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• Tue, 26 Mar 2024 2:04 pm IST


चिपको आंदोलन की 51वीं वर्षगांठ आज, लोगों को याद आया सालों पुराना इतिहास


जंगलों और पेड़ों को बचाने के लिए आज से करीब 51 साल पहले उत्तराखंड में कुछ महिलाओं ने अनूठा प्रयोग किया था, जिसकी गूंज पूरी दुनिया में सुनायी दी थी. जिसे चिपको आंदोलन का नाम दिया गया था. आज चिपको आंदोलन की 51वीं वर्षगांठ है.दरअसल, 1973 के आसपास वन विभाग ने चमोली जिले के जोशीमठ ब्लॉक क्षेत्र में रैणी गांव के पास पेंड मुरेंडा इलाके को पेड़ कटान के लिए चुना था, जिसका ठेका ऋषिकेश के ठेकेदार को दिया गया था. बताया जाता है कि 680 हेक्टेयर का जंगल पांच लाख रुपए में नीलाम हुआ था.

जैसे ही ये खबर रैणी समेत आसपास के गांव वालों को लगी तो उन्होंने इस पर अपनी नाराजगी जाहिर की. क्योंकि गांव वालों का मानना था कि इन्हीं जंगलों से उनकी आजीविका चलती है. यहां तक की उनके मवेशी भी जंगलों पर ही निर्भर रहते हैं. रैणी गांव की महिलाओं ने फैसला किया कि वो किसी भी कीमत पर जंगल को नहीं कटने देंगी.

इस आंदोलन का नेतृत्व रैणी गांव की रहने वाली गौरा देवी ने किया. ठेकेदार के लोगों ने महिलाओं और ग्रामीणों को डराने का काफी प्रयास किया, लेकिन महिलाओं ने बंदूकों की परवाह किए बिना पेड़ों को घेर लिया और पूरी रात पेड़ों के चिपकी रहीं. महिलाओं ने साफ कर दिया था कि पेड़ पर कुल्हाड़ी चलाने से पहले उन पर चलानी पड़ेगी.