शरदीय
नवरात्र के दिनों में देश के हिंदू धर्म के लोग कई तरह से उपवास रखते हैं. कुछ का
उपवास काफी कठिन और बिना पानी के रखा जाता है लेकिन ज्यादातर लोग सामान्य उपवास
रखते हैं, जिसमें वो फलाहार या फलाहारी भोजन का उपभोग करते
हैं.
फलाहारी भोजन में व्रत का सेंघा नमक, फल, गिनी चुनी सब्ज़ियां, कुट्टू या राजगिरा आटा,
साबूदाना जैसी कुछ ही चीज़ें खा सकते हैं. इन्हें इस उपवास में खाने
लायक माना गया है. लेकिन प्याज और लहसुन की सख्त मनाही है.
शरीर की बायोलॉजिकल क्रियाओं पर भोजन किस तरह प्रभाव डालता है, इसे
लेकर आम तौर से आयुर्वेद में भोजन को तीन रूपों में बांटा गया है – सात्विक,
तामसिक और राजसी. इन तीन तरह के भोजन करने पर शरीर में सत, तमस और रज गुणों का संचार होता है.
प्याज़ और लहसुन –
आयुर्वेद का वैज्ञानिक सिद्धांत मौसमों के अनुसार उपयुक्त भोजन
करने की बात पर ज़ोर देता है. शारदीया नवरात्र चूंकि बारिश के तुरंत बाद और सर्दी
से पहले के मौसम में आती है इसलिए यह दो मौसमों के बीच का समय है. आयुर्वेद की
मानें तो मौसम परिवर्तन के समय शरीर की प्रतिरोधी क्षमताएं कम होती हैं इसलिए अक्सर
खांसी और ज़ुकाम जैसे सामान्य संक्रमण दिखते हैं.
कुछ धर्मों में भी क्यों की गई प्याज निषेध की बात
कई धर्म ऐसे हैं जिनमें लहसुन-प्याज खाने पर पाबंदी है. बहुत से
रेस्टोरेंट और भोजनालय आपको मिल जाएंगे, जहां लिखा होगा- यहां
लहसुन-प्याज से खाना नहीं बनता. कुछ लोग ऐसे मिल जाएंगे, जो
पूरे तौर पर अपने खाने में प्यार-लहसुन से परहेज करते हैं.
खासकर
हिंदू और जैन धर्म में प्याज और लहसुन के निषेध की बात की गई है. हिंदुओं में भी
वैष्णव लोग आमतौर पर इससे दूर रहते हैं. किसी भी पूजा-पाठ की भोजन सामग्री में
इसका इस्तेमाल कतई नहीं होता. जैन धर्म तो किसी भी जड़ वाले खाने से परहेज की बात
करता है.
क्या है वजह
आयुर्वेद के अनुसार, प्याज और लहसुन से दूर होने
की उसकी सबसे बड़ी वजह ध्यान और भक्ति के लिए अहितकर होना है. अगर इसका सेवन किया
जाए तो क्योंकि वो शरीर की चेतना जागृत करने के काम में बाधा पेश करते हैं. दिमाग
को एकाग्न नहीं होने देते.