मोर्चा के संयोजक दुर्गा सिंह मेहता व अन्य द्वारा दिये गए ज्ञापन में कहा गया है कि उत्तराखंड अपनी विशेष सांस्कृतिक, राजनैतिक, भौगोलिक विरासत व जन आंदोलनों व जनता की शहादत से बना राज्य है. राज्य का गठन पहाड़ से पलायन रोकने व विशेष रूप से पहाड़ के विकास के लिए किया गया. किन्तु अलग राज्य बनने के बाद पहाड़ के लगभग 1000 गांव निर्जन हो चुके हैं. वहीं उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्र में औद्योगिकीकरण व शहरीकरण से 20% खेती की जमीन समाप्त हो चुकी है. औद्योगिक विकास भी केवल उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्रों में ही हुआ. उत्तराखंड बनने के बाद पहाड़ी जिलों से लगभग 32 लाख लोग पलायन कर चुके हैं. पहाड़ में न उद्योग लग सके और न ही वहां राज्य स्तरीय व केन्द्रीय संस्थान खोले गये. उसके उलट कई राजकीय संस्थान पहाड़ से मैदान में शिफ्ट कर दिये गये और पहाड़ में भी जंगली जानवरों के कारण खेती की जमीनें बंजर हो चुकी हैं.