख रहा है।