पौड़ी (कोटद्वार ): पहाड़ी क्षेत्र के जंगलों में लगी आग का असर औषधीय गुणों से भरपूर काफल पर भी पड़ा है। गढ़वाल क्षेत्र के जंगलों में आग से 60 प्रतिशत तक काफल जलकर नष्ट हो चुका है। यही कारण है कि पर्वतीय बाजारों में केवल नाम मात्र का ही काफल उपलब्ध है। अप्रैल से जून तक यह काफल कई ग्रामीणों की आर्थिकी का जरिया बनता है। लेकिन, इस बार काफल कम होने से ग्रामीण व पर्यटकों में मायूसी छाई हुई है। मई-जून के महीने में जब शहरवासी भीषण गर्मी से जूझते हैं, तब पहाड़ के जंगलों में काफल का फल आकार लेता है। रसीले-खट्टे-मीठे स्वाद से भरपूर यह फल ग्रामीणों की आर्थिकी का भी जरिया है। बड़ी संख्या में ग्रामीण जंगलों से काफल लाकर गांव के आसपास दुकानों में इसे बेचते हैं। लेकिन, इस बार जंगलों में लगी आग के कारण काफी मात्रा में काफल फल जलकर नष्ट हो गया है। काफल के लिए प्रसिद्ध बाजार गुमखाल, द्वारीखाल, रिखणीखाल में भी केवल नाम मात्र का ही काफल बिक रहा है। मेहनत के बाद भी पर्याप्त काफल नहीं मिलने के कारण दुकानदारों ने इसके दाम भी बढ़ा दिए हैं। कई स्थानों पर काफल तीन सौ रुपये किलो तक बिक रहा है।