इंटरनेट और सोशल मीडिया की लत शहरों से निकलकर कस्बों-गांवों तक भी पहुंच गई है। दिन-ब-दिन यूजर्स की संख्या बढ़ती जा रही है। क्या छोटे बच्चे क्या बड़े बुजुर्ग सभी में ऑनलाइन वीडियो देखने की लत बढ़ती जा रही है। इसकी वजह से उनमें गंभीर अवसाद, अकेलापन और हिंसक व्यवहार के लक्षण दिख रहे हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, इन्हें बचाने के लिए हर जिले में इंटरनेट नशामुक्ति केंद्र यानि डी-एडिक्शन सेंटर खोलना आवश्यक हो गया है। यहां न सिर्फ इंटरनेट, बल्कि सभी डिजिटल प्लेटफॉर्म को लेकर काउंसलिंग निगरानी और इलाज की सुविधा मिले।
बंगलूरू स्थित राष्ट्रीय मानसिक जांच एवं तंत्रिका विज्ञान संस्थान और पुणे स्थित सिंबियोसिस यूनिवर्सिटी के किए गए शोधा में पाया गया है कि, देश में बीते 5 सालों में सालाना डिजिटल दुनिया से जुड़ने वालों की संख्या 20 से 25 फीसदी तक बढ़ रही है। फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट सभी के जीवन का अहम हिस्सा बन गए हैं। आंकड़ों के मुताबिक, मौजूदा समय में देश में इंटरनेट यूजर्स की संख्या 64.2 करोड़ है।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने एक रिपोर्ट जारी कर चिंता जताई है कि, देश में 10 साल से कम उम्र के बच्चे भी सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं। लगभग 37.8% बच्चों का फेसबुक अकाउंट है। 24.3% बच्चे इंस्टाग्राम पर सक्रिय हैं। बता दें कि, भारत में पहला स्मार्टफोन नशा मुक्ति केंद्र जून 2014 में बंगलूरू में खोला गया था। दिल्ली एम्स, पुणे और हाल ही में यूपी के तीन जिलों और अमृतसर में भी एक केंद्र शुरू हुआ।
नई दिल्ली स्थित प्रगति मैदान में साल 2018 और 2019 के दौरान लगे अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में दिल्ली एम्स के डॉक्टरों ने 817 लोगों पर सर्वे किया था। इसमें 13.4% युवाओं ने माना, मोबाइल की लत में वे इस कदर जकड़ चुके हैं कि, उन्होंने रिश्तों या अवसर को खतरे में डाला या उसे खो दिया है।